नया नहीं है बच्चों को आत्मघाती बम बनाना
२२ अगस्त २०१६शनिवार शाम एक 12 साल के लड़के ने दक्षिण-पूर्व तुर्की में कुर्द लोगों की शादी में पहुंच कर अपने आपको उड़ा लिया. अधिकारियों के अनुसार हमलावर के जैकेट के कुछ चीथड़े घटनास्थल से मिले हैं. मरने वाले 51 लोगों में से कम से कम 22 की उम्र 14 साल के कम ही थी. तुर्की राष्ट्रपति रेचेप तय्यप एर्दोआन को इस हमले के पीछे कट्टर इस्लामिक आतंकी गुट आईएस का हाथ होने का संदेह है.
सीरिया सीमा के पास लगी इस जगह गाजियानटेप का ये हमला नाटो सदस्य देश तुर्की में इस साल का अब तक का सबसे खतरनाक हमला था. पहले भी कुर्द लोगों के इकट्ठा होने की जगह पर हमले हुए थे जिनका मकसद जातीय तनाव को हवा देने का कोशिश माना जाता है. अक्टूबर 2015 में अंकारा में कुर्द-समर्थकों की रैली में हुए एक आत्मघाती हमले में 100 से भी अधिक लोग मारे गए थे.
इससे पहले भी कट्टरवादी संगठन आईएस बच्चों को अपने हथियार की तरह इस्तेमाल कर चुका है. आईएस जैसे आतंकी गुट बच्चों की एक पूरी सेना तैयार करते हैं, जिन्हें आईएस द्वारा संचालित स्कूलों में इस्लाम की उनकी अपनी कट्टरवादी विचारधारा और हिंसा के तरीके सिखाए जाते हैं. आईएस द्वारा बच्चों को विस्फोटकों से लैस करके इराक और सीरिया के फ्रंट लाइन पर भेजने की घटनाएं सामने आईं है.
संयुक्त राष्ट्र की बच्चों से जुड़ी एजेंसी यूनिसेफ ने हाल ही में एक रिपोर्ट में बताया था कि इराक में अगवा हुए हजारों बच्चे गंभीर खतरे में हैं. जहां लड़कों को लड़ाका या आत्मघाती हमलावर बना दिया जाता है वहीं लड़कियों को यौन दासता में धकेल दिया जाता है.
बोको हराम जैसे दूसरे आतंकी समूह भी बच्चों को आत्मघाती हमलावर बना रहे हैं. इसी साल आई यूनिसेफ की रिपोर्ट दिखाती है कि नाइजीरिया, कैमरून और चाड जैसे देशों में होने वाले हर पांच में से एक आत्मघाती हमले में बोको हराम ने बच्चों का इस्तेमाल किया. ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि 2009 से ही नाइजीरिया में जारी बोको हराम के हमलों में दर्जनों बार छोटी बच्चियों को आत्मघाती बम बना कर उड़ा दिया गया.
पूरे विश्व में आतंक का दूसरा नाम रहे अल कायदा का भी बच्चों को आतंकी बनाने का लंबा इतिहास रहा है. इराक में अल कायदा के नेता अबु मुसाब अल-जरकावी ने कई किशोरों को अमेरिकी सेनाओएं के खिलाफ आत्मघाती हमलावर बनाकर इस्तेमाल किया था.
इसके अलावा फलीस्तीन में भी हमास और इस्लामिक जिहाद जैसे कई आतंकी गुट फलीस्तीनी बच्चों के लिए समर कैंप चलाने की रिपोर्टें हैं. यहां बच्चों में इस्राएल-विरोधी भावनाएं भरी जाती हैं, हालांकि इन गुटों ने अब तक किसी बच्चे को आत्मघाती मिशन में इस्तेमाल नहीं किया है. इसके अलावा यमन में बच्चे बहुत कम उम्र से ही हथियार चलाना सीख लेते हैं. यहां जारी संघर्ष में लोगों को सरकार-समर्थक और विद्रोही लड़ाकों दोनों की ही तरफ से हिंसा झेलनी पड़ती है.