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तीन चौथाई अफगानिस्तान बीमार

२० दिसम्बर २०१२

पागलपन के धब्बे के साथ तन्हाई के अंधेरे में जीवन बिताने वालों की वेदना का एहसास कैसा हो सकता है? अफगानिस्तान में 70 फीसदी से ज्यादा लोग मानसिक बीमारियों के शिकार हैं.

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Symbolbild Eine Frau trägt Burka Glaube Religion
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo

हर समय सिर पर मंडराता मौत का खतरा. धमाके, गोलीबारी और अनिश्चितता अफगानिस्तान में रहने वालों के लिए शायद जीवन का पर्याय बन गया है. और इनका असर केवल उनके रोजमर्रा के जीवन पर नहीं, बल्कि आने वाली नस्लों पर भी दिखाई दे रहा है. अमेरिकी मेडिकल एसोसिएशन की रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान में 70 फीसदी से ज्यादा लोग मानसिक बीमारियों के शिकार हैं. इसके चलते ये लोग कई तरह के भेदभाव के शिकार भी हो रहे हैं.

मुहम्मद को नहीं पता जब दूसरे बच्चे उसे 'पागल' कह कर चिढ़ाते हैं तो वह क्या करे. कुंठा में उसके मुंह से बस यही निकलता है, "मैं नहीं, तुम पागल!". 16 साल का मुहम्मद उनमें है, जो इस टूटे, हर दिन मुश्किलों से जूझते देश में मनोवैज्ञानिक बीमारियों से उलझ रहे हैं. वह अपने परिवार के साथ काबुल में रहता है. अब उसकी यह बीमारी पूरे परिवार के लिए परेशानी बन गई है. जब वह उलझता है और अस्वभाविक हरकतें करता है तो उसकी मां भी तंग आकर उसे घर से बाहर निकाल देती है. इस बीमारी के चलते कोई भी स्कूल उसे दाखिला देने के लिए तैयार नहीं है. अफगानिस्तान में इस तरह की मानसिक बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए विशेष तरह के कोई स्कूल भी नहीं हैं.

मुहम्मद की मां बताती हैं कि वह बचपन में जब बीमार पड़ा तो डॉक्टरों ने उम्मीद जताई कि वह अच्छा हो सकता है, लेकिन इस इलाज में काफी पैसे खर्च होंगे. उन्होंने कहा, "हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं कि हम इतना महंगा इलाज करवा सकें." अफगानिस्तान में गिने चुने दिमागी अस्पताल हैं और उनमें भी ज्यादा सुविधाएं नहीं हैं.

शादी में भी दिक्कत

अफगानिस्तान में लड़कियों की शादी को लेकर इस तरह की बीमारियों की वजह से और भी दिक्कत आती है. 22 साल की फरिश्ता की मां ने कहा, "जैसे ही लड़कों को फरिश्ता की मनोवैज्ञानिक स्थिति का पता चलता है वे पीछे हट जाते हैं." फरिश्ता ने पांचवीं तक की पढ़ाई की, हालांकि तब भी उसके साथ पढ़ने वालों का मजाक झेलना पड़ा. आखिर में निराश होकर फरिश्ता की मां उन्हें मौलवियों के पास भी ले गईं. उन्होंने बताया, "उन्होंने मुझे फरिश्ता को पहनाने के लिए तावीज दिया लेकिन उससे भी कोई मदद नहीं मिली और मैने उसे फेंक दिया." फरिश्ता की मां अब उसे और अपने साथ घर पर नहीं रखना चाहतीं. वह उसे जितनी जल्दी हो सके दिमागी अस्पताल भेज देना चाहती हैं.

मदद की कमी

इस तरह के मरीजों के लिए काबुल में इकलौता मनोरोग अस्पताल है. यह सरकारी अस्पताल है और यहां इलाज भी मुफ्त होता है. लेकिन इसकी मनोरोग चिकित्सक डॉक्टर सीमा ने बताया कि ज्यादा गम्भीर मरीजों की मदद इस अस्पताल में नहीं हो पाती है. उन्होंने अफसोस जताया कि सरकार या गैरसरकारी संस्थाओं के पास ऐसी कोई योजना नहीं है जो मानसिक बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को सामाजिक भेदभाव से बचा सके. मुहम्मद और फरिश्ता जैसे ही और लोग भी 'पागल' होने का धब्बा लेकर सारा जीवन तन्हाइयों के अंधेरे में बिता देते हैं.

रिपोर्टः वसलत हसरत नजीमी/एसएफ

संपादनः ए जमाल

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