ताड़ के पत्तों पर लिखी तमिल लिपियां डिजिटल होंगी
१० अक्टूबर २०१०तमिल यूनिवर्सिटी ने इस ऐतिहासिक काम के लिए तैयारी शुरू कर दी है. पिछले महीने राज्य के अलग अलग हिस्सों में मौजूद इन पाण्डुलिपियों को जमा कर तंजावुर लाया गया. अलग अलग लोगों और मठों के पास मौजूद इन प्राचीन पाण्डुलिपियों को जमा करने के बाद गिनती करने पर पता चला कि 46,000 पाण्डुलिपियां जमा हो गई हैं.
यूनिवर्सिटी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इनमें से 5,000 पाण्डुलिपियां तो श्रीवाइकुंतम के कोट्टाई पिल्लईमार परिवार के पास से ही मिल गईं. इसी तरह 3,600 पाण्डुलिपियों का एक दूसरा सेट तीन बंडलों में थेणी जिले के सिद्धार से मिला. इनमें राजा चोल के बारे में दुर्लभ जानकारियां मौजूद हैं. तिरुवल्लुर, तिरुवन्नामलाई और बेलूर से 26,000 पाण्डुलिपियां मिलीं.
इनमें से कई की तो हालत बहुत खराब है. अब एक खास प्रक्रिया के जरिए इनकी सफाई होगी, फिर इन पर लिखे अक्षरों को पढ़कर उनका अर्थ निकाला जाएगा और फिर इन पत्तों को डिजिटल रूप में बदला जाएगा.
15वीं सदी और उससे पहले की इन पाण्डुलिपियों को जानकारी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए अक्षरों की खोज होने के बाद इस्तेमाल किया जाता था. ताड़ के पत्ते सुखाकर उस पर लिखा जाता और फिर उनके खराब होने से पहले ही उन्हें नए पत्तों पर कॉपी कर लिया जाता. इस तरह से पीढ़ी दर पीढ़ी ये पाण्डुलिपियां आगे बढ़ती रहीं और इनके जरिए ज्ञान को भी आगे बढ़ने का रास्ता मिलता गया.
यूनिवर्सिटी तो ताड़ के पत्तों पर लिखी इन पाण्डुलिपियों को जमा करने के लिए दक्षिणी राज्यों पर ही ध्यान दे रही थी, लेकिन अब उत्तर भारत के कुछ राज्यों में भी इनकी खोज की जा रही है. यूनिवर्सिटी की तरफ से हाल ही में एक वर्कशॉप भी कराई गई जिनमें इन पाण्डुलिपियों को सुरक्षित रखने के बारे में उपायों की जानकारी दी गई.
रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन
संपादनः ए कुमार