ड्राइवरों ने पहनी नैपी
१ मई २०१४थाइलैंड की राजधानी दुनिया के सबसे बड़े और तंग शहरों में है. कछुए की रफ्तार से चलने वाली ट्रैफिक में अक्सर बस ड्राइवरों और कंडक्टरों को टॉयलेट जाने का भी मौका नहीं मिलता. न तो उन्हें इसके लिए समय मिलता है और न ही रास्ते में इसकी सुविधाएं हैं. बस कर्मचारियों ने टॉयलेट ब्रेक न मिलने का समाधान एडल्ट नैपी में खोज लिया है.
सालों से थाइलैंड में हो रहे आर्थिक विकास का फायदा बैंकॉक के ब्लू कॉलर वर्कर्स को नहीं मिला है. वे तेजी से हो रहे शहरीकरण और अमीरों और गरीबों के बीच बढ़ती खाई का शिकार हो रहे हैं. कूड़ा जमा करने वाले रैगपिकर्स से लेकर फैक्ट्री कर्मचारी या टैक्सी ड्राइवरों की बदौलत सवा करोड़ आबादी वाला यह शहर चलता है, लेकिन बढ़ते वेतन का मतलब उनके लिए बेहतर जिंदगी नहीं है. सड़कों पर भीड़ बढ़ रही है और बस कर्मचारियों को पुरानी पड़ती बसों में घंटों सड़कों पर बिना किसी ब्रेक के गुजारना पड़ता है.
बीमारी का खतरा
वचारी वीरिया को यूरीनल इंफेक्शन हो गया तो मजबूरी में उन्हें एडल्ट नैपी का सहारा लेना पड़ा ताकि वे रेस्टरूम से घंटों दूर रहने की मुश्किल का सामना कर सकें. उन दिनों की याद करते हुए वे कहती हैं, "बहुत ही असुविधाजनक था जब मैं चलती थी, खासकर हल्का होने के बाद. जब मैं बस टर्मिनल पहुंचती थी तो सबसे पहले भागकर चेंज करने टॉयलेट जाती थी. दिन में मैं कम से कम दो नैपी इस्तेमाल करती थी." बाद में पता चला कि वीरिया को यूटरस का कैंसर है और उन्हें सर्जरी करानी पड़ी. "डॉक्टर ने मुझे बताया कि ऐसा गंदा नैपी पहनने और उसके तत्वों के यूटेरस में जाने की वजह से हुआ है."
बैंकॉक में अंडरग्राउंड या मेट्रो रेल बहुत कम होने की वजह से ज्यादातर लोगों को शहर में इधर उधर जाने के लिए बस सेवा, कार या टेम्पो पर निर्भर करना पड़ता है. परिवहन में मुश्किलों का सामना करने के लिए टैक्स राहतों के चलते बहुत से लोगों ने खुद की कारें खरीद ली हैं.
टॉयलेट ब्रेक की कमी के लिए एडल्ट नैपी जैसे समाधान का सहारा लेने वाली वचारी वीरिया अकेली नहीं हैं. एक ताजा सर्वे के अनुसार बैंकॉक में 28 फीसदी महिला बस कंडक्टर काम के दौरान नैपी पहनती हैं. सर्वे कराने वाली संस्था के निदेशक जादेद चुवीलाई कहते हैं, "हम चकित हैं. हमने यह भी पाया कि बहुत सी महिलाएं यूरीनल इंफेक्शन का शिकार हैं. कई को यूटेरस का कैंसर है."
अमीर गरीब की खाई
थाइलैंड के मौजूदा राजनीतिक संकट के पीछे अमीरों और गरीबों के बीच बढ़ती खाई भी है. प्रदर्शनकारी पूर्व प्रधानमंत्री थकसिन चिनावट का प्रभाव मिटाना चाहते हैं जो सबों के लिए स्वास्थ्य सेवा, कृषि सब्सिडी और माइक्रो क्रेडिट के जरिए देहाती और गरीब मतदाताओं को आकर्षित कर रहे थे. उन्हें शाही सत्ता प्रतिष्ठान ने 2006 में हटा दिया. आठ साल बाद थकसिन समर्थक सरकार के साथ एक बार फिर वही किया गया है.
शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त असामनता भी समस्याओं को बढ़ा रही है. धनी लोगों के बच्चों को बेहतर शिक्षा मिलती है. गरीबों के बच्चे उनसे प्रतिस्पर्धा करने की हालत में नहीं होते. इस बीच थाइलैंड के कुछ सख्त काम कंबोडिया, म्यांमार और लाओस के अवैध विदेशी मजदूरों द्वारा किए जा रहे हैं. यूरोपीय कामगारों की तरह एशियाई कामगार आम तौर पर हड़ताल नहीं करते. सरकारी उद्यमों में हड़ताल करना यूं भी अवैध है.
काम के लंबे घंटे
लेकिन बैंकॉक के बस कर्मचारियों और मजदूर संगठनों ने काम में परिस्थितियों में सुधार की मांग करनी शुरू कर दी है. ट्रांसपोर्ट ट्रेड यूनियन की शूतिमा बून्जई कहती हैं, "उनकी काम की परिस्थितियां अच्छी नहीं हैं. उन्हें गर्मी में घंटों काम करना पड़ता है. जब भूख लगती है तो वे खा नहीं सकते, जब टॉयलेट जाना होता है तो टॉयलेट नहीं जा सकते." उन्होंने बस रूटों और टर्मिनलों पर और टॉयलेट बनाने की मांग की है. बस ड्राइवर पीठ के दर्द और होमोरॉयड जैसी समस्याओं का सामना करते हैं.
इतनी समस्याएं हों तो कौन काम करना चाहेगा बस सेवाओं के लिए. आश्चर्य नहीं कि बसों पर काम करने वालों की भर्ती के लिए लोगों को आकर्षित करना बहुत मुश्किल है. वह भी दिन में 10 डॉलर की तनख्वाह पर. आधुनिक तकनीक ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं. जब भी कोई ग्राहक किसी बात पर खुश नहीं होता, तुरंत मोबाइल फोन या स्मार्ट फोन से शिकायत दर्ज करा देता है.
एमजे/एजेए (एएफपी)