डॉर्टमुंड बेचारा, तकनीक का मारा
१९ मई २०१४इसके बाद जर्मनी में एक बार फिर से गोल लाइन तकनीक पर चर्चा तेज हो गई है. शनिवार को फाइनल मुकाबले में जर्मनी की सबसे लोकप्रिय टीम बायर्न म्यूनिख का मुकाबला पीली जर्सी वाली बोरुसिया डॉर्टमुंड से था. घंटे भर के खेल के बाद मैट्स हुमेल के हेडर ने गेंद बायर्न की जाल में डाल दिया. टीवी रीप्ले से यह साफ था और गोल लाइन तकनीक से भी स्पष्ट था कि गेंद रेखा को पार कर चुकी है. लेकिन रेफरी ने यह गोल नहीं माना. खेल 90 मिनट तक गोलरहित रहा और उसके बाद बायर्न ने दो गोल ठोंक कर मुकाबला और कप जीत लिया.
डॉर्टमुंड के डिफेंडर मार्सेल श्मेल्सर का कहना है, "उस गोल को खोना बहुत दर्दनाक रहा. यह शर्म की बात है कि इतने अहम मैच में ऐसी स्थिति आई."
बर्लिन के स्टेडियम में हुए इस मैच में गोल लाइन तकनीक का आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल नहीं किया गया. हालांकि इससे कुछ हफ्ते पहले ज्यादातर जर्मन क्लबों ने इस तकनीक के खिलाफ वोटिंग की है. योजना थी कि 2015 से इसे लागू किया जाए, तो ये होती नहीं दिख रही. पर दिलचस्प बात है कि डॉर्टमुंड और बायर्न दोनों इसके हक में हैं. कुल 18 क्लबों में से नौ इसे चाहते हैं, बाकी नहीं. इंग्लिश प्रीमियम फुटबॉल लीग (ईपीएल) इसे पहले ही लागू कर चुका है और इस साल होने वाले वर्ल्ड कप में भी इसका इस्तेमाल होगा.
हालांकि राष्ट्र के तौर पर जर्मनी ने इस तकनीक का विरोध किया है और इसने रेफरी की सहायता करने के लिए अतिरिक्त रेफरी की भी मुखालफत की है. यूरोपीय फुटबॉल संस्था यूएफा के चैंपियंस लीग और यूरोपा लीग के अलावा इटली और फ्रांस जैसे देश अपने घरेलू मुकाबलों में इसका इस्तेमाल करते हैं.
इस मैच के रेफरी फ्लोरियान मायर का कहना है कि उन्हें इस बात का पता ही नहीं चला कि क्या गेंद वाकई निशान पार कर गई थी, "मुझे या मेरे सहायक को पता नहीं चल पाया कि क्या वाकई में गेंद पूरी तरह पार हुई है या नहीं. इसलिए हमने खेल जारी रखने का फैसला किया."
एजेए/ओएसजे (डीपीए)