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डॉक्टर को मिलेगी पल पल की खबर

३ दिसम्बर २०१०

समय पर डॉक्टरी देखभाल न मिलने से कितने ही लोगों की मौत हो जाती है. लेकिन अब खास सेंसर तैयार किया गया है जिसके जरिए रोगी के पल पल की जानकारी डॉक्टरों को मिल सकती है. मेडिका मेले में आया यह सेंसर.

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तस्वीर: Fotolia/Alx

60 देशों के 4400 प्रदर्शकों के साथ चिकित्सा शास्त्र का मेला मेडिका विश्व में अपनी तरह का सबसे बड़ा मेला है. पिछले दिनों ड्युसलडोर्फ में मेले के 17 हॉलों में चिकित्सा के क्षेत्र में नए आविष्कारों का परिचय मिला. एक क्षेत्र में नई तकनीक तेजी से आगे बढ़ रही है, जिसे चिकित्सा शास्त्र की भाषा में इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोटेक्निक कहा जाता है. रोगी के शरीर में या अकेले रहने वाले वयोवृद्ध रोगियों के फ्लैटों में सेंसर लगाए जाते हैं, जिनसे डॉक्टर या बचावकर्मियों को रोगी की हालत के बारे में तुरंत पता चलता है.

Flash-Galerie Medica 2010
तस्वीर: constanze tillmann

मोविसेंस कंपनी के योएर्गे ओट्टेनबाखर एक सेंसर दिखाते हैं, जो हाल में ही बनाया गया है. इससे पता चल जाता है कि कितनी तेजी के किसी का दिल धड़क रहा है, वह कैसे घूम फिर रहा है, वह कहां है. ब्लूटूथ के जरिए ये आंकड़े स्मार्टफोन में भेजे जाते हैं. डॉक्टर को अपने आप मोबाइल पर आंकड़े मिलते हैं. अगर उन्हें लगे कि कहीं कुछ गड़बड़ है, तो वे तुरंत फोन करते हैं और रोगी की मदद की व्यवस्था की जा सकती है. कैसे सवाल किए जाते हैं? योएर्ग ओट्टेनबाखर बताते हैं, "मिसाल के तौर पर वह क्या कर रहा है, क्या तनाव की कोई वजह है, वह अकेला है या साथ में कोई है. यानी ऐसे सवाल, जिनसे रोगी की हालत का पता चल सके. इससे फायदा यह है कि पहले से तय किए गए समय पर नहीं, बल्कि चिकित्सा की दृष्टि से महत्वपूर्ण घड़ी में रोगी की हालत की जानकारी मिलती है."

ये आंकड़े और रोगियों के जवाब डॉक्टर को, यूं कहा जाए कि लाइव मिल जाता है. उन्हें किसी रिपोर्ट का इंतजार नहीं करना पड़ता और वह तुरंत कदम उठा सकता है. अभी तक डॉक्टरों को यह सिस्टम नहीं भेजा जा रहा है, सिर्फ साइकोलॉजिस्ट, स्पोर्टस मेडिसीन के लोग, या फूड स्पेशलिस्ट इस पर प्रयोग कर रहे हैं. लेकिन ऐसे सेंसर उनके काम आ सकते हैं, जो बुजुर्ग हैं या जिन्हें दिल की बीमारी है. इसे रोगी के शरीर में लगाने की भी जरूरत नहीं पड़ती. फर्श पर भी इसे लगाया जा सकता है. फर्श पर क्यों? कार्ल्सरुएहे के टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट के रोलांड गोएरलित्ज कहते हैं, "ऐसे रोगियों के लिए गिर पड़ना काफी मुमकिन है और यह एक बड़ी समस्या है. बहुत से रोगियों के पास ऐसे सेंसर होते हैं, लेकिन जब वे गिर पड़ते हैं तो यह उनके पास नहीं होता और डॉक्टर को पता नहीं चलता. फर्श पर सेंसर लगाने से अगर रोगी अपने घर में गिर पड़े तो तुरंत पता चल सकता है और इमरजेंसी की घंटी बजने लगती है. पड़ोसियों को पता लगाकर डॉक्टर बुलाने की ज़रूरत नहीं रहती."

कार्ल्सरुएहे के इस इंस्टिट्यूट में सिर्फ फर्श पर लगाए जाने वाले सेंसर ही नहीं, बल्कि सेंसर वाले जैकेट भी बनाए जा रहे हैं. इनके जरिए तापमान बहुत बढ़ जाने पर पता चलता है. यह पुलिस व सुरक्षाकर्मियों के लिए उपयोगी है, जिन्हें गर्मी में भी यूनिफार्म पहनकर काम करना पड़ता है, और हीटस्ट्रोक का डर रहता है. इनके लिए प्रोफेसर विल्हेल्म स्टोर्क ने एक खास तरीके का जैकेट बनाया है, जिसमें एक सेंसर, एक बैटरी और एक छोटा सा पंखा होता है. इस जैकेट में दो परतें होती हैं और पंखे के जरिए जैकेट के अंदरूनी हिस्से से हवा बाहर निकाली जाती है, उसे एक नली के जरिए बाहर फेंका जाता है और बाहर से स्वच्छ हवा अंदर बदन पर भेजी जाती है, जो पसीने को सुखाने में मदद करती है.

एक इंसान को दिन में औसतन एक लीटर पसीना आना चाहिए, ताकि उसके बदन का तापमान संतुलित रहे. और इसे सुखाने के लिए लगभग चालीस हजार पीएसआई हवा की जरूरत होती है. गर्मी अगर अधिक हो, तो अधिक हवा की जरूरत होती है. प्रोफेसर विल्हेल्म स्टोर्क बताते हैं कि यह जैकेट कैसे काम करता है, "अगर आप चुपचाप बैठे रहें, तो जैकेट का सिस्टम बंद रहता है. जैसे ही आप चलने फिरने लगते हैं, यह काम करने लगता है. और इस तरह जिस्म का तापमान संतुलित रहता है."

अगले साल यह जैकेट बाजार में बिकने लगेगा. इसके लिए जितनी उर्जा की जरूरत पड़ेगी, वह एक एयर कंडीशनर के मुकाबले सिर्फ 0.1 फीसदी है. यानी गर्मी कितनी भी हो, आपके बदन पर एयर कंडीशनर जैकेट होगा, जिस्म ठंडा रहेगा तो दिमाग भी ठंडा रहेगा, और बिजली की भी बचत होगी.

रिपोर्टः डीडब्ल्यू/उज्ज्वल भट्टाचार्य

संपादनः ए कुमार

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