टिंबकटू में पांडुलिपियों का संरक्षण
उत्तरी माली में जब 2012 में इस्लामी कट्टरपंथियों ने कब्जा किया तो कई ऐतिहासिक दस्तावेजों के खत्म हो जाने का खतरा मंडराने लगा. लेकिन माली के लोगों ने इस धरोहर को अच्छे से संभाल कर रखा. अब इनका संरक्षण किया जा रहा है.
ऐतिहासिक संपत्ति
टिंबकटू में संग्रहित किए ये दस्तावेज ऐतिहासिक महत्व के हैं. इनमें हजारों साल से इस्लामी शोध की जानकारी है. एक जमाने में टिंबकटू इस्लाम और कुरान की पढ़ाई का अफ्रीकी केंद्र हुआ करता था.
पेटियों में तस्करी
2012 में जब यहां इस्लामी कट्टरपंथियों ने विध्वंस शुरू किया तो माली के लोगों ने इन अहम दस्तावेजों को गुपचुप टिंबकटू से राजधानी बोमाको भेज दिया और एक अपार्टमेंट में रखवा दिया गया. इन्हें अब डिजिटलाइज किया जा रहा है.
पांडुलिपियों के जीवनदाता
अब्देल कादिर हैदारा ने इन पांडुलिपियों को बचाने में अहम भूमिका निभाई. पारिवारिक पुस्तकालय बनाने वाले हैदारा ने सिर्फ अपने पास संग्रहित पांडुलिपियों को ही नहीं बचाया, बल्कि उन सभी को जिनके नष्ट होने का खतरा था.
डिजिटल पुस्तकालय
बामाको के एक आर्काइव में इन पांडुलिपियों को डिजिटलाइज किया जा रहा है. इसके अलावा हर पेज की तस्वीर भी ली जा रही है. इसका केंद्रीय आर्काइव में केटेलॉग बनाया जाएगा. गूगल की भी इन पांडुलिपियों में रुचि है.
सभी के लिए
इन पांडुलिपियों को सेव करने से फायदा यह होगा कि ये कई साल तक सुरक्षित रहेंगी, क्योंकि बामाको का मौसम बहुत गर्म और नमी से भरा है. ऐसे में ये अति प्राचीन पांडुलिपियां ज्यादा दिन टिक नहीं पाएंगी. इससे पहले इन्हें डिजिटलाइज करने की कोई कोशिश नहीं की गई.
नपा तुला
डिजिटलाइजेशन के बाद इन पांडुलिपियों को ऐसे बक्सों में रखा जाएगा जहां हवा ना जाए. हर पांडुलिपी का आकार अलग है और इसलिए सबके लिए अलग अलग बक्से तैयार किए जा रहे हैं, वह भी हाथ से.
राख इतिहास
इस्लामी कट्टरपंथियों ने अपनी ताकत दिखाने के लिए टिंबकटू से कई पांडुलिपियां इकट्ठी की और अहमद बाबा इंस्टीट्यूट के आहाते में जला दीं. करीब 4,000 दस्तावेज राख हो गए. इन्हें स्मारक के तौर पर अभी भी इस जगह रखा हुआ है.
कुछ पांडुलिपियां
टिंबकटू के कुछ लोगों के पास अभी भी पुरानी पांडुलिपियां हैं. हालांकि इनकी संख्या ज्यादा नहीं है. शहर के इस निवासी को कुछ पांडुलिपियां अपने दादा से विरासत में मिली हैं.
बेकार होने का खतरा
20वीं सदी में जब टिंबकटू का आर्थिक महत्व खत्म हो गया तो पर्यटन ही उसकी आय का अहम केंद्र था. 2012 के संघर्ष के बाद पर्यटक भी नहीं आ रहे. अब डर है कि इस जगह का सांस्कृतिक महत्व भी खत्म हो जाएगा.