टिंग टिंग करता साइकिल का सफर
बिना पैडल के अपना सफर शुरू करने वाली साइकिल आज बहुत बदल चुकी है. चलिये एक नजर डालते हैं प्यारी साइकिल के इतिहास पर.
लाउफमशीने
1815 में इंडोनेशिया में तम्बोरा ज्वालामुखी फटा और पूरी धरती के मौसम पर उसका असर पड़ा. इंसान और उसके साथ रहने वाले घोड़े भी भुखमरी जैसे हालात का सामना करने लगे. तभी 1816 में जर्मन आविष्कारक कार्ल फॉन द्रायस ने दो पहियों की एक सवारी बनाई. इसे उन्होंने "लाउफमशीने" यानि वॉकिंग मशीन नाम दिया.
अगले पहिये पर पैडल
फ्रांस के पियर मिचाऊ और अमेरिका के पियरे लैलेमेंट ने करीब करीब एक ही साथ आगे के पैडल वाली साइकिल बनाई. यह कारनामा पहले किसने किया यह तथ्य साफ नहीं है. 20 नवंबर 1866 को लैलेमेंट इसके लिए पेटेंट नंबर 59915 जीता.
डगमगडोल साइकिल
1870 के दशक के बाद तेज रफ्तार साइकिलें बनने लगीं. उनका अगला पहिया काफी बड़ा होता था. लेकिन यह बहुत संतुलित सवारी नहीं थी. बड़ी संख्या में लोग घायल होने लगे. 1888 में जॉन डनलप ने अगले पहिये को छोटा बनाकर साइकिलों को सुरक्षित बनाया.
चल मेरे यार, पैडल मार
जिस डबल सीट साइकिल को आज हम देखकर खुश होते हैं वह 20वीं शताब्दी में आई और जल्द ही प्रेमी जो़ड़ों के बीच हिट होने लगी.
पहली टूअर डे फ्रांस
एक जुलाई से 19 जुलाई 1903 के बीच पहली वोल्टा दे फ्रांस साइकिल प्रतियोगिता शुरू हुई. 2,428 किलोमीटर की दूरी को छह चरणों में बांटा गया. पहले विजेता थे मॉरिश गारीन.
साइकिल रेस
तकनीक के बेहतर होने के साथ ही 20वीं सदी में साइकिल रेसें भी शुरू हो गई. आज दुनिया भर में कई तरह की सैकड़ों साइकिल प्रतियोगिताएं होती हैं.
साइक्लिंग का सितारा
1955 में इटली के एंटोनियो मास्पेस ने ट्रैक साइक्लिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता. उनकी जीत ने साइक्लिंग को ग्लैमरस बना दिया.
ओलंपिक में माउंटेनबाइकिंग
1966 में ओलंपिक में पहली बार माउटेनबाइकिंग को शामिल किया गया. अटलांटा में हुए उस ओलंपिक में 44 साइक्लिस्ट्स ने हिस्सा लिया.
ढुलाई का जरिया
दुनिया भर के कई देशों में साइकिल आज भी परिवहन और सामान ढोने का जरिया है.
ओलंपिक बीएमएक्स
2008 में बाइसिकल मोटोक्रॉस (बीएमएक्स) रेस को ओलंपिक का हिस्सा बनाया गया. इस प्रतियोगिता में 20 इंच की साइकिल से जोखिम भरे कारनामे दिखाने होते हैं. अब यह ओलंपिक का एक आकर्षक अंग बन चुकी है.
इलेक्ट्रिक बाइक
छोटे और बेहतर इंजन के साथ आज इलेक्ट्रिक साइकिलें तेजी से लोगों के बीच लोकप्रिय हो रही हैं. इन्हें लंबी दूरी तय करने के लिये भी इस्तेमाल किया जा रहा है. तकनीक इतनी बेहतर हो चुकी है कि इलेक्ट्रिक माउंटेनबाइक्स भी बन रही हैं.