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टाइम बम बनता शरणार्थी संकट

६ अक्टूबर २०१५

शरणार्थी संकट अब जर्मनी के भीतर असर दिखाने लगा है. जर्मनी में कुछ जगहों पर शरणार्थी आपस में झगड़ रहे रहे हैं तो दूसरी तरफ इस्लाम विरोधी प्रदर्शन भी एक बार फिर होने लगे हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Settnik

चार हफ्ते पहले जर्मनी के ज्यादातर लोगों ने मुस्कुराहट के साथ शरणार्थियों से भरी पहली ट्रेन का स्वागत किया. चांसलर अंगेला मैर्केल को उदारता के लिए "मां मैर्केल” की संज्ञा दी गई. खुद चांसलर ने देशवासियों को संदेश दिया कि जर्मनी इस संकट से निपट सकता है. लेकिन अब धीरे धीरे माहौल बदलने लगा है. आर्थिक रूप से समृद्ध जर्मन राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफालिया के गृह मंत्री राल्फ येगर के मुताबिक, "ज्यादातर मददगार मानसिक रूप से थक चुके हैं. इस बात के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं शरणार्थियों का आना थम रहा है. इसके उलट लगातार बड़ी संख्या में लोग यूरोप की तरफ बढ़े आ रहे हैं."

जर्मनी के सबसे ज्यादा बिकने वाले अखबार बिल्ड साइटुंग के मुताबिक जर्मनी में इस साल 15 लाख विस्थापित आएंगे वहीं सरकार का अनुमान है कि आठ लाख विस्थापितों की स्वीकार किया जाएगा. वहीं दूसरे विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस साल के अंत तक 10 लाख से ज्यादा विस्थापित जर्मनी पहुंचेगे. बिल्ड साइटुंग का कहना है कि देश में आ चुके विस्थापित बाद में अपने रिश्तेदारों को लाने की कोशिश भी करेंगे.

अखबार की इस रिपोर्ट के बाद जर्मनी के ड्रेस्डेन शहर में फिर इस्लाम विरोधी प्रदर्शन पेगीडा शुरू हो गया है. पेगीडा संगठन का आरोप है कि यूरोप का इस्लामीकरण हो रहा है. अब तक इसे दक्षिणपंथियों से जोड़कर देखा जाता रहा है.

लेकिन अब दूसरे आम लोग भी फिक्रमंद दिखने लगे हैं. ये लोग उग्र दक्षिणपंथी विचारधारा से सहमत नहीं हैं, लेकिन वे अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हो रहे हैं. कुछ जर्मनों को लगता है कि अगर विस्थापितों की वजह से सरकारी तिजोरी हल्की हुई तो इसका असर उनकी पेंशन और सरंचनात्मक ढांचे पर पड़ेगा.

पेगीडा व्यापक जनसमर्थन जुटाने के लिए इसी भय को भुना रहा है. दूसरी तरफ कुछ विस्थापितों के आपसी झगड़े और कट्टरपंथी रवैये की रिपोर्टें भी सामने आ रही हैं. कुछ शरणार्थी शिविरों में हाथापाई और खाने को लेकर झल्लाहट भरी नाराजगी के मामले सामने आए हैं. इसके अलावा शरणार्थी शिविरों में बलात्कार और यौन उत्पीड़न के कुछ मामलों की भी जांच चल रही है.

चांसलर मैर्केल की सीडीयू पार्टी की सहयोगी पार्टी सीएसयू के बवेरिया प्रांत के मुख्यमंत्री हॉर्स्ट जेहोफर भी सरकार की आलोचना कर रहे हैं. इनके चलते मैर्केल की लोकप्रियता में कमी आई है. पेगीडा आंदोलन वाले चांसलर और कुछ नेताओं को पोस्टरों के जरिए निशाना बना रहे हैं. जर्मनी की फोकस पत्रिका के मुताबिक विस्थापन संकट मैर्केल के राजनैतिक भविष्य को डुबो सकता है.

असली मुश्किल सर्दियों में शुरू होगी, जब कड़ाके की ठंड में इतनी बड़ी संख्या में लोगों के रहने का सही बंदोबस्त करना होगा. लेकिन इसके बावजूद जर्मनी का बड़ा तबका अब भी विस्थापितों की मदद कर रहा है. देश के करीब करीब हर छोटे बड़े शहर में शरणार्थिुयों की मदद के केंद्र चल रहे हैं. मददगारों में युवाओं की अच्छी खासी संख्या है. कई लोग अपने बच्चों को इन केंद्रों तक ले जा रहे हैं ताकि उन्हें बचपन में ही सहिष्णुता और आपसी सद्भाव का पाठ सिखाया जा सके.

ओएसजे/एमजे