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झारखंड में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश

१ जून २०१०

मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के इस्तीफे के बाद केंद्र सरकार ने झारखंड में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की. बीजेपी के समर्थन वापसी के बाद अल्पमत में आई सरकार. अन्य दलों से नहीं बनी बात.

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सोरेन ने दिया इस्तीफातस्वीर: UNI

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में फैसला लिया गया कि राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से झारखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की जाएगी. झारखंड में पिछले कई दिनों से राजनीतिक अनिश्चितता बनी हुई थी और सरकार पर संकट नजर आ रहा था.

तमाम कोशिशों के सफल न होते देख भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने सरकार बनाने का इरादा छोड़ दिया जिसके बाद झारखंड के राज्यपाल एमओएच फारुक ने सोमवार को केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट भेजी.

माना जाता है कि सभी बड़े दलों के साथ रांची में बैठक के बाद ही राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की अनुशंसा की है. भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) के 24 मई को शिबू सोरेन सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद सरकार अल्पमत में आ गई थी. राज्य विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी के 18 विधायक, जनता दल (यूनाइटेड) के 2 विधायक, झारखंड मुक्ति मोर्चा के 18 विधायक हैं.

82 सीटों वाली झारखंड विधानसभा में झारखंड मुक्ति मोर्चा के पास 7 अन्य विधायकों का समर्थन हासिल जरूर था लेकिन बहुमत के लिए जरूरी आंकड़े 42 से पार्टी बहुत दूर रह गई. कांग्रेस के पास राज्य विधानसभा में 14 सदस्य हैं और उसके सहयोगी दल जेवीएम के पास 11 विधायक हैं लेकिन उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि सरकार बनाने के लिए जरूरी आंकड़ा उनके पास भी नहीं है.

लोकसभा में 27 अप्रैल को कटौती प्रस्ताव पर सोरेन की पार्टी ने केंद्र सरकार का साथ दिया जिससे बीजेपी नाराज थी. मान मनव्वल के बाद दोनों पार्टियों ने फिर बारी बारी से सरकार बनाने के फार्मूले पर काम करना शुरू किया लेकिन इस पर भी सहमति न बनने से मुश्किलें बढ़ गईं. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कांग्रेस और जेवीएम से भी संपर्क साधा लेकिन बात नहीं बनी. इसके बाद शिबू सोरेन के पास इस्तीफे के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़