1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

जिंदगी बनाने गए नेपाली मौत के ताबूतों में लौट रहे हैं

२२ दिसम्बर २०१६

कड़ी सर्दी में काठमांडू एयरपोर्ट के बाहर खड़ी 26 साल की सारो कुमारी मंडल अपने बच्चे को गोद में और अपने आंसुओं को झीने से शॉल में छिपाने की कोशिश कर रही है. इसी एयरपोर्ट पर सारो के पति का शव आने वाला है.

https://p.dw.com/p/2Ufin
Indien jügendliche Protituierte gerettet in Bombay
तस्वीर: imago/UIG

नेपाल से सैकड़ों युवा अपने परिवार को पीछे छोड़ विदेशों में काम करने चले जाते हैं क्योंकि अपने देश में उन्हें काम नहीं मिलता. ये लोग ज्यादातर मलेशिया, कतर और सऊदी अरब जैसे देशों का रुख करते हैं, ताकि नेपाल में रहने वाले अपने परिवारों की जरूरतों को पूरा कर सके. लेकिन आज सारो का पति उन छह लोगों में शामिल है जिनके शव लकड़ी के ताबूतों में विदेश से भिजवाए गए हैं. एक ताबूत पर लिखा है: "मानवीय अवशेष, बालकिसुन मंडल खटवे, पुरूष- 26 वर्ष- नेपाली." यह ताबूत सारो के पति का है.

हाल के सालों में नेपाल से विदेशों में काम के लिए जाने वाले लोगों की संख्या बढ़ कर दोगुनी हो गई है क्योंकि सरकार विदेशी श्रम को बढ़ावा दे रही है. 2008 में जहां दो लाख 20 हजार लोग नेपाल से विदेशों में काम करने गए, वहीं 2105 में इनकी संख्या बढ़ कर पांच लाख हो गई. लेकिन इसी अवधि में विदेशों में मारे जाने वाले नेपाली कामगारों की संख्या भी बहुत से तेजी से बढ़ी है.

देखिए 21वीं सदी के गुलाम

2008 में प्रति ढाई हजार कामगारों में से एक की मौत हुई. पिछले यह आंकड़ा बढ़ कर प्रति 500 पर एक मौत में तब्दील हो गया. समाचार एजेंसी एपी ने नेपाली श्रम और रोजगार मंत्रालय की तरफ से जारी आंकड़ों के विश्लेषण पर यह जानकारी दी है.

नेपाल जैसे छोटे से देश के पांच हजार लोग 2008 के बाद से विदेशों में काम करते हुए मारे गए हैं. यह संख्या इराक युद्ध में मारे गए अमेरिकी सैनिकों से भी ज्यादा है. मौत का कारण बहुत से मामलों में रहस्यमयी होता है. लगभग आधी मौतों के लिए प्राकृतिक मृत्यु या दिल के दौरे को जिम्मेदार बताया जाता है. लेकिन ज्यादातर परिवारों से यही कहा जाता है कि उनके परिजन रात को सोए थे और फिर उठे ही नहीं. सारो को भी यही बताया गया है.

लेकिन अब मेडिकल शोधकर्ताओं का कहना है कि इन मौतें का एक जैसा पैटर्न है. हर दशक में, स्वस्थ दिखने वाले एशियाई लोग विदेशों में खराब हालात में काम करने की वजह से मरना शुरू हो जाते हैं. 1970 के दशक में अमेरिका में ऐसा हुआ, सिंगापुर में एक दशक पहले यही दिखाई दिया. इस सिलसिले में सबसे ताजा मामला चीन का है. मौत के इस संदिग्ध कारण को "सडन अनएक्सप्लेन्ड नॉक्चुरल डेथ सिंड्रोम" कहते हैं. अगले साल एक अंतरराष्ट्रीय संस्था इस पर शोध शुरू करने जा रही जिसके बाद शायद कुछ समाधान निकले.

यहां है सबसे ज्यादा न्यूनतम मजदूरी

नेपाल लोहा, स्टील और कारपेट के साथ-साथ कुछ सब्जियां भी निर्यात करता है. लेकिन दुनिया में उसका सबसे बड़ा निर्यात सस्ते मजदूर हैं. कतर की राजधानी दोहा में स्थित नेपाली दूतावास की वेबसाइट कहती है, "नेपाली कामगार अपनी कड़ी मेहनत, लगन और वफादारी के लिए जाने जाते हैं." कतर में 2022 के विश्व कप की तैयारियों में 15 लाख प्रवासी मजदूर काम कर रहे हैं. नेपाली दूतावास का कहना है कि नेपाली लोगों को मौसम से लिहाज दुश्वार हालात में भी काम करने का खूब अनुभव है.

कई लोग ताबूतों में बंद होकर आते हैं तो सालित मंडल जैसे कुछ लोग विकलांग होकर नेपाल लौटते हैं. वह मलेशिया में करते थे और वहां तीसरी मंजिल से गिर गए. उनके सिर में गंभीर चोट लगी. अब वह कर्ज में है, शरीर लकवे का शिकार है और जिंदगी माता पिता के भरोसे. अपने तीन बच्चों की तरफ देखते हुए वह कहते हैं, "पता नहीं मैं क्या करूंगा और कैसे इन्हें पालूंगा. मैं तो चल भी नहीं सकता. अगर मेरे हाथ-पैर चलते तो मैं कुछ कर लेता. लेकिन मैं तो कुछ भी नहीं कर सकता."

नेपाल की 2.8 करोड़ की आबादी में से 10 प्रतिशत लोग विदेशों में काम करते हैं. वे हर साल अपने देश में 6 अरब डॉलर से ज्यादा की रकम भेजते हैं, जो देश की कुल आमदनी का 30 प्रतिशत है. दुनिया भर में ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान ही ऐसे देश हैं जो नेपाल के मुकाबले विदेशी कमाई पर ज्यादा निर्भर हैं.

एके/ओएसजे (एपी)

देखिए भारत में मजदूरी