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‘जागरुकता से सड़क हादसों पर अंकुश संभव’

१ अगस्त २०१५

भारत में सड़क हादसे लगातार बढ़ रहे हैं. नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2014 में हर घंटे सड़क हादसों में औसतन 16 लोग मारे गए. यह तादाद 2013 के मुकाबले तीन फीसदी ज्यादा है.

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तस्वीर: UNI

आखिर भारत में सडक हादसे साल-दर-साल क्यों बढ़ रहे हैं और इन पर अंकुश कैसे लगाया जा सकता है. इन और ऐसे ही कुछ सवालों पर डॉयचे वेले ने सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ और सार्वजनिक निर्माण विभाग में चीफ इंजीनियर रहे अजित कुमार सरकार से बातचीत की. पेश हैं उस बातचीत के मुख्य अंशः

डॉयचे वेले: देश में सड़क हादसे लगातार बढ़ रहे हैं. इसकी वजह क्या है?

अजित सरकार: देखिए सड़क हादसों की कोई एक वजह नहीं है. मोटे तौर पर वाहनों की बढ़ती तादाद, सड़कों की खस्ताहाली, तेज ड्राइविंग और नशे में वाहन चलाने जैसी कुछ वजहें गिनाई जा सकती है. इसके अलावा भी कुछ कारण हैं, मसलन वाहनों में बजने वाला कानफाड़ू संगीत और ड्राइविंग करते वक्त मोबाइल पर बातें करना.

Indien Kalkutta Mr. A.K. Sarkar, Verkehrsexperte
अजित कुमार सरकारतस्वीर: DW/K. Prabhakar

ट्रैफिक नियमों और तकनीक के इस्तेमाल के बावजूद ऐसे हादसों पर अंकुश क्यों नहीं लग पा रहा है?

यह सही है कि हमारे देश में ट्रैफिक कानून है, लेकिन यह कानून काफी पुराना है. जब यह कानून बना था उस समय सड़क पर वाहनों की तादाद बहुत कम होती थी. लेकिन अब हर साल कई लाख नई गाड़ियां सड़कों पर उतर आती हैं. बदली परिस्थिति के मुताबिक ट्रैफिक नियमों में जरूरी संशोधन नहीं किया गया. मेरी राय में इन नियमों को और सख्त बनाया जाना चाहिए. इसके अलावा ट्रैफिक संचालन का काम करने वाले पुलिस कर्मचारियों को इन नियमों के बारे में प्रशिक्षण देना जरूरी है. हमारे देश में विदेशों की तर्ज पर ट्रैफिक नियमों को कड़ाई से लागू करने और ट्रैफिक पुलिस के जवानों को समय-समय पर संचालन के बेहतर तरीकों के बारे में प्रशिक्षण देने का न तो कोई ढांचा है और न ही कोई व्यवस्था. इसके साथ ही हमें तकनीक का बेहतर इस्तेमाल भी सीखना होगा. तेज गति की ड्राइविंग पर अंकुश लगाने के लिए खासकर हाइवे पर स्वचालित कैमरे लगाए जाने चाहिए. इससे कम से कम लापरवाही से ड्राइविंग करने वालों के मन में डर बना रहेगा.

बढ़ते सड़क हादसों को रोकने में सरकार की क्या और कितनी भूमिका है?

इस मामले में सरकार की भूमिका सबसे बड़ी है. ट्रैफिक नियमों को सख्त बनाना और उन पर कड़ाई से अमल कराना सरकार की जिम्मेदारी है. इसके साथ ही सड़कों की समय पर मरम्मत व रखरखाव भी उसी का काम है. कई मामलों में सड़कों की खस्ताहाली भी हादसों के लिए जिम्मेदार होती है. समयबद्ध योजना बना कर सड़कों के रखरखाव की जवाबदेही तय कर देने पर ऐसे हादसों को रोका जा सकता है. फिलहाल तो तमाम महानगरों में स्थानीय स्तर पर सड़क सुरक्षा सप्ताह मना कर सरकारें अपने कर्त्वयों की इतिश्री मान लेती हैं. मुझे लगता है कि सबसे पहले एक राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा नीति बनाना जरूरी है जिस पर अमल करना सभी राज्यों के लिए अनिवार्य हो. लेकिन इसके साथ ही यह भी तय है कि अकेले सरकार ही सड़क हादसों को पूरी तरह नहीं रोक सकती. इसके लिए ऐसी सुरक्षा योजनाओं और नीतियों में आम लोगों की भी भागीदारी जरूरी है.

बढ़ते हादसों पर अंकुश लगाने के लिए आम लोग क्या कर सकते हैं?

ऐसे मामलों में वाहन चलाने वालों की भूमिका अहम है. थोड़ी-सी सावधानी बरतने पर ऐसे कई हादसों से बचा जा सकता है. सड़क पर वाहन लेकर उतरने वाला अगर अपनी लेन में सामान्य गति से वाहन चलाए तो तस्वीर काफी हद तक बदल सकती है. इसके साथ ही शराब या दूसरे किसी नशे का सेवन करने के बाद ड्राइविंग करने और वाहन चलाते वक्त मोबाइल पर बातें करने जैसी चीजों पर रोक लगनी चाहिए. ट्रैफिक नियमों के मुताबिक ऐसा करना अपराध है. लेकिन मामूली जुर्माने का प्रावधान होने की वजह से लोगों के मन में इन नियमों से कोई डर नहीं है. वाहनों के नियमित रखरखाव और ड्राइविंग करते समय सेफ्टी बेल्ट बांधने जैसे कुछ सामान्य उपायों से भी सड़क हादसे में होने वाली मौतों की बढ़ती तादाद पर अंकुश लग सकता है.

सड़क हादसों के लिए पैदल चलने वाले या दोपहिया वाहन चलाने वाले किस हद तक जिम्मेदार हैं?

यहां फिर वही ट्रैफिक नियमों के सख्त नहीं होने का मुद्दा सामने आता है. ज्यादातर मामलों में दोपहिया वाहन चलाने वाले बिना हेलमेट पहने ड्राइविंग करते हैं. इससे हादसे की स्थिति में मौत का अंदेशा बढ़ जाता है. इसके अलावा पैदल यात्री भी व्यस्ततम सड़कों को पार करने के दौरान तेजी दिखाते हुए सिगनल का इंतजार नहीं करते. ऐसे मामलों में अक्सर हादसे होते हैं. कभी किसी यात्री को बचाने के फेर में तो कभी कहीं पहुंचने की जल्दी में रेड लाइट पार करने की हड़बड़ी में.

क्या ऐसे मामलों में गैर-सरकारी संगठनों की भी कोई भूमिका हो सकती है?

इसमें गैर-सरकारी संगठनों की भी बड़ी भूमिका है. ट्रैफिक सुरक्षा का मुद्दा समाज के कई तबके से जुड़ा है. इसमें पैदल यात्री से लेकर वाहन चलाने वाले और ट्रैफिक पुलिस तक शामिल हैं. सबसे पहले लोगों को ट्रैफिक नियमों के बारे में जागरूक करना जरूरी है. जब तक लोगों को मन में यह बात घर नहीं करेगी कि ट्रैफिक नियमों का पालन करना उनकी या किसी और की जान बचाने में अहम भूमिका निभा सकता है, तब तक हालात में ज्यादा सुधार नहीं होगा. सरकार को ऐसे संगठनों के साथ मिल कर देशव्यापी जागरुकता अभियान चलाना चाहिए. कई हादसे तमाम सुरक्षा के बावजूद हो जाते हैं. इनको पूरी तरह रोका तो नहीं जा सकता. लेकिन थोड़ी जागरुकता और थोड़ी सावधानी से इन पर काफी हद तक अंकुश तो लगाया ही जा सकता है.

इंटरव्यू: प्रभाकर, कोलकाता