जलवायु परिवर्तन से जूझता बांग्लादेश
९ अप्रैल २०१४बांग्लादेश की कई नदियों में घाट पर से सारी मिट्टी धीरे धीरे कट रही है. बांध टूट जाते हैं और बारिश के बाद बाढ़ में हजारों बेघर हो जाते हैं. जर्मन विकास विशेषज्ञ नदी का ब्योरा कर रहे हैं. वह ढाका के बीच से गुजरती बूरीगंगा नदी को थामने के लिए नए विकल्प खोज रहे हैं.
बांग्लादेश की राजधानी में एक करोड़ 60 लाख लोग रहते हैं. जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश बहुत ज्यादा हो रही है. पांच महीने के मानसून के दौरान अकसर बाढ़ आती है और हजारों बेघर हो जाते हैं. अब जाकर यहां लोग बाढ़ को रोकने की कोशिश कर रहे हैं.
जर्मन विकास संस्थान जीआईजेड के क्नूट ओबरहागेमान कहते हैं, "अब बाढ़ को रोकने के लिए शेल्टर बनाए जा रहे हैं. साथ ही बड़ी नदियों को स्थिर बनाने की कोशिश की जा रही है. बांग्लादेश में लोग अब ऐसी तकनीक विकसित कर रहे हैं जिससे बाढ़ से बचा जा सके."
बाढ़ के अलावा बांग्लादेश में प्रदूषण एक बड़ी समस्या है. देश में पत्थर की कमी है जिस वजह से ईंट बनाने की करीब 6,500 भट्टियां हैं. इन भट्टियों को कोयले से चलाया जाता है. जर्मन विकास बैंक केएफडब्ल्यू के विक्टर बोटचर बताते हैं, "इन भट्टियों से कार्बन डाई ऑक्साइड का बहुत ज्यादा उत्सर्जन हो रहा है. और अब हम कई सारे प्रॉजेक्ट पर सोच रहे हैं जिससे भट्टियों में आग लगाने के नए तरीके निकाले जा रहे हैं ताकि ऊर्जा कि खपत को आधा किया जा सके."
हालात और बुरे हो सकते हैं. बांग्लादेश का पानी हिमालय से आता है. अगर जलवायु परिवर्तन से हिमनद पिघलने लगे, तो बाढ़ का खतरा और बढ़ जाएगा.
रिपोर्टः कारोला ओलबर्त्स/एमजी
संपादनः ईशा भाटिया