जलवायु परिवर्तन पर दुनिया का रुख रहा सुस्त
ब्रिटेन की साइंस पत्रिका लैंसेट में छपी एक रिपोर्ट मुताबिक जलवायु परिवर्तन का साल 2000 के बाद से मानव स्वास्थ्य पर बेहद ही बुरा असर पड़ा है. गर्म हवायें और बीमारियों में वृद्धि हुई है और फसलों पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है.
सुस्त कदम
रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 25 सालों में ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए बेहद ही सुस्त कदम उठाये गये जिसने मानवीय जीवन और आजीविका को खतरे में डाल दिया है.
स्पष्ट प्रभाव
स्टडी के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव स्पष्ट हैं और ये नहीं बदलते हैं. साइंस पत्रिका में छपी इस रिपोर्ट को कई विश्वविद्यालयों समेत विश्व बैंक और विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ) ने मिलकर तैयार किया है.
अमेरिका बाहर
हालांकि अब दुनिया के कई देश पेरिस जलवायु समझौते के तहत ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन अमेरिका जैसा बड़ा कार्बन उत्सर्जन करने वाला देश अब इस समझौते से बाहर चला गया है.
बुजुर्गों पर खतरा
रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 से 2016 के दौरान दुनिया के तकरीबन 12.5 करोड़ लोग हर साल गर्म हवाओं के संपर्क में आते रहे, इसमें बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर विशेष रूप से जोखिम बना रहा और इनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा.
डेंगू के मामले
जलवायु और स्वास्थ्य से जुड़े 40 मानकों के आधार पर तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते दुनिया में डेंगू के मामले बढ़े हैं जिसके चलते सालाना 10 करोड़ लोग प्रभावित हो रहे हैं.
क्षमता घटी
कृषि मजदूरों की उत्पादकता में साल 2000 के बाद से तकरीबन 5.3 फीसदी की कमी आई है, भारत और ब्राजील जैसे देशों में गर्मी बढ़ने के चलते मजदूरों और श्रमिकों की कार्य क्षमता घटी है.
कुपोषण
जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा प्रभाव कुपोषण के रूप में सामने आया है. रिपोर्ट मुताबिक अफ्रीका और एशिया के करीब 30 देशों में कुपोषण के मामले बढ़े हैं, साल 1990 में कुपोषण से जुड़े मामलों की संख्या 39.8 करोड़ थी जो साल 2016 में 42.2 करोड़ तक पहुंच गई.
प्राकृतिक आपदायें
तूफान और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं में भी साल 2000 के बाद से 46 फीसदी की वृद्धि हुई है. हालांकि इसमें जान जाने के मामलों में वृद्धि नहीं हुई है. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि प्रशासन ने प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए कदम उठाये हैं.
आगे भी असर
स्टडी में जलवायु परिवर्तन के चलते अब तक कितनी जानें गयी हैं इसका तो कोई आंकड़ा पेश नहीं किया गया है लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने एक अध्ययन में कहा था कि साल 2030 से 2050 के बीच ये आंकड़ा 2.5 लाख तक पहुंच सकता है.
बॉन में उम्मीदें
इन नतीजों के बावजूद विश्व स्वास्थ्य संगठन के निदेशक और लैंसेट काउंटडाउन स्टडी के सहअध्यक्ष कर रहे एंथनी कोस्टेलो को अब भी उम्मीद नजर आती है. शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि बॉन में होने वाली जलवायु परिवर्तन कांफ्रेस पर इन मसलों पर विस्तार से चर्चा होगी.