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जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझता बंगाल

प्रभाकर मणि तिवारी
४ नवम्बर २०१७

भारत में बंगाल की खाड़ी को जलवायु परिवर्तन के लिहाज से दुनिया का सबसे संवेदनशील डेल्टा माना जाता है. कोलकाता और इसके आसपास के देहाती इलाकों के अलावा सुंदरबन का इलाका जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझ रहा है.

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Sunderbans
तस्वीर: Fotolia/lamio

दो साल पहले आयी एक अध्ययन रिपोर्ट में देश के 25 शहरों में कार्बन उत्सर्जन के मामले में कोलकाता शीर्ष पर था. दस हजार वर्ग किलोमीटर में फैले सुंदरबन इलाके में तो पर्यावरण के शरणार्थियों की तादाद लगातार बढ़ रही है. इस खतरे से निपटने के लिए अब इलाके में मैंग्रोव जंगल को बचाने की परियोजना के साथ ही सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने की योजना शुरू की गयी है. मैंग्रोव जंगलों के घटने की वजह से सुंदरबन के कई द्वीपों पर समुद्र में डूबने का खतरा मंडरा रहा है.

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जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों को कम करने के लिए हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने के प्रयास भी चल रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इन प्रयासों को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देना जरूरी है. इस बीच, आईआईटी खड़गपुर ने जलवायु परिवर्तन और इसके असर के विभिन्न पहलुओं पर शोध के लिए एक सेंटर फॉर एक्सीलेंस स्थापित करने का फैसला किया है. कुछ साल पहले कोलकाता में कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने और जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के लिए कोलकाता नगर निगम और ब्रिटिश डिप्टी हाईकमीशन ने यूके एड की सहायता से एक ब्लूप्रिंट तैयार किया था. इसके तहत सुझाये 12 बिंदुओं पर काम करने के लिए निगम को 12 लाख अमेरिकी डालर की सहायता भी मिली थी. लेकिन अब तक इस योजना पर खास प्रगति नहीं हो सकी है.

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अनूठी भौगोलिक स्थिति

पश्चिम बंगाल की भौगोलिक स्थिति अनूठी है. यह देश का पहला ऐसा राज्य है जो उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में बंगाल की खाड़ी तक पैला है. जलवायु परिवर्तन पर पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से तैयार कार्य योजना में कहा गया है कि वर्ष 2021 से 2050 के दौरान तापमान में 1.8 से 2.4 डिग्री सेल्शियस तक वृद्धि हो सकती है. इसके अलावा चक्रवाती तूफान का सिलसिला तेज होगा और समुद्र के जलस्तर में लगातार वृद्धि होगी. इस अध्ययन रिपोर्ट के नतीजे भयावह हैं. इनमें कहा गया है कि समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ने की वजह से वर्ष 2100 तक सुंदरबन का पूरा इलाका समुद्र में डूब जाएगा.

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अब केंद्र सरकार और दूसरे गैर-सरकारी संगठनों की सहायता से सुंदरबन के अलावा दूसरे इलाकों में जलवाय़ु परिवर्तन के खतरों पर अंकुश लगाने की दिशा में पहल की गयी है. इसके लिए सरकार ने 12 सूत्री एजेंडा तैयार किया है. इसके अलावा सौर ऊर्जा के उत्पादन और इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की गयी हैं ताकि ताप बिजलीघरों से बड़े पैमाने पर होने वाले कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश लगाया जा सके. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि बंगाल को अभी इस दिशा में लंबी दूरी तय करनी है.

समुद्र पर जलवायु परिवर्तन का असर

सुंदरबन इलाके में जलवायु परिवर्तन की वजह से लगातार बिगड़ते पर्यावरण संतुलन को बनाये रखने की योजना पर काम कर रहे जाने-माने पर्वारण विज्ञानी और जादवपुर विश्वविद्यालय में सामुद्रिक विज्ञान अध्यययन संस्थान के प्रमुथख डॉ. सुगत हाजरा कहते हैं, "सुंदरबन के विभिन्न द्वीपों में रहने वाली 45 लाख की आबादी पर खतरा लगातार बढ़ रहा है. इलाके में कई द्वीप पानी में डूब चुके हैं और कइयों पर यह खतरा बढ़ रहा है." वह बताते हैं कि खतरनाक द्वीपों के 14 लाख लोगों को दूसरी जगह शिफ्ट करने के साथ ही बाढ़ और तट कटाव पर अंकुश लगाने के लिए मैंग्रोव जंगल का विस्तार करने को प्राथमिकता देनी होगी. उनका कहना है कि सरकार को पर्यावरण की मार से पैदा होने वाले इन शरणरार्थियों के लिए एक ठोस नीति बनानी होगी.

सरकार ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जो रोडमैप तैयार किया है उसमें जल संसाधन, कृषि, जैविक विविधता और जंगल, स्वास्थ्य और ऊर्जा के क्षेत्रों पर खास ध्यान देने की बात कही गयी है. इसमें दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र और सुंदरबन को सबसे संवेदनशील क्षेत्र करार दिया गया है. पर्यावरण विभाग ने स्टेट एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज के तहत तैयार इस रोडमैप को लागू करने के लिए विभिन्न उप-समितियों का गठन किया है. इसके अलावा वृक्षारोपण पर खास जोर दिया जा रहा है. इसमें विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय क्लबों की सहायता ली जा रही है. इस मामले में सुंदरबन इलाके में मैंग्रोव जंगल को बढ़ाने पर भी ध्यान दिया जा रहा है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि वृक्षारोपण की मौजूदा गति से वांछित नतीजे नहीं मिलेंगे.

आईआईटी में नया केंद्र

राज्य के खड़गपुर स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) ने जलवायु परिवर्तन के नतीजों के अध्ययन के लिए एक सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित करने का फैसला किया है. अगले महीने से शुरू होने वाले इस केंद्र में 30 से 35 शोधार्थी जमीन, नदी, समुद्र व पर्यावरण पर जलवायु परिवर्तन के असर का अध्ययन करने वाली विभिन्न परियोजनाओं पर काम करेंगे. आईआईटी के निदेशक पार्थ प्रतिम चक्रवर्ती बताते हैं, "फिलहाल जलवायु परिवर्तन से निपटना दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती है."

वैज्ञानिकों का कहना है कि कोलकाता और दक्षिण बंगाल जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील है. चक्रवर्ती कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के असर के अध्ययन से बादल फटने और चक्रवाती तूफान के बारे में सटीक पूर्वानुमान लगाया जा सकता है. इससे इन प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में सहूलियत होगी. इस केंद्र के प्रमुख संयोजक और सामुद्रिकी अभियंत्रण विभाग के प्रमुख प्रोफेसर भास्करन कहते हैं, "जलवायु परिवर्तन की वजह से बीते एक दशक के दौरान चक्रवाती तूफानों के स्वरूप और गति में बढ़ोतरी हुई है." वह बताते हैं कि इस केंद्र में जलवायु परिवर्तन के असर के तमाम पहलुओं का गहराई से अध्ययन किया जाएगा ताकि उनसे निपटने या कम से कम के उनके असर को कम करने के लिए ठोस योजनाएं बनायी जा सकें.

सौर ऊर्जा को बढ़ावा

जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने और कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिए सरकार सौर ऊर्जा के दोहन पर भी जोर दे रही है. पश्चिम बंगाल हरित ऊर्जा विकास निगम के पूर्व प्रबंध निदेशक और सौर ऊर्जा विशेषज्ञ एसपी गोनचौधरी कहते हैं, "बंगाल में सौर ऊर्जा की व्यापक संभावनाएं हैं. समुचित दिशानिर्देश तैयार कर उसे सही तरीके से लागू करने की स्थिति में अगले पांच साल के दौरान सौर ऊर्जा से एक हजार मेगावाट बिजली पैदा करना कोई मुश्किल नहीं है."

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बीते साल राज्य में देश के पहले तैरते सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना की गयी थी. अब 1300 सरकारी इमारतों, स्कूलों और अस्पतालों की शिनाख्त की गयी है जहां छतों पर सौर ऊर्जा के पैनल लगाए जाएंगे. सरकार का लक्ष्य वर्ष 2017-18 के दौरान 120 मेगावाट बिजली पैदा करना है. सौर ऊर्जा परियोजनाओँ के लिए एक हजार करोड़ का प्रावधान रखा गया है.

लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह काम एक दिन या किसी एक संस्था का नहीं है. जलवायु परिवर्तन के असर पर अंकुश लगाने के लिए बड़े पैमाने पर सामूहिक और सतत प्रयासों की जरूरत है. इसके साथ ही यह सुनिश्चित करना होगा कि इन योजनाओं को जमीनी स्तर पर इमानदारी से लागू किया जाए.