जलवायु परिवर्तन: आगे बढ़ने का आखिरी मौका
१२ दिसम्बर २०१४लीमा में चल रही वार्ता का मकसद ऐसे ऐतिहासिक समझौते के लिए रास्ता साफ करना है जिसपर अगले साल पेरिस में हस्ताक्षर होने है. लीमा में जलवायु सम्मेलन पर चर्चा के लिए जुटे करीब 195 देश भावी संधि पर अब तक एक राय नहीं बना पाए हैं. हालांकि सामूहिक लक्ष्य तय करने के बदले इस बार एकल लक्ष्यों को केंद्र में रखा जा रहा है लेकिन प्रतिनिधियों ने गतिरोध की सूचना दी है.
पहला गतिरोध दिसंबर 2015 तक मार्गदर्शक वार्ता के ड्राफ्ट ब्लूप्रिंट को लेकर है. यह ऐसा दस्तावेज है जो बढ़ता ही चला जा रहा है क्योंकि देश ज्यादा से ज्यादा सुझाव और आपत्तियां इसमें जोड़ते जा रहे हैं. दूसरा गतिरोध उन सूचनाओं के मानकीकरण के प्रारूप पर है जिसके तहत कार्बन कटौती के लिए अलग अलग देश अपनी प्रतिज्ञा देंगे. यही भाग 2015 की संधि का केंद्र है.
संधि के लिए कदम
अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने अपने भाषण में सबसे कंटीले मुद्दे को उठाया और विकासशील देशों से कहा, "मुझे पता है कि चर्चा में तनाव हो सकता है और फैसले कठिन हैं और मुझे पता है कि कुछ लोग कितने गुस्से में हैं उस कठिन परिस्थिति में खुद को बड़े देशों द्वारा डाले जाने के बाद जिन्हें लंबे समय में औद्योगीकरण से लाभ हुआ है. लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि आज वैश्विक उत्सर्जन का आधे से ज्यादा हिस्सा विकासशील देशों से आ रहा है. तो जरूरत है कि वे भी कार्य करें."
दुनिया भर के प्रतिनिधियों की कोशिश है कि धरती का तापमान बढ़ाने वाली गैसों के वैश्विक उत्सर्जन को नियंत्रण में करने वाले समझौते पर सहमति बन सके. इसे 2020 से क्योटो संधि की जगह पर लागू किया जाएगा. ग्रीन हाउस गैसों को धरती के तापमान में वृद्धि के लिए दोषी माना जाता है. हाल में दुनिया के तीन सबसे बड़े कार्बन प्रदूषक अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ ने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करने की घोषणा की थी. ग्रीन जलवायु कोष में भी पैसा आने लगा है. इस कोष की मदद से अमीर देशों को विकासशील देशों की आर्थिक मदद करना है.
एए/एमजे (एएफपी, एपी)