जर्मनी में विदेशी मूल के पादरी से नस्लवादी भेदभाव
१० मार्च २०१६कॉन्गो मूल के एक पादरी ओलिवियर एनजिंबी-शिंडे को लगातार घृणित संदेश और जान से मारने तक की धमकियां मिल रही थीं. जर्मन प्रांत बवेरिया के एक ग्रामीण चर्च के पादरी ने तंग आकर इस ईसाई धार्मिक केंद्र को छोड़ने का फैसला लिया. अब बवेरिया प्रशासन और कई स्थानीय लोग इस पादरी के समर्थन में आ खड़े हुए हैं. बुधवार शाम करीब 3000 लोगों ने पादरी के समर्थन में प्रदर्शन किया.
समाचार एजेंसी एपी ने लिखा है कि पादरी को इस तरह की धमकियां पिछले साल नवंबर से ही मिलनी शुरु हुईं, जब उन्होंने एक स्थानीय नेता के शरणार्थियों के खिलाफ टिप्पणी पर बयान दिया था. इस रोमन कैथोलिक पादरी ने रविवार की प्रार्थना सभा के दौरान ही घोषणा की वह सोर्नेडिंग के गिरजे को छोड़ रहे हैं. 66 साल के पादरी शिंडे ने पहले एक अप्रैल तक रूक कर ईस्टर मनाने के बाद ही वहां से जाने की बात की थी, मगर बाद में हत्या की धमकियों के कारण तुरंत ही चले जाने का फैसला किया.
अब अचानक पादरी के हट जाने के फैसले से हैरान लोग, सामुदायिक अधिकारी और पुलिस साथ आई है और पादरी के समर्थन में खड़ी हुई है. मंगलवार को लोग जब चर्च पहुंचे तो अंदर कोई नहीं मिला और ना ही दरवाजा खुला. स्थानीय लोगों ने उनके नाम के मेलबॉक्स के पास संदेश लिख छोड़े हैं जिनमें लिखा है, "हम पादरी के साथ हैं" और "जान की धमकी देने वालों को गिरफ्तार करो."
बवेरिया के मुख्यमंत्री हॉर्स्ट जेहोफर ने भी पादरी को मिली जान की धमकी की निंदा की है और इसे "अस्वीकार्य" बताया है. पादरी शेंडे कॉन्गो में किसान परिवार में जन्मे थे. 1986 में म्यूनिख यूनिवर्सिटी में दर्शन की शिक्षा लेने वे पहली बार जर्मनी आए थे. डिग्री लेने के बाद वे डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो लौट गए लेकिन फिर 2005 में जर्मनी वापस आए. सोर्नेडिंग के सेंट मार्टिन गिरजे में उन्होंने 2012 से काम शुरु किया.
जर्मनी में विदेशी मूल का पादरी होना असामान्य बात नहीं है. भारत जैसे कई देशों से ईसाई धर्म से जुड़े कई पादरी जर्मनी समेत यूरोप के कई देशों में काम कर रहे हैं. लेकिन हाल के सालों में ऐतिहासिक शरणार्थी संकट झेल रहे यूरोपीय देशों में लोगों की चिंताएं बढ़ी हैं. कहीं ना कहीं यूरोपीय जीवन के हर पहलू पर शरणार्थियों के बढ़ते बोझ से गंभीर सामाजिक संकट पैदा हो रहे हैं.