जर्मनी के माता पिता: सिंगल भी, गरीब भी
६ जुलाई २०१६जर्मनी में कई अन्य यूरोपीय देशों की तरह बेरोजगारी भत्ता दिया जाता है. यदि किसी की आमदनी इतनी कम हो कि उससे परिवार का खर्च ना निकल सके, तो उस हाल में भी सरकार की ओर से इस तरह का भत्ता मुहैया कराया जाता है. गैर सरकारी संस्था बेर्टल्समन फाउंडेशन द्वारा किए गए एक ताजा शोध में पता चला है कि इस भत्ते को पाने वालों में सिंगल पेरेंट्स की संख्या काफी ज्यादा है.
जर्मनी में 23 लाख से भी ज्यादा बच्चे माता या पिता में से किसी एक के साथ रहते हैं. इनमें से एक तिहाई से भी ज्यादा सिंगल पेरेंट्स सोशल सिक्युरिटी पर निर्भर करते हैं. जहां माता पिता साथ रहते हैं, वैसे परिवारों में से केवल 7.3 फीसदी ही इस राशि पर निर्भर करते हैं, जबकि सिंगल पेरेंट्स की संख्या 37.6 प्रतिशत है.
शोध करने वाली आंत्ये फुंके इस बारे में बताती हैं, "अगर आप पर अकेले ही घर चलाने की जिम्मेदारी है, तो बच्चे का खर्च उठाना काफी मुश्किल हो जाता है और लोग गरीबी रेखा के नीचे पहुंच जाते हैं."
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इस समस्या के लिए वह सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराती हैं. वह बताती हैं कि जर्मनी में हर पांच में से एक परिवार ऐसा है जिसमें बच्चे सिंगल पेरेंट्स के ही साथ रहते हैं. बावजूद इसके सरकार ने अब तक इस ओर ध्यान नहीं दिया है. जब दो लोग मिल कर बच्चे की परवरिश करते हैं, तो खर्च आधा आधा बंट जाता है लेकिन एक ही इंसान की आमदनी से बच्चे को पालना काफी मुश्किल साबित होता है. ऐसा तब है जब सरकार बच्चे को पालने के लिए भी कुछ पैसा देती है.
स्टडी में कहा गया है कि इस समस्या का समाधान तभी हो सकता है जब दूसरा पार्टनर भी बच्चे का खर्च उठाए. फिलहाल 50 फीसदी सिंगल पेरेंट्स को अपने पार्टनर से बच्चे के मेंटेनेंस के नाम पर कुछ भी नहीं मिलता. इनके अलावा 25 फीसदी ऐसे हैं, जिन्हें धन मिलता तो है लेकिन नियमित रूप से नहीं. आंत्ये फुंके मानती हैं कि सरकार को मेंटेनेंस को ले कर बेहतर कानून बनाने की जरूरत है ताकि लोगों को गरीबी रेखा से नीचे जाने से रोका जा सके. फिलहाल सरकार छह साल के लिए ही बच्चों की परवरिश के लिए पैसा देती है और ऐसा 12 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ ही किया जाता है.
जर्मनी में गरीबी रेखा के नीचे उन लोगों को माना जाता है जिनकी मासिक आय 1150 यूरो यानी करीब 86 हजार रुपये से कम होती है. यह देश की औसत आय का 60 फीसदी है.
आईबी/वीके (डीपीए)