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जंगलमहल में चुनौती है चुनाव कराना

५ मई २०१४

भारत में हो रहे आम चुनावों के दौरान माओवादी प्रभाव वाले इलाकों में हिंसा हुई है. इस हफ्ते पश्चिम बंगाल के नक्सल प्रभावित इलाकों में मतदान हो रहा है.

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तस्वीर: DW/A. Chatterjee

जंगलमहल के नाम से मशहूर माओवादी असर वाले पश्चिम बंगाल के तीन जिलों, बांकुड़ा, पुरुलिया और पश्चिम मेदिनीपुर में चुनाव कराना चुनाव आयोग के लिए एक चुनौती है. राज्य के दूसरे हिस्सों की तरह एकाध प्रमुख सीटों के अलावा इलाके में चुनावों का कोई शोर नहीं है. ममता बनर्जी की अगुवाई वाली सरकार इलाके में शांति बहाली का श्रेय लेते हुए भले अपनी पीठ थपथपा रही हो, चुनावों के मौके पर माओवादियों के दोबारा संगठित होने की खबरों ने आयोग और सुरक्षा एजेंसियों के कान खड़े कर दिए हैं. इस इलाके में सात मई को मतदान होना है.

मतदान

सात मई को राज्य की छह सीटों, झाड़ग्राम, मेदिनीपुर, पुरुलिया, बांकुड़ा, विष्णुपुर और आसनसोल पर मतदान होगा. इनमें से पहली चार सीटें माओवादियों का गढ़ रहे जंगलमहल इलाके में है. यही सीटें सरकार और आयोग के लिए बड़ा सिरदर्द बन गई हैं. हाल की शांति के मद्देनजर शुरूआती दौर में आयोग ने इस इलाके को गंभीरता से नहीं लिया था.

Wiederaufbau nach Maoisten Angriff in Jungal Mahal Indien
माओवादी हमले में नष्ट घर का निर्माणतस्वीर: DW/A. Chatterjee

पिछले दो साल में इलाके में माओवादियों ने किसी बड़ी घटना को अंजाम नहीं दिया था, लेकिन पिछले महीने छत्तीसगढ़ में हुए हमले के बाद आयोग और खुफिया एजेंसियां अतिरिक्त सावधानी बरत रही हैं. इस इलाके में कुल 9,733 मतदान केंद्र हैं. आयोग ने इनमें से तीन हजार को संवेदनशील और 3,900 को अति संवेदनशील की श्रेणी में रखा है. इलाके में पिछले दिनों बमों और दूसरे विस्फोटक पदार्थों की बरामदगी ने आयोग की चिंता बढ़ा दी है.

सुरक्षा व्यवस्था

जंगलमहल इलाके में फिलहाल केंद्रीय सुरक्षा बलों की 35 कंपनियां तैनात हैं. चुनावों को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा बलों की तादाद दोगुनी की जा रही है. जंगलमहल के कई इलाके अब भी ऐसे हैं जहां मोबाइल नेटवर्क बेहद कमजोर है. इसलिए वहां तैनात चुनाव और सुरक्षा अधिकारियों को सेटेलाइट फोन मुहैया कराने का फैसला किया गया है. आयोग ने एहतियात के तौर पर माओवादी असर वाले इलाकों में मतदान तय समय से दो घंटे पहले यानी शाम चार बजे तक ही कराने का फैसला किया है. उसे आशंका है कि माओवादी अंधेरे का फायदा उठाकर मतदाताओं पर हमले कर सकते हैं. राज्य के सहायक मुख्य चुनाव अधिकारी अमित ज्योति भट्टाचार्य कहते हैं, "हमने बीएसएनएल समेत दूसरी मोबाइल कंपनियों से इलाके में नेटवर्क कवरेज बढ़ाने को कहा है. लेकिन विकल्प के तौर पर इलाके में तैनात सुरक्षा और चुनाव अधिकारियों को सेटेलाइट फोन मुहैया कराए जाएंगे."

सरकारी सूत्रों का कहना है कि चुनावों के एलान के बाद से ही माओवादी छोटे-छोटे गुटों में इन इलाकों में घूम रहे हैं. उन्होंने गांव वालों से नोटा बटन दबाने को कहा है. इससे पश्चिम मेदिनीपुर के बेलपहाड़ी, चाकुलिया और लालगढ़ इलाके के गांवों में दहशत का माहौल है. मतदान से पहले झारखंड से लगी सीमा सील कर दी जाएगी. लेकिन एक अधिकारी कहते हैं, "इलाके में घने जंगलों को ध्यान में रखते हुए सीमा को पूरी तरह सील करना संभव नहीं है. माओवादी इलाके की भौगोलिक स्थिति से भलीभांति अवगत हैं." छत्तीसगढ़ की घटना के बाद से ही इलाके में गश्त तेज कर दी गई है और तमाम प्रमुख सड़कों पर बारूदी सुरंगों की तलाश की जा रही है.

Mamata Banerjee indische Politikerin
चुनाव प्रचार करती ममता बनर्जीतस्वीर: Dibyangshu Sarkar/AFP/Getty Images

चुनाव प्रचार फीका

जंगलमहल इलाके में चुनाव प्रचार का रंग राज्य के दूसरे हिस्सों के मुकाबले काफी फीका है. ज्यादातर उम्मीदवार शहरी इलाकों में ही जनसभाएं कर रहे हैं. ग्रामीण इलाकों में किसी भी राजनीतिक दल के पोस्टर या बैनर नजर नहीं आते. गांव वालों में भी मतदान के प्रति कोई खास उत्साह नहीं है. लालगढ़ के एक किराना दुकान मालिक धीरेन महतो कहते हैं, "हम तो आपस में राय कर किसी एक पार्टी को वोट डालेंगे. ममता सरकार ने इलाके में कई विकास योजनाएं शुरू की हैं."

इसके बावजूद रोजगार और दूसरी कई समस्याएं जस की तस हैं. बांकुड़ा सीट पर तृणमूल कांग्रेस की सितारा उम्मीदवार मुनमुन सेन का प्रचार भी शहरी इलाकों तक ही सीमित है. माओवादियों का गढ़ रही अयोध्या पहाड़ी इलाके में जाने से उन्होंने भी परहेज किया है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इलाके में अब तक दो चुनावी रैलियां की हैं. भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने भी रविवार को बांकुड़ा में एक रैली को संबोधित किया. लेकिन सीपीएम या कांग्रेस का कोई बड़ा नेता चुनाव प्रचार के लिए इलाके में नहीं पहुंचा है.

राज्य चुनाव विभाग के एक अधिकारी कहते हैं, "जंगलमहल में शांतिपूर्ण तरीके से मतदान निपटने के बाद हम राहत की सांस ले सकते हैं."

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा