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छोटे हस्तक्षेपों से घटी कुपोषित बच्चों की संख्या

आशुतोष पांडेय१८ जुलाई २०१५

"एक क्षेत्र जो पिछड़ रहा है वो है उपयुक्त पूरक आहार. इसका मतलब है कि सही समय पर बच्चे को पूरक आहार मिलने की शुरूआत हो. छह महीने का होने के बाद बच्चे के लिए केवल मां का दूध पर्याप्त नहीं होता."

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

यूनिसेफ और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण के शुरूआती नतीजों के अनुसार बीते दशक में भारत की महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ है. यूनिसेफ इंडिया की सबा मेब्राह्टू का मानना है कि इस सर्वे का सबसे बड़ा सबक ये है कि छोटे एवं सरल हस्तक्षेपों से भी कुपोषित बच्चों की संख्या को घटाना संभव है.

Indien Saba Mebrahtu
"पिछले आठ वर्षों में हमने कई दूसरे स्वास्थ्य संकेतकों के साथ-साथ पोषण संबंधी संकेतकों में भी सुधार देखा है."तस्वीर: UNICEF

डॉयचे वेले: आप के अनुसार इस सर्वे के प्रारंभिक नतीजों की सबसे प्रमुख बातें क्या हैं?

सबा मेब्राह्टू: मोटे तौर पर यह सकारात्मक है क्योंकि यह पिछले आठ सालों में आई बड़ी गिरावट को दिखाता है. उदाहरण के तौर पर, कमजोर बच्चों की संख्या 47.1 से गिर कर 38.8 प्रतिशत पर आ गई. पिछले आठ सालों में दर्ज की गई यह गिरावट दर उसके पहले के दो सर्वेक्षणों से अधिक है. मेरे विचार से यह एक अच्छी कहानी है और काफी उत्साहजनक भी. लेकिन दरें अब भी ऊंची हैं, जिसका मतलब हुआ कि अब भी बहुत कुछ करने की जरुरत है.

आप इस सफलता का श्रेय किसको देती हैं?

पिछले आठ वर्षों में हमने कई दूसरे स्वास्थ्य संकेतकों के साथ-साथ पोषण संबंधी संकेतकों में भी सुधार देखा है. इस दौरान देश में निरंतर आर्थिक वृद्धि भी दर्ज हुई है, जिसका मतलब है कि देश के लोग ज्यादा संपन्न हुए हैं, आय और सामाजिक सेवाओं तक उनकी पहुंच बढ़ी है. महिलाओं की स्थिति में भी सुधार दर्ज हुआ है, शिक्षा तक उनकी पहुंच बढ़ी है, शादियां देर से हो रही हैं और मां बनने की उम्र में थोड़ी कमी आई है. इन सभी वजहों से कुपोषण का शिकार बच्चों के मामले कम हुए. व्यक्तिगत स्तर देखें तो स्तनपान, विटामिन ए के सप्लीमेंट और आयोडीन युक्त नमक के उपयोग जैसे पोषक चलन में काफी इजाफा हुआ है.

इस सफलता को और आगे बढ़ाने के लिए प्रशासन की ओर से और क्या किए जाने की जरुरत है?

एक क्षेत्र जो पिछड़ रहा है वो है उपयुक्त पूरक आहार. इसका मतलब है कि सही समय पर बच्चे को पूरक आहार मिलने की शुरूआत हो. छह महीने का होने के बाद बच्चे के लिए केवल मां का दूध पर्याप्त नहीं होता. इसके बाद की अवधि में बच्चों में तेज शारीरिक और मानसिक विकास होता है जिसके लिए उसे विभिन्न पोषक तत्वों से भरे खाद्य पदार्थों की जरूरत होती है. दो साल का होने के बाद बच्चे की लंबाई और दिमागी विकास को पहुंचे नुकसान की पूर्ति करना संभव नहीं होता. इसलिए छह और चौबीस महीनों के बीच की उम्र बहुत महत्वपूर्ण होती है.

किशोरियों में पोषण की स्थिति एक प्रमुख चिंता का विषय है. पिछले एक दशक में इसमें कोई सुधार नहीं आया है. आपकी राय में इस सुधार की राह में कैसी रुकावटें आ रही हैं?

कुछ सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाएं हैं और कुछ इस जानकारी का अभाव कि आखिर इसका क्या महत्व है और इससे सेहत और मस्तिष्क के विकास पर कितना प्रभाव पड़ता है. मुझे लगता है कि लोगों को शिक्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाने की जरूरत है. प्रधानमंत्री द्वारा शुरु किए बेटियों को पढ़ाने और उन्हें बचाने के “सेव द डॉटर” जैसे अभियान राजनीतिक संवाद में आए बहुत अच्छे बदलाव हैं. इससे लोगों में समझ बढ़ेगी कि लड़कियों का पोषण सिर्फ उनके लिए ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी महत्वपूर्ण है.

बाल कुपोषण और अवरूद्ध विकास से जुड़े इन सकारात्मक परिणामों के अन्य विकासशील देशों के लिए क्या मायने हैं? वे क्या कुछ सीख सकते हैं या किसका अनुकरण कर सकते हैं?

मेरे ख्याल से सबसे पहला सबक तो ये है कि छोटे एवं सरल हस्तक्षेपों से भी कमजोर बच्चों की संख्या को घटाना संभव है और इन हस्तक्षेपों को बड़े स्तर पर लागू करना भी मुमकिन है. उदाहरण के लिए भारत में बड़े पैमाने पर बच्चों को बांटे जाने वाले आयरन फोलिक एसिड के अभियान को ही देखिए. यह उन सबसे बड़े कार्यक्रमों में से एक है जो ना सिर्फ किशोरियों बल्कि लड़कों तक भी पहुंच रहा है, क्योंकि एनीमिया लड़कों के बीच भी काफी व्याप्त है. यह कार्यक्रम स्वास्थ्य और शिक्षा मंत्रालयों की स्कूलों के साथ साझेदारी के माध्यम से भी किशोरों तक पहुंच रहा है. इसके अलावा स्कूल से बाहर रह गए बच्चों तक समुदायों और आंगनवाड़ी केन्द्रों द्वारा पहुंचाया जा रहा है. यह एक बहुत अच्छा मॉडल है और इसीलिए मुझे लगता है कि यह अन्य देशों के साथ साझा करने लायक है.

सबा मेब्राह्टू यूनिसेफ इंडिया में बाल विकास एवं पोषण विभाग की प्रमुख हैं. मेब्राह्टू 15 सालों से भी अधिक समय से यूनिसेफ के साथ पोषण के क्षेत्र में काम कर रही हैं.

इंटरव्यू: आशुतोष पांडेय