चूहे पर एचआईवी इलाज सफल
२१ दिसम्बर २०१३अब तक एचआईवी के एक ही मरीज का पूरी तरह इलाज संभव हो सका है. जर्मनी में अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण की मदद से अंजाम दिए गए इस मामले को 'बर्लिन पेशेंट' के नाम से जाना जाता है. पिछले दिनों बॉस्टन में भी कुछ ऐसा ही दो मरीजों के साथ करने की कोशिश की गई लेकिन कुछ महीने जांच के लिए न आने के बाद एचआईवी विषाणु उनके शरीर में फिर पनप गया.
परिवर्तित एंजाएम
जर्मनी में चूहे पर हुए परीक्षण में मिली सफलता भविष्य में एचआईवी के इलाज के लिए मददगार साबित हो सकती है. लाइबनित्स इंस्टीट्यूट फॉर एक्सपेरिमेंटल वाइरोलॉजी के प्रोफेसर योआखिम हाउबर ने बताया कि वह एंजाइम में परिवर्तन करके इसकी मदद से संक्रमण को कोशिका के स्तर पर ही पलट देने पर काम कर रहे हैं. इस परिवर्तित एंजाइम का नाम है ट्री रीकॉम्बिनेज.
हाउबर ने बताया कि एचआईवी के साथ समस्या यह है कि जब यह मानव कोशिकाओं को संक्रमित करता है तो यह विषाणु का जीनोम मानव जींस में डाल देता है. इसी कारण हमें अब तक इस विषाणु से लड़ने में कामयाबी नहीं मिल सकी है.
सेल कल्चर पर एंजाइम को टेस्ट करने के बाद प्रयोग को चूहे पर आजमाया गया. पहले प्रयोगशाला में चूहे के रक्त को एचआईवी संक्रमित किया गया. इसके बाद परिवर्तित एंजाइम ट्री रीकॉम्बिनेज को चूहे के शरीर में डाला गया. एंजाइम ने एचआईवी संक्रमित कोशिकाओं से विषाणुओं को मिटा दिया.
इलाज की उम्मीद
रिसर्चरों को उम्मीद है कि वे ऐसा ही इंसानी कोशिकाओं पर भी कर सकेंगे. इसके लिए उन्हें पहले किसी एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के शरीर से खून का नमूना लेना होगा. फिर ट्री रीकॉम्बिनेज को इस सैंपल में मिलाया जाएगा. इसके बाद एंजाइम मिश्रित रक्त को मरीज के शरीर में फिर से पहुंचाया जाएगा. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि मरीज के खुद के स्टेम सेल के इस्तेमाल की वजह से शरीर परिवर्तित रक्त नमूने को अस्वीकार नहीं करेगा.
हालांकि अभी रिसर्च अपने शुरुआती स्तर पर ही है लेकिन दूसरे वैज्ञानिक भी इस रिसर्च से काफी उम्मीद लगा रहे हैं. पेरिस के पार्टियर इंस्टीट्यूट के एचआईवी रिसर्चर डॉक्टर आसियर सेएज सिरिऑन ने माना कि यह एचआईवी से निपटने का अनूठा तरीका है. उन्होंने कहा, "मेरी नजर में यह अब तक का पहला सबसे सटीक तरीका है जिससे एक खास तरीके से कोशिका से विषाणु को मिटाने की कोशिश की जा रही है."
उन्होंने यह भी माना कि चूहे में इस तकनीक से मिली कामयाबी को सिद्धांत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन असल कामयाबी तब है जब इससे इंसानों पर परीक्षण में भी सफलता मिले. साथ ही उन्होंने कहा, "हमें और बारीकी से जानने की जरूरत है कि वे कौन सी कोशिकाएं हैं जो संक्रमित होती है." उन्होंने बॉस्टन के मामले का उदाहरण दिया.
बॉस्टन में रिसर्चरों ने सोचा कि बर्लिन की तरह स्टेम सेल प्रत्यारोपण से उन्हें भी एचआईवी के इलाज में कामयाबी मिलेगी. इसलिए उन्होंने मरीज के शरीर से संक्रमित कोशिकाएं निकालीं और उन्हें नई असंक्रमित कोशिकाओं से बदल दिया. लेकिन कुछ समय बाद विषाणु फिर पनप गया. इसलिए किस कोशिका पर संक्रमण का असर हो रहा है यह जानना बहुत जरूरी है.
ऐसा ही कुछ हाउबर के ट्री रीकॉम्बिनेज प्रयोग में भी होने की संभावना है. किरिऑन ने कहा, "हमें पता होना चाहिए कि विषाणु शरीर में कहां कहां छुप कर बैठता है. वरना हम कुछ कोशिकाओं से तो विषाणु को मिटा सकेंगे, कुछ से नहीं. और इससे विषाणु फिर से कई गुना फैलने लगेगा."
हाउबर मानते हैं कि एचआईवी के सफल इलाज के लिए सबसे बढ़िया होगा अगर कई तरीकों को एक साथ मिलाया जाए. यानि एक तो वह तरीका जिससे एचआईवी संक्रमित कोशिकाओं की संख्या घटती है और दूसरा वह जिससे शरीर में रोग प्रतिरोधन क्षमता बढ़ती है.
रिपोर्ट: चिपोंडा चिंबेलू/एसएफ
संपादन: महेश झा