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चुनौती है भारत-रूस दोस्ती

१० दिसम्बर २०१४

अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ बढ़ते तनाव के बीच रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन का भारत दौरा हो रहा है. कुलदीप कुमार का कहना है भूराजनैतिक स्थिति में बदलाव का असर भारत और रूस के रिश्तों पर भी पड़ेगा.

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तस्वीर: Reuters/Michael Klimentyev/RIA Novosti/Kremlin

भारत और रूस के घनिष्ठ संबंध जगजाहिर हैं. जब जुलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से ब्राजील में मिले, तो मिलते ही उन्होंने पुतिन से कहा कि भारत का हर बच्चा जानता है कि रूस भारत का सबसे अच्छा दोस्त है. अब पुतिन प्रति वर्ष होने वाली भारत-रूस शिखर वार्ता के लिए नई दिल्ली में हैं. बृहस्पतिवार को मोदी के साथ उनकी द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊंचाइयों तक ले जाने के उद्देश्य से विस्तृत बातचीत होगी. आशा की जा रही है कि दोनों देशों के बीच पंद्रह-बीस समझौतों पर भी हस्ताक्षर हो सकते हैं.

लेकिन भारत-रूस दोस्ती की राह अब उतनी आसान नहीं रह गई है जितनी कभी हुआ करती थी. यह दोस्ती 1950 के दशक के मध्य से शुरू होकर 1980 के दशक के अंत तक लगातार परवान चढ़ती रही क्योंकि उस समय पूरी दुनिया शीतयुद्ध की चपेट में थी, भारत के चीन और पाकिस्तान के साथ संबंध खराब हो रहे थे, चीन पाकिस्तान के साथ खड़ा हो गया था और रूस एवं चीन के संबंधों में लगातार तनाव आ रहा था. उस समय दुनिया में अमेरिका और रूस---दो ही महाशक्तियां थीं. लेकिन आज स्थिति बहुत भिन्न है.

आज चीन अमेरिका के बाद दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति है. आर्थिक स्पर्धा के बावजूद उसके अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ व्यापारिक संबंध बहुत अच्छे हैं. वह आज भी पाकिस्तान के साथ है. यही नहीं, वह दक्षिण एशिया क्षेत्र के सभी देशों के साथ अपने संबंध गहरे बनाता जा रहा है. उधर रूस और अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों के खेमे के बीच एक बार फिर लगभग शीतयुद्ध की स्थिति पैदा हो गई है. क्रीमिया के मसले पर रूस के खिलाफ प्रतिबंध लगाए जाने के बाद उसकी मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. रूस के लिए चीन का दामन पकड़ना एक मजबूरी बनती जा रही है. उधर भारत के भी अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ संबंध सुधरे हैं. यानि विश्व की भू-राजनीतिक परिस्थितियों में भारी बदलाव आया है.

इस पृष्ठभूमि में यह स्वाभाविक है कि भारत-रूस के संबंध भी बदलें. अब रूस चीन को भी वैसे ही हथियार और सामरिक तकनीकी देने को राजी है जिन्हें वह कभी केवल भारत को ही दिया करता था. वह पाकिस्तान को भी हेलीकाप्टर बेचने की सोच रहा है. आज भी वह भारत को सबसे अधिक हथियार सप्लाई करने वाला देश है लेकिन इस पिछले दो दशकों के दौरान भारत ने इस्राइल आदि देशों से भी हथियार खरीदना शुरू कर दिया है. यदि रूस और अमेरिका एवं अन्य पश्चिमी देशों के बीच तनाव बढ़ता गया और रूस चीन एवं पाकिस्तान के नजदीक आता गया, तो भारत के लिए मुश्किल पैदा हो सकती है.

भारत और रूस के सामने सबसे बड़ी चुनौती है पारस्परिक व्यापार को बढ़ाना. इस समय दोनों देशों के देशों के बीच प्रति वर्ष होने वाला व्यापार सिर्फ छह अरब डॉलर का ही है जो रूस और चीन के बीच होने वाले व्यापार का पंद्रहवां हिस्सा भी नहीं है. भारत के भी कुल विदेश व्यापार का यह मात्र एक प्रतिशत है. रूस दुनिया का प्रमुख तेल निर्माता देश है और उसके पास प्राकृतिक गैस के प्रचुर भंडार हैं. आशा की जा रही है कि राष्ट्रपति पुतिन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच वार्ता के बाद गैस पाइपलाइन के बारे में किसी समझौते की घोषणा की जाए. दोनों देशों के बीच का आर्थिक संबंध केवल हथियारों की खरीद-फरोख्त तक सीमित नहीं रह सकता. ऊर्जा, रक्षा और उच्च तकनीकी, इन तीन क्षेत्रों में यदि दोनों देश अपने सहयोग को नई ऊंचाई देने में सफल होते हैं तो उनकी दोस्ती के उज्ज्वल भविष्य के बारे में आश्वस्त हुआ जा सकता है.

अफगानिस्तान से नाटो सेनाओं की वापसी के बाद उस देश के बारे में रूस और भारत को अपनी नीतियां ऐसी बनानी होंगी ताकि वहां राजनीतिक स्थिरता बढ़े और आतंकवाद पर लगाम लगे. यदि ऐसा हुआ तो इससे अमेरिका और पश्चिमी देश खुश ही होंगे. अगले माह अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत के गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि होंगे. वह पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं जिन्हें इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है. हालांकि गुटनिरपेक्षता का सिद्धांत अब मरा हुआ मान लिया गया है, लेकिन अमल में वही आ रहा है.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार