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चुनाव के लिए पढ़ाई और सफाई जरूरी

निर्मल यादव१० दिसम्बर २०१५

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए हरियाणा में पंचायत के चुनाव लड़ने के लिए साक्षरता और घर में शौचालय होने को अनिवार्य पैमाना बनाया है.

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Oberstes Gericht in Indien
तस्वीर: CC-BY-SA-3.0 LegalEagle

भारत में राजनीति का अपराधीकरण और राजनीति का गिरता स्तर चुनाव सुधार प्रक्रिया की राह की बड़ी बाधा बन गए हैं. अदालत ने इस दिशा में एक अहम फैसला सुनाते हुए शैक्षिक योग्यता ही नहीं, बल्कि घर में शौचालय की अनिवार्यता को चुनाव लड़ने की योग्यता का आधार बना कर क्रांतिकारी कदम उठाया है.

सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन भारतीय चुनावी राजनीति के लिए अशिक्षत होने को बाधक घोषित करना अपने आप में अहम बदलाव का प्रतीक बन गया है. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न सिर्फ हरियाणा जैसे पिछड़े राज्य के लिए, बल्कि समूचे भारत के लिए नजीर साबित होगा. फैसले की सबसे अहम बात पंचायती चुनाव में पुरुषों के लिए कक्षा दस, महिलाओं के लिए कक्षा आठ और दलित उम्मीदवारों के लिए कक्षा पांच पास होने की अनिवार्यता को लागू करने के हरियाणा राज्य सरकार के फैसले को सही ठहराना है. अदालत ने इससे भी दो कदम आगे जाकर पंचायत चुनाव में उम्मीदवार के घर में शौचालय की अनिवार्यता को योग्यता का पैमाना घोषित कर नए बदलाव का सूत्रपात किया है.

दरअसल अदालत ने यह फैसला हरियाणा की विशेष सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए दिया है. यह वही हरियाणा है जिसमें शैक्षिक पिछड़ेपन की बदौलत ही लिंगानुपात खतरनाक स्तर पर पहुंच गया था. शिक्षा को उम्मीदवारी का आधार घोषित करने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली दो महिला याचिकाकर्ताओं को अदालत ने महिलाओं की भलाई से जोड़ते हुए इसे लागू करने की अनुमति दी है. साथ ही घर में शौचालय की अनिवार्यता को भी चुनाव की उम्मीदवारी की योग्यता के पैमाने से जोड़ना दूरगामी फैसला है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट बताती है कि हरियाणा सहित देश के अन्य पिछड़े राज्यों के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के प्रति यौन हिंसा से जुड़े अधिकांश मामलों में पाया गया है कि खुले में शौच करने वाली महिलाएं यौन हिंसा की शिकार हुई हैं. कुल मिलाकर अदालत का यह फैसला हरियाणा ही नहीं बिहार, उत्तर प्रदेश और ओडीशा सहित तमाम पिछड़े राज्यों के लिए चुनाव सुधार की दिशा में अहम पड़ाव साबित होगा.

जहां तक फैसले के व्यवहारिक पहलू का सवाल है तो अदालत ने बिजली के बिल की अदायगी को चुनावी योग्यता का अनिवार्य पैमाना घोषित करने से इंकार कर दिया. राज्य सरकार ने पंचायती राज अधिनियम में संशोधन कर बिजली का बिल अदा नहीं करने वालों को पंचायत चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दिया था. अदालत ने ग्रामीण अंचल में लोगों की पांच हजार रुपये मासिक आय की हकीकत को सामने रखकर इसे अमान्य करार दिया. इतना ही नहीं, अदालत ने ग्रामीण क्षेत्रों में 83 और शहरी क्षेत्रों में 67 प्रतिशत महिलाओं के निरक्षर होने की हकीकत को व्यवहारिकता के पैमाने पर सही नहीं माना.

अदालत ने इसे संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन नहीं माना. फैसले में अदालत ने कहा कि निरक्षर लोगों को चुनाव लड़ने के अधिकार से वंचित करना मौलिक अधिकारों का हनन नहीं माना जा सकता है. इसमें कोई शक नहीं कि समाज और देश के व्यापक हित को ध्यान में रखते हुए चुनाव लड़ने के इच्छुक लोगों को न्यूनतम शिक्षा और सफाई के मानकों को पूरा करने की बाध्यता आरोपित करना सार्वभौमिक हित में है. खासकर भारत जैसे देश में जहां चुनाव सुधार की जरूरत संवैधानिक अधिकारों की आड़ में ही पूरी नहीं हो पा रही है. राजनीति में बढ़ता अपराधीकरण चिंता का विषय है और समाधान भी इसी व्यवस्था में रहते हुए निकालने होंगे.