चुकानी होगी तुर्की से समझौते की कीमत
५ मई २०१६यह साफ तौर पर ब्लैकमेल है. अंकारा की सरकार का ये खुली चुनौती देना कि अगर ईयू ने तुर्की के नागरिकों को यूरोपीय संघ के देशों में बिना वीजा यात्रा की अनुमति नहीं दी, तो वे ग्रीस से शरणार्थियों को वापस लेना बंद कर देंगे.
लेकिन किसी ब्लैकमेलिंग के काम कर जाने में हमेशा दो पक्षों का हाथ होता है. पहला जिसने धमकी दी और दूसरा जो ब्लैकमेल किए जाने की स्थिति में पहुंचा. तुर्की की एर्दोवान सरकार ने यूरोप के लिए जो रियायत दी, उसके बदले में यूरोप को भी कुछ ना कुछ तो करना ही होगा - भले ही वह कीमत चुकाना कई यूरोपीय लोगों को मुश्किल लगे.
क्या हमें एर्दोवान की लोकतंत्र-विरोधी राजनीति के बारे में अभी अभी पता चला है?
यूरोपीय लोगों को कम से कम ऐसा तो नहीं दिखाना चाहिए जैसे कि वे तुर्की को वीजा-फ्री डील मिलने पर ही समझ पाए हैं कि एर्दोवान के नेतृत्व में तुर्की लोकतंत्र के मार्ग से दूर जा रहा है. बॉस्फोरस के एक बेलगाम शासक के तौर पर उन्हें तब तक सामाजिक मान्यता मिल रही थी जब तक वह शरणार्थी मुद्दे पर समझौता करने वाले प्रमुख व्यक्ति थे.
जर्मनी समेत, कई ईयू देशों में घरेलू मोर्चे पर दबाव इतना बढ़ चुका था कि सरकारों ने कई लोकतांत्रिक मुद्दों पर खड़े सवालों को नजरअंदाज कर दिया.
दूसरे पक्ष को देखें तो भला लगभग 20 लाख सीरियाई शरणार्थियों को लेने वाला तुर्की ऐसे और लोगों को स्वीकार करने को राजी क्यों होगा, अगर उसे इसके बदले कुछ ना मिले?
यूरोप ने जिस तीन अरब यूरो की रकम का वादा किया है, वो सीधे तुर्की के सरकारी खजाने में नहीं जाएंगे बल्कि उस देश में शरणार्थियों की देखभाल से जुड़े प्रोजेक्टों में लगाए जाने हैं. अगर ऐसी राजनीतिक जीत भी ना मिले तो फिर तुर्की को ऐसा करने की प्रेरणा आखिर कहां से मिलेगी. तुर्क लोगों के लिए ईयू में वीजा-फ्री यात्रा का अधिकार पाने की कवायद कई दशकों से जारी थी.
इसे मनवाने के लिए तुर्की को कोई जोर आजमाइश भी नहीं करनी पड़ी. बल्कि किसी भी तरह यूरोप में और शरणार्थियों का आना रोकने के समझौते के बदले में खुद अंगेला मैर्केल की ओर से किया गया एक हताशा भरा प्रयास था. चांसलर मैर्केल को राष्ट्रपति एर्दोवान के साथ आने के लिए कई बार मजाक और उलाहना झेलनी पड़ी. वे यह भी अच्छी तरह जानती थीं कि इस सब की उन्हें कीमत भी चुकानी होगी. सब कुछ जानते हुए भी अब उनकी पार्टी ऐसा नहीं कह सकती कि तुर्की को किसी तरह की "रिफ्यूजी छूट" नहीं मिलनी चाहिए.
एक गलती थी ईयू-तुर्की रिफ्यूजी डील
अब ब्रसेल्स में किसी तरह तुर्की की राजनीति को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने की कोशिश करने के अनुरोध हो रहे हैं. ऐसा हो सके तो बहुत बढ़िया बात होगी. लेकिन अगर हम केवल आशावादी ना होकर थोड़े यथार्थवादी भी बनें, तो कह सकते हैं कि इतने सालों से ईयू के तुर्की पर बिल्कुल ध्यान ना दिए जाने के दौरान वह अलोकतांत्रिक इलाके में प्रवेश कर गया है. ऐसे में उसकी ओर केवल असहाय होकर देखा जा सकता है.
यूरोप को तुर्की में हो रहे मानवाधिकारों पर हमले, कुर्दों की प्रताड़ना, पत्रकारों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई किए जाने जैसी बातों की निंदा करनी ही होगी. एर्दोवान की तानाशाही प्रवृत्तियों को तोड़ने के लिए उनपर राजनैतिक और आर्थिक दबाव का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
लेकिन इन शर्तों के तहत ईयू को तुर्की के साथ रिफ्यूजी डील पर सहमति नहीं बनानी चाहिए थी. यह एक गंदा सौदा है. यह यूरोप की दरिद्रता का प्रतीक भी है कि उसके तुर्की जितने सीरियाई शरणार्थी भी नहीं लिए. लेकिन अब ऐसा दिखाना जैसे यूरोप को अंकारा की लोकतांत्रिक साख के बारे में अभी अभी पता चला हो, केवल पाखंड है.
आखिर जो आर्डर देता है, बिल भी उसे ही भरना होता है - राजनीति में भी.
बारबरा वेजेल