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चीन के दबाव में दबता नेपाल

१ अप्रैल २०१४

नेपाल में तिब्बतियों की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. वो आए दिन अपहरण, पिटाई और जबरन चीन भेजे जाने जैसे संकट का सामना कर रहे हैं. मानवाधिकार संस्था के मुताबिक चीन के दवाब में नेपाल झुकता जा रहा है.

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तस्वीर: AP

मानवाधिकारों पर नजर रखने वाली संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक बीजिंग के दबाव का असर अब काठमांडू पर साफ दिखाई पड़ रहा है. नेपाल में रहने वाले कई तिब्बतियों और नेपाली अधिकारियों से बातचीत कर ह्यूमन राइट्स वॉच ने एक रिपोर्ट तैयार की है. रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल में 2008 से तिब्बती कई तरह की पाबंदियां झेल रहे हैं.

नेपाल में 20,000 तिब्बती रहते हैं. इनमें शरणार्थी, भिक्षु और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच के एशिया निदेशक ब्रैड एडम्स कहते हैं, "नेपाल चीन के दबाव में झुक रहा है और सीमा पर तिब्बतियों की संख्या को नियंत्रित कर रहा है और अपनी कानूनी जिम्मेदारी का उल्लंघन कर तिब्बतियों पर प्रतिबंध लगा रहा है."

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तिब्बतियों के प्रदर्शन पर पुलिस की सख्तीतस्वीर: AP

काठमांडू ने नेपाल में तिब्बतियों के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया है. उनकी निगरानी बढ़ा दी गई है. ऐसे मामले भी सामने आए हैं जब भारत जाने की इच्छा रखने वाले तिब्बतियों को नेपाल चीन सीमा से जबरन लौटा दिया गया. ह्यूमन राइट्स वॉच ने नेपाल पर संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी से किये वादे की अनदेखी का आरोप भी लगाया है.

हालांकि नेपाल ने 1951 की यूएन शरणार्थी संधि पर दस्तखत नहीं किये हैं लेकिन वह "जेंटलमैन्स एग्रीमेंट" के तहत काम कर रहा है. इसके मुताबिक नेपाल को भारत जाने वाले तिब्बतियों को सुरक्षित रास्ता मुहैया कराना है ताकि वहां पहुंचकर वो शरणार्थी का दर्जा हासिल कर सकें.

नेपाल चीन सीमा पर दोनों तरफ से हो रही सख्ती का असर तिब्बतियों की संख्या पर भी दिख रहा है. 2007 में जहां 2,000 तिब्बती नेपाल आए, वहीं बीते साल यह संख्या सिर्फ 171 थी. नेपाल के पूर्व गृह मंत्री तो यह भी कह चुके हैं कि अगर उनकी सीमा पुलिस को तिब्बती "वैध शरणार्थी" नहीं लगे तो उन्हें वापस भेज दिया जाएगा.

ओएसजे/एमजे (एएफपी)