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घरेलू जिहादियों से परेशान जर्मनी

२७ जून २०१४

सीरिया में चल रहे गृहयुद्ध में यूरोपीय देशों के नौजवानों का हिस्सा लेना इन देशों के लिए सिरदर्द बन गया है. खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार उनमें जर्मन मूल के भी लोग भी शामिल हैं. वे खुद को जिहादी कहते हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

फिलिप पिज्जा डिलीवरी का काम किया करता था. अब उसने अपने फेसबुक पेज पर कलाश्निकोव की तस्वीरें डाली हुई है. खुद को वह अल्लाह का खादिम बताता है. अपना नाम उसने बदल कर अबु ओसामा कर लिया है. जर्मनी का फिलिप अब सीरिया का जिहादी बन गया है. सरकार की चिंता है कि इस आतंकवादी के पास जर्मनी का पासपोर्ट है. जर्मनी की सत्ताधारी पार्टी सीडीयू के महासचिव थोमस श्ट्रोबेल का इस बारे में कहना है, "हमें इन लोगों से नागरिकता छीन लेने के बारे में सोचना होगा." लेकिन कानूनी मामलों के जानकार इस से इत्तिफाक नहीं रखते. कातरीन गीयरहाके वकील हैं. उनका कहना है कि मौजूदा कानून के अंतर्गत किसी से नागरिकता छीन लेना कोई आसान काम नहीं.

विदेश जाने पर रोक

वहीं जर्मनी की हेसेन राज्य की न्याय मंत्री एफा कूने होएरमन इस बारे में अलग सोच रखती हैं. जर्मन अखबार 'बिल्ड' को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि अगर उनका बस चलता तो फिलिप और उस जैसे अन्य लोग कभी देश छोड़ कर ही नहीं जा पाते, "जो युवा लोग बाहर जा कर लड़ाई में हिस्सा लेना चाहते हैं, उन्हें विदेश जाने की अनुमति ही नहीं मिलनी चाहिए."

इसके विपरीत गीयरहाके का कहना है कि ये जल्दबाजी में लिए जाने वाले फैसले होंगे. पर साथ ही वह मानती हैं कि इससे पता चलता है कि 'जिहादियों' के खिलाफ कानून बनाने की सख्त जरूरत है. बर्लिन के एक मशहूर रैपर 'डेसो डॉग' का नाम भी जिहादियों की इस सूची में जुड़ा हुआ है. परेशानी यह है कि ये लोग विदेश जा कर अपनी विचारधारा बदल लेते हैं और इसके खिलाफ कोई कानून कुछ नहीं कर सकता. इसके बाद ये लोग इंटरनेट की मदद से अपना संदेश फैलाने की कोशिश में लग जाते हैं.

ब्रसेल्स में हमला

जर्मनी की खुफिया एजेंसी का कहना है कि सीरिया में कई जर्मन मूल के लोग जंग लड़ रहे हैं. इसके अलावा जर्मनी में ही 43,000 ऐसे लोगों की पहचान की गयी है, जो इस्लाम के नाम पर हिंसा भड़का सकते हैं. हाल ही में ब्रसेल्स में यहूदी सिनागॉग के बाहर हुई गोलीबारी ने भी चिंता बढ़ा दी है. इस हमले में चार लोगों की जान गयी. हमलावर सीरिया से लौटा एक जिहादी था, जो फ्रांस से नाता रखता था. जर्मन सरकार को इस बात की चिंता सता रही है कि फिलिप जैसे लोग देश लौट कर इस तरह की वारदातों को अंजाम दे सकते हैं.

दूसरी तरफ विपक्षी ग्रीन पार्टी सीडीयू की नागरिकता छीन लेने की मांग को गैरजरूरी बता रही है. पार्टी की प्रवक्ता आइरीन मिहालिक ने कहा, "कानून के अंतर्गत जो साधन हैं, वे काफी हैं. सुरक्षा एजेंसियों को जरूरत है कि लगातार उनका इस्तेमाल करें और आतंकवाद से खतरे की जांच करें और जरूरत पड़ने पर वक्त रहते उससे निपटें."

टेरर कैम्प लॉ

जर्मनी में 2009 में आतंकवाद से जुड़ा एक कानून पारित किया गया जिसे 'टेरर कैम्प लॉ' के नाम से जाना जाता है. इस कानून के अनुसार किसी आतंकवाद शिविर में जाना या किसी भी तरह की आतंकवादी ट्रेनिंग लेना गैरकानूनी है. लेकिन पिछले पांच साल से इस कानून पर बहस चल रही है. वकील कातरीन गीयरहाके का कहना है कि जर्मनी की न्यायप्रणाली में अपराध की रोकथाम पर कोई कानून नहीं हैं और इनकी सख्त जरूरत है.

वह मानती हैं कि लोकतंत्र में हर गतिविधि पर नजर रखना मुमकिन नहीं, लेकिन उनका सुझाव है कि जिन लोगों पर शक हो, सरकार उन पर और उनके जान पहचान के लोगों पर कड़ी नजर रखे, जरूरत पड़ने पर उन्हें एहतियाती हिरासत में भी लिया जाए ताकि वक्त रहते किसी हमले को रोका जा सके. वह मानती हैं कि सरकार ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच चर्चा करने से जागरूकता ही फैला सकती है, "लेकिन किसी के जंग में जाने पर रोक नहीं लगा सकती."

रिपोर्ट: स्पेंसर किमबॉल/आईबी

संपादन: महेश झा