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ग्रीक संकट और ईयू की विश्वसनीयता

महेश झा२९ जून २०१५

ग्रीस संकट में सबकी नजर यूरोपीय संघ की बड़ी अर्थव्यवस्थाओें जर्मनी और फ्रांस पर है जिनके नेताओं ने पिछले हफ्तों में मध्यस्थता की कोशिश भी की है. ग्रेक्जिट की आशंकाओं के बीच जर्मनी और फ्रांस के अखबारों ने टिप्पणी की है.

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तस्वीर: Reuters//Bundesregierung/Guido Bergmann

ग्रीस संकट के बारे में 1908 से प्रकाशित हो रहे फ्रांसीसी आर्थिक दैनिक ले एकोस ने लिखा है, "ग्रीस अब से एक घातक ढलान पर है क्योंकि ग्रेक्जिट की परिस्थितियों की शुरुआत कर दी गई है. रविवार को ग्रीक मतदाता संभवतः जनमत संग्रह में यूरोपीय आयोग द्वारा मांग किए गए सुधारों पर नहीं का मत देंगे. फिर ग्रीस सरकार को नए नोट जारी करने होंगे. खराब मुद्रा अच्छी को खदेड़ देगी."

पेरिस के वामपंथी दैनिक लिबरास्यों भी ग्रीस में हो रहे विकास पर चिंतित है. अखबार लिखता है, "यूरोजोन से ग्रीस का बाहर निकलना स्थिति को और बिगाड़ देगा, खासकर जरूरतमंदों की. ग्रीस के लोगों को इसका पता है. ग्रीस की वामपंथी सिरीजा सरकार की अबतक जारी लोकप्रियता के बावजूद वे यूरो का व्यापक समर्थन कर रहे हैं और शुरुआती सर्वेक्षणों के अनुसार यूरोपीय योजना को पास कर देंगे. दूसरे यूरो देश ग्रेक्जिट से बचना चाहते हैं, या और भी बुरे, दूसरे देशों के यूरो से बाहर निकलने के जोखिम को जिनका भूराजनीतिक दृष्टिकोण मध्यपूर्व की कुव्यवस्था में इतना महत्वपूर्ण पहले कभी नहीं था."

फ्रांसीसी अखबार ले फिगारों ने ग्रीस संकट के बारे में लिखा है, "साझा मुद्रा के लिए सदस्य देशों के प्रतियोगी क्षमता में कम से कम एक समानता की जरूरत है, कर देने की स्वीकारोक्ति, राजकोष में संतुलन लाने की इच्छा और क्षमता. ग्रीक प्रधानमंत्री सिप्रास इसमें विश्वास नहीं करते और अपनी जनता को अज्ञात में छलांग लगाने का प्रस्ताव दे रहे हैं. फैसला ग्रीक लोगों के हाथों में है."

वियना से प्रकाशित होने वाले ऑस्ट्रियन अखबार डी प्रेसे ने ग्रीस संकट की पृष्ठभूमि में यूरोपीय संघ में चल रहे विवाद पर लिखा है, "आर्थिक रूप से कोई प्रलय नहीं आएगा यदि ग्रीस यूरोजोन में नहीं रहेगा. लेकिन यूरोपीय संघ की अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता के लिए बातचीत का ऐसा नतीजा, यदि मौजूदा फैसला बरकरार रहता है, अत्यंत नुकसानदेह होगा."

मैर्केल को समर्थन

जर्मनी में फिलहाल ग्रीस संकट पर चांसलर अंगेला मैर्केल को पूरा समर्थन है. खासकर कंजरवेटिव मीडिया का. ग्रीस संकट के लिए वे प्रधानमंत्री सिप्रास को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. बर्लिन से प्रकाशिक अनुदारवादी दैनिक डी वेल्ट ने लिखा है, "बहुत से संकेत ऐसे हैं कि सिप्रास शुरू से ही ग्रेक्जिट को संभावित या शायद आकर्षक विकल्प मानकर चल रहे थे. हालांकि ग्रीक जनता का बहुमत यूरो रखना चाहता है इसलिए सिप्रास ने चुनाव के पहले और बाद में यूरो छोड़ने से इंकार किया था. लेकिन पिछले पांच महीनों में उनकी रणनैतिक चालें एक दूसरी बात कहती है. सिप्रास को दिवालिएपन के बाद सत्ता में बने रहने के लिए जनता से विश्वासघात की कहानी चाहिए."

उदारवादी जर्मन दैनिक टागेस्श्पीगेल ने संकट को सुलझाने के लिए नई रणनीति की मांग की है. अखबार लिखता है, "स्थिति ऐसी है कि एक ओर सिरीजा के राजनीतिज्ञों की जिद टाली न जा सकने वाली लगती है, लेकिन सभी किरदारों को एकबार अंदर झांकना चाहिए. यूरोपीय संघ को इस बीच इतना परिपक्व होना चाहिए कि वह वैचारिक मतभेदों को पीछे छोड़ सके. यूरोप में नव उदारवाद शासन कर रहा है या संकट से उबरने के लिए सरकारी खर्च का जॉन मेनार्ड कायंस का सिद्धांत लक्ष्य तक पहुंचाएगा, यह दरअसल सैद्धांतिक विवाद है. यह व्यवहारवादियों का समय है, और सारे अनुभवों के अनुसार उनमें चांसलर मैर्केल भी शामिल हैं."