गाजा पर अरब देशों की उलझन
२३ जुलाई २०१४दो बड़ी अरब शक्तियां मिस्र और कतर हैं. ये दोनों अलग धुरियों पर खड़ी हैं और गाजा तथा हमास को लेकर उनका नजरिया बिलकुल अलग है. हमास मिस्र के मुस्लिम ब्रदरहुड से काफी हद तक प्रभावित है, लेकिन ब्रदरहुड को खुद मिस्र में किनारे कर दिया गया है.
ब्रिटेन के विश्लेषक गानेम नुसीबेह का कहना है, "गाजा अचानक से एक थियेटर बन गया है, जहां अरब दुनिया के नए गठबंधन सामने आ रहे हैं. इस गठबंधन के लिए गाजा पहला परीक्षण है और इसकी वजह से वहां संघर्ष विराम की संभावनाओं को गहरा झटका लगा है."
अलग अलग गुट
उनका इशारा कतर, तुर्की, सूडान और गैर अरब ईरान के एक गठबंधन की तरफ था, जो मानते हैं कि अरब देशों में आने वाले दिनों में इस्लामी विचारधारा के लोगों का राज हो सकता है. दूसरी तरफ उदारवादी मिस्र, जॉर्डन और संयुक्त अरब अमीरात हैं, जो मुस्लिम ब्रदरहुड को खतरा समझते हैं. रूढ़िवादी सऊदी अरब भी इसी ग्रुप में कहीं फंसा है क्योंकि अमेरिका के साथ उसकी नजदीकी है.
गाजा संकट को सुलझाने में यह दरार साफ तौर पर सामने आ रही है. साल भर पहले मिस्र की सेना ने मुस्लिम ब्रदरहुड के शासन को उखाड़ फेंका था, जिसका कतर समर्थन करता आया है. इसके बाद सऊदी अरब और यूएई ने अब्दुल फातेह अल सिसी के नाम पर पैसे लगाए, जिनके नेतृत्व में आखिरकार मिस्र में नई सरकार बन गई है.
अल सिसी के राष्ट्रपति बनने के बाद मिस्र ने गाजा के दक्षिणी हिस्से में सख्ती बरती है, जहां से सुरंगों के जरिए गाजा और हमास को हथियारों की सप्लाई होती थी. मिस्री अधिकारियों को अंदेशा है कि हमास ने कतर के कहने पर मिस्री संघर्ष विराम की पहल को ठुकरा दिया. इसके बाद तेज हुई हिंसा में 500 से ज्यादा लोग मारे गए हैं.
हालांकि औपचारिक तौर पर फलीस्तीन का कहना था कि प्रस्ताव में इस्राएली और अमेरिकी शर्तें थीं. हमास की अपनी मांगें हैं कि इस्राएल रॉकेट हमले रोके और आर्थिक प्रतिबंध खत्म करे.
समझौते में क्या फर्क
मिस्र के प्रयास के विफल होने के बाद सबकी नजरें दोहा पर हैं, जहां फलीस्तीनी प्रधानमंत्री महमूद अब्बास और हमास के नेता खालिद मशाल की मुलाकात हुई है. काहिरा के एक अधिकारी का कहना है कि गाजा संकट "कतर, मिस्र और तुर्की के स्थानीय संकट" का नतीजा है, "हमास कतर की तरफ भागता है और उसे पता है कि मिस्र इस बात से नफरत करता है. हमें पता है कि आखिर में हमास ठीक वैसी ही संधि पर दस्तखत करेगा, जैसा मिस्र ने सुझाया था. बस फर्क यह होगा कि वह कतर समझौता कहलाएगा."
अमीरात की राजनीति समझने वाले अब्दुलखालिक अब्दुल्लाह का कहना है कि गाजा संकट के कई राजनीतिक परिणाम होने वाले हैं, "कतर को मिस्री समझौते से समस्या थी. उन्हें इस बात से समस्या थी कि वह मिस्र की तरफ से क्यों आया. कतर के लोग मिस्र की राजनीति को कमजोर करना चाहते हैं. और इसका खामियाजा संघर्ष विराम को चुकाना पड़ रहा है."
समस्या की जड़ में मुस्लिम ब्रदरहुड है, जिसने 2011 में मिस्र के राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक को सत्ता से हटाया और पिछले साल जिसे खुद सत्ता से हटना पड़ा. उसके कुछ खास सदस्य कतर में रहते हैं और उन्हें कतर की राजशाही से मदद की जरूरत है. कतर पर आरोप लगते हैं कि वह हमास के साथ मिल कर शांति के रास्ते में रोड़े अटका रहा है.
सबसे मुश्किल सऊदी अरब के साथ है. वह हमास और उसके सहयोगी ईरान के खिलाफ है और इस मुद्दे पर अपनी राय नहीं बना पा रहा है. ऐसे में मीडिया सिर्फ इस्राएल को ही हर संकट का जिम्मेदार बता रहा है. और इन सबके बीच फलीस्तीनी वार्ताकार साएब इरेकात को फिर भी उम्मीद है, "अरब देशों में कोई प्रतिद्वंद्विता नहीं है. गाजा, तुर्की, कतर और मिस्र सब एक साथ हैं और चाहते हैं कि खून बहना रुके."
एजेए/एमजे (रॉयटर्स)