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गांव गांव पहुंचे मदद के हाथ

१९ जून २०१५

बांग्लादेश में दूर दराज के गांवों तक मदद पहुंचाने वाले इस प्रोजेक्ट को तथोकल्याणी नाम से जाना जा रहा है. मदद वाले हाथ महिलाओं के हैं जो तमाम तकलीफें उठाकर गांव गांव पहुंचती हैं और ग्रामीणों की मदद करती हैं.

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तस्वीर: DW

तथोकल्याणी का मकसद है कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल और सरल तकनीकी उपकरणों की मदद से दूर दराज के इलाकों तक जरूरी सहूलियत पहुंचाना और ग्रामीणों के जीवन को आसान बनाना. तथोकल्याणी के लिए काम करने वाली महिलाएं खुद इन्हीं समुदायों से हैं. प्रोजेक्ट को गैर सरकारी एजेंसी डीनेट चला रही है. कार्यकर्ताओं को उपकरण इत्यादि के लिए आर्थिक मदद की भी जरूरत होती है. बांग्लादेश बैंक के गवर्नर डॉक्टर अतीउर्रहमान के निर्देश पर इनकी मदद के लिए नेशनल बैंक लिमिटेड ने नई स्कीम शुरू की है.

मदद के तरीके

एक लैपटॉप, एक डिजिटल कैमरा और मोबाइल फोन में इंटरनेट कनेक्शन इस काम के लिए मूल जरूरतें हैं. कई बार इन्हें विदेश या कहीं दूर बैठे लोगों से संपर्क के लिए स्काइप की भी जरूरत पड़ती है. स्काइप के जरिए ये स्थानीय किसानों को खेती संबंधी परेशानियों से निपटने की टिप्स और युवाओं को नौकरी पाने के बेहतर तरीकों इत्यादि से अवगत कराती हैं. गर्भवती महिलाओं को भी इसके जरिए जानकारी दी जाती है. साथ ही यह भी कोशिश की जाती है कि गांव में स्वास्थ्य संबंधी मदद मुहैया कराई जाए. जरूरतमंद गांव वालों को कानूनी मदद भी दी जाती है.

तथोकल्याणी महिला कार्यकर्ता आमतौर पर उन अंदरूनी इलाकों में काम करती हैं जहां जाने के लिए डॉक्टर भी आसानी से तैयार नहीं होते. इन इलाकों में चिकित्सकीय मदद पहुंचने से लोग तथोकल्याणी के काम से बहुत खुश हैं. उनका अपना एक कॉल सेंटर भी है जहां कॉल करके डॉक्टरी सलाह ली जा सकती है. ये सुविधाएं मुफ्त हैं.

आगे की योजना

इस प्रोजेक्ट के तहत फिलहाल 5 जिलों में 50 तथोकल्याणी कार्यकर्ता काम कर रही हैं. प्रोजेक्ट को शुरू करने वाली एजेंसी डीनेट का लक्ष्य है कि 2020 तक देश के हर यूनियन में कम से कम दो तथोकल्याणी प्रोजेक्ट हों.

यूरोप के मुकाबले बांग्लादेश जैसे एशियाई देशों में इंटरनेट की सुविधा उतनी आम नहीं है. अक्सर दूर दराज के गांवों तक मदद पहुंचाना सरकार के लिए भी चुनौती भरा काम हो जाता है. वहीं तथोकल्याणी की कार्यकर्ता बुलंद हौसलों के साथ लगातार मदद के हाथ आगे बढ़ा रही हैं.

जेडएच/एसएफ