गहरे समुद्र के लिए नया जहाज
जर्मन अनुसंधान जहाज जॉने यानी सूरज पिछले 36 सालों से सेवा में है और अब इसके रिटायरमेंट का समय आ गया है. हालांकि इसके उत्तराधिकारी भी यही नाम है, जॉने द्वितीय में कहीं अधिक हाईटेक गैजेट्स लगे हैं.
पुराने जहाज को अलविदा
नए जहाज जॉने का निर्माण कार्य अप्रैल 2013 में शुरू हुआ. जहाज के निर्माण पर 12.4 करोड़ यूरो की लागत आई है. इसकी पहली रिसर्च यात्रा की योजना 2015 में की गई है. पुराने जहाज जॉने ने गहरे समंदर में 40 साल से अधिक समय बिताया है. अब इसके रिटायरमेंट का वक्त आ गया है.
आधुनिक जहाज
निर्माण के शुरु होने के एक साल बाद जहाज को पानी में उतारा गया. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल भी जहाज के उद्धाटन समारोह में मौजद थीं. जर्मन सरकार के मुताबिक जॉने दुनिया भर में सबसे उन्नत अनुसंधान जहाज है. इसका आकार छोटे क्रूज शिप के बराबर है और इसकी अधिकतम रफ्तार 28 किलोमीटर प्रति घंटा है.
अनुसंधान के लिए खास तरह से तैयार
इस तस्वीर में दिख रहा जहाज पुराना जॉने है. शुरुआती आठ साल में मछली पकड़ने वाला जहाज था इसके बाद इसे अनुसंधान जहाज में तब्दील कर दिया गया. नए जॉने की कल्पना एक अनुसंधान पोत की ही तरह की गई और इसका डिजाइन उसी तरह से तैयार किया गया. डेवलपर्स ने पर्यावरण अनुकूलता और ऊर्जा दक्षता पर खास ध्यान दिया.
तकनीकी विशेषज्ञता
जॉने द्वितीय जब चलता है तो कंपन भी नहीं होता और हवा के बुलबुले भी नहीं निकलते जो सोनार शोध में हस्तक्षेप कर सकते हैं. साथ ही इसका गहरे पानी में ड्रिल करने की क्षमता, इसे दुनिया में अनूठा बनाती है. जॉने ऐसे कई हाईटेक उपकरणों से लैस है. इसका वजन 10 टन है और रिमोट कंट्रोल से चलने वाला ऑपरेशन 2,700 मीटर तक की गहराई में काम कर सकता है.
शानदार डिजाइन
नए अनुसंधान जहाज में काफी जगह है. जहाज में सवार 35 चालक दल सदस्यों और 40 वैज्ञानिकों के लिए कमरे हैं. सुविधाओं में प्रयोगशाला, विशाल रेफ्रिजरेटर और विंचेस शामिल हैं.
यात्रा की शुरुआत
17 नवंबर 2014 से जॉने द्वितीय ने अपना काम संभाल लिया है. सबसे पहले यह भारतीय और प्रशांत महासागर में शोध करेगा. शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि वह यह पता लगा पाएंगे कि कैसे ये महासागर जलवायु को प्रभावित करते हैं. इसके साथ ही वे समुद्र के प्राकृतिक संसाधनों और इंसानों के पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले प्रभाव की जांच करेंगे.