गर्लफ्रेंड ना होने के फायदे
अगर आप अकेले हैं और दूसरों के पार्टनर्स होने से आपको लगता है कि कुछ कमी सी है तो रुकिए, अकेले होने के भी बड़े फायदे हैं. और हां, ये फायदे बॉयफ्रेंड न होने के भी हैं. लीजिए, मुलाहिजा फरमाइए...
झोला उठाया चल दिए
करियर की वजह से शहर बदलना हो या घूमने निकल जाना हो, अगर आप सिंगल हैं तो फैसला चुटकियों में ले लेंगे. पार्टनर होगा तो न सिर्फ आपको बहुत सारा विचार-विमर्श करना होगा बल्कि हो सकता है आप अपनी इच्छा को दबा ही जाएं. ऐसी आजादी और कहां!
लाखों हैं निगाह में
फ्लर्ट करते वक्त आपके मन में जरा भी अपराधबोध नहीं होगा. जिससे फ्लर्ट करेंगे वह भी बुरा नहीं मानेगा. पार्टनर हो तो पहले तो अपने आप ही हिम्मत नहीं होगी. और किया भी तो सामने से करारा जवाब मिल सकता है. अकेले हैं तो जब चाहे, जिससे चाहे फ्लर्ट करें. ऐसी आजादी और कहां!
अकेले रहें, पतले रहें
ब्रिटेन में हुए एक शोध में पता चला कि अकेले से दुकेले होने के बाद यानी किसी रिश्ते में बंधने के बाद 62 फीसदी लोगों का वजन 7 किलो तक बढ़ गया. वजन बढ़ने का डेटिंग से सीधा ताल्लुक है. अकेले रहने पर इंसान एक्सरसाइज भी ज्यादा करता है. ऐसी आजादी और कहां!
दुनिया जहान का वक्त है
दुकेले लोगों से पूछकर देखिए वे कितनी फिल्में देख पाते हैं, कितना पढ़ पाते हैं और कितना खेल पाते हैं. वे लोग कहेंगे, वक्त ही नहीं मिलता. अकेले होने पर आप अपना वक्त ज्यादा रचनात्मक कामों में लगा सकते हैं. ऐसी आजादी और कहां!
चैन की नींद
वो मेरी नींद मेरा चैन मुझे लौटा दो. दुकेले लोग ऐसे ही यह गाना नहीं गाते हैं. यह सच है. बहुत से लोग कहते हैं कि किसी इंसान के बगल में सोने से नींद कच्ची हो जाती है. और कहीं पार्टनर खर्राटे लेने वाला हुआ तो क्या कहने! अकेले हैं तो फैल कर सोएं. ऐसी आजादी और कहां!
दर्द ओ गम से आजादी
अमेरिका में 50 फीसदी शादियां टूट जाती हैं. कुछ लोग तलाक नहीं ले पाते क्योंकि आर्थिक कारण होते हैं. लेकिन टूटने, छूटने का दर्द सिर्फ दुकेलों के लिए बना है. अकेले हैं तो क्या गम है. किसी पार्टनर के साथ होने पर आप इस छोड़े जाने की जद में आ जाएंगे. अकेले हैं तो कोई छोड़ ही नहीं पाएगा. ऐसी आजादी और कहां!
दोस्त दोस्त न रहा
दुकेले लोग अपने दोस्तों के साथ मजे की कितनी शामें बिता पाते हैं, जरा पूछिएगा कभी. दोस्ती तो अकेले ही निभाई जा सकती है. पार्टनर के साथ आने पर तो बस वादे और यादें रह जाती हैं. अकेले हैं तो जब चाहे पहुंच गए दोस्त के ठिकाने पर. ऐसी आजादी और कहां!
उम्मीदों का बोझ नहीं
बहुत कम लोग सोच पाते हैं कि रिश्तों को निभाने के लिए कितनी वक्त और ऊर्जा लगानी पड़ती है. हर रिश्ते की जरूरतें होती हैं, सामने वाले की आपसे कुछ इच्छाएं और अपेक्षाएं होती हैं. और उन उम्मीदों पर खरा उतरना तलवार की धार पर चलने जैसा है. अकेले हैं तो ना तलवार होगी न तलवार की धार. ऐसी आजादी और कहां!