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गरीब देशों को चाहिए जलवायु योजना के लिए 10 खरब

१ दिसम्बर २०१५

दुनिया के 48 सबसे गरीब देशों को 2020 से 2030 तक जलवायु परिवर्तन से निबटने के लिए 1,000 अरब डॉलर की जरूरत होगी. शोधकर्ताओं का कहना है कि उनकी योजनाओं को अंतरराष्ट्रीय फंडिंग में प्राथमिकता दी जानी चाहिए.

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तस्वीर: Getty Images/AFP/R. Alves

Impact of climate change in Pakistan

कम विकसित देशों द्वारा पेरिस जलवायु सम्मेलन के पेश योजनाओं के आकलन के अनुसार 2020 से उन्हें लागू करने के लिए सालाना 93.7 अरब डॉलर की जरूरत होगी. लंदन स्थिति इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर इंवायरमेंट एंड डेवलपमेंट (आईआईईडी) के अनुसार इसमें 53.8 अरब डॉलर कार्बन उत्सर्जन में कमी पर खर्च होगा जबकि 39.9 अरब डॉलर मौसम में बदलाव और समुद्र स्तर में वृद्धि से निबटने पर खर्च होगा. पेरिस में होने वाला पर्यावरण समझौता 2020 से ही लागू होगा.

Infografik Global greenhouse gas emissions (Update) Englisch
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन

आईआईईडी के डाइरेक्टर एंड्रयू नॉर्टन के अनुसार सबसे कम विकसित देशों को इस समय धनी देशों द्वारा दी जाने वाली मदद का सिर्फ एक तिहाई मिलता है. उन्होंने कहा, "पेरिस में एक उचित और प्रभावी समझौते को इन देशों को दी जाने वाली मदद को प्राथमिकता देनी होगी ताकि वे अपना जलवायु एक्शन प्लान को लागू कर सकें और ऐसे कदमों पर सहमत होना चाहिए जो समर्थ देशों की निजी वित्तीय संसाधन पाने में मदद करें."

Pakistan Umwelt
गलते ग्लेशियरतस्वीर: Getty Images/AFP/A. Qureshi

कम विकसित देशों में इथियोपिया से लेकर जाम्बिया, यमन और प्रशांत सागर में बसे देश शामिल हैं जहां दुनिया के सबसे गरीब समुदायों के लोग रहते हैं और जो जलवायु परिवर्तन की वजह से सूखे, बाढ़ और तूफान जैसी विपदाओं का सामना कर रहे हैं. दूसरी ओर वे धरती को गर्म करने वाली गैसों का बहुत कम हिस्सा पैदा कर रहे हैं. इन देशों के पास जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए संसाधनों और ज्ञान का बेहद अभाव है, लेकिन सबने अंतरराष्ट्रीय समझौते के लिए इच्छित राष्ट्रीय जिम्मेदारी योजना तय की है.

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मार्शन द्वीप पर बढ़ता जलस्तरतस्वीर: Getty Images/AFP/G. Johnson

इन योजनाओं में तय किया गया है कि ये देश अपने यहां अक्षय ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल कर किस तरह 2020 से उत्सर्जन को कम करेंगे. उसमें यह भी कहा गया है कि ये देश अपनी जनता की जलवायु परिवर्तन से निबटने में किस तरह से मदद कर सकते हैं. कुछ मामलों में इस पर कितना खर्च होगा, यह बात भी कही गई है. आईआईईडी की रिपोर्ट के अनुसार तीन देशों, बुरकिना फासो, जिबूती और जाम्बिया ने बाहर से मदद मांगने के बदले अपनी सीमाओं के अंदर संसाधन जुटाने की अद्भुत प्रतिबद्धता दिखाई है. लेकिन अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संसाधनों के बिना जलवायु संबंधी जिम्मेदारियों को पूरा नहीं किया जा सकता. उन्हें तकनीक के अलावा क्षमता बढ़ाने में मदद की जरूरत होगी.

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तुवालू द्वीप पर डूबते मकानतस्वीर: picture-alliance/dpa/Kyodo

पेरिस सम्मेलन के पहले दिन फ्रांस, जर्मनी और अमेरिका सहित 11 दाता देशों ने अत्यंत गरीब देशों के लिए ग्लोबल पर्यावरण संस्था को 25 करोड़ डॉलर की मदद देने का वादा किया है. उसे संसाधनों के अभाव में नई परियोजनाओं की मदद में मुश्किल हो रही थी. आईआईईडी का कहना है कि गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए वित्तीय मदद की जरूरत के बावजूद सरकारी मदद का बड़ा हिस्सा अपेक्षाकृत धनी देशों को गया है. रिपोर्ट के अनुसार ब्राजील, चीन, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की और भारत जैसे देशों को सरकारी संसाधनों का बड़ा हिस्सा मिल रहा है. धनी दाता देशों द्वारा 2013 और 2014 में दी गई 11.8 अरब डॉलर की मदद में से 10 अरब कार्बन उत्सर्जन को कम करने पर खर्च हुआ है.

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कार्बन उत्सर्जन घटाने की चुनौतीतस्वीर: Reuters

औद्योगिक देशों के संगठन आर्थिक सहयोग व विकास संगठन के अनुसार जलवायु परिवर्तन से होने वाले बदलावों का सामना करने पर सिर्फ 1.8 अरब डॉलर खर्च हुए. पेरिस सम्मेलन में यह भी साफ होगा कि धनी देश किस तरह से 2020 तक पर्यावरण संरक्षण के कदमों के लिए हर साल 100 अरब डॉलर जुटाएगें जिसका उन्होंने वादा किया है. अफ्रीकी और दूसरे विकासशील देश जलवायु परिवर्तन के अनुरूप ढालने के कदमों पर अधिक खर्च की मांग कर रहे हैं. नॉर्टन का कहना है, "वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराना एक बात है और इस बात की व्यवस्था करना कि वह जरूरतमंदों को मिले, दूसरी बात.

एमजे/ओएसजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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