गठिया से बचाने वाला प्रोटीन
१५ मार्च २०१४ज्यादातर हाथों और पैरों के जोड़ों में होने वाली बीमारी गठिया का कारण शरीर में प्रतिरोधी क्षमता की कमी को माना जाता है. मरीज के शरीर के जोड़ सूज जाते हैं और शरीर के प्रभावित हिस्से को हिलाने डुलाने में दिक्कत होती है. जर्मनी की कुल जनसंख्या का करीब एक फीसदी हिस्सा यानि लगभग आठ लाख लोग इससे ग्रस्त हैं. जर्मनी के फ्राइबुर्ग में माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट ऑफ थियोलॉजी एंड इपिजेनेटिक्स के वैज्ञानिकों के एक दल ने खास किस्म के चूहों की मदद से प्रतिरोधी क्षमता की कमी के कारण होने वाली बीमारियों को समझने में सफलता पाई है.
बहुगुणी कोशिकाएं
जर्मन वैज्ञानिक मिशाएल रेथ के नेतृत्व वाले वैज्ञानिक दल को ऐसी कोशिकाएं मिलीं जो संवेदनशील सूचनाओं को बहुत तेजी से फैलाती हैं. जब कोशिकाओं के बी-लिम्फोसाइट्स में पीटीपी1बी नाम के प्रोटीन की कमी होती है, तब थोड़े कम सक्रिय पीटीपी1बी प्रोटीनों के कारण प्रतिरोधी तंत्र में खुद ही तेज प्रतिक्रियाएं होने लगती हैं. इसके कारण शरीर में पूरी तरह स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला होता है जिससे गठिया जैसी बीमारियां होती है. रेथ बताते हैं, "जिस तरह बी-कोशिकाएं इस बीमारी से जुड़ी हैं, वो चौंकाने वाली बात थी." वैज्ञानिक हैरान हैं कि बी-कोशिकाएं शरीर के प्रतिरोधी तंत्र को इस तरह नियंत्रित भी करती हैं.
पीटीपी1बी नाम का प्रोटीन एक दरबान की तरह काम करता है. शरीर को नुकसान पहुंचाने वाली संवेदनाओं को रोकने के लिए इनका बड़ी संख्या में शरीर के भीतर मौजूद होना जरूरी होता है. ऐसा न होने पर ही गठिया जैसी स्थिति बनती है, जब शरीर अपनी ही कोशिकाओं पर हमला करने लगता है.
रेथ कहते हैं कि इस प्रोटीन की भूमिका को समझना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है. लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि गठिया का इलाज करने का उपाय मिल गया है. इसके लिए वैज्ञानिकों को आसान तरीके ढ़ूंढने होंगे, "दवा उद्योग में इनहिबिटर्स पैदा करने के काफी तरीके विकसित हुए हैं." लेकिन एक मरीज में किसी खास प्रोटीन को सक्रिय करना या पैदा करना एक दूसरी ही बात है, "अभी ऐसी कोई दवा नहीं बनी है जो यह कर सके."
वैज्ञानिक दल ने संयोग से ही एक ऐसे प्रोटीन की पहचान की जो संक्रमण फैलाने वाली संवेदना को रोक कर सूजन से बचा सकता है. वे पीटीपी1बी प्रोटीन के गुणों को खोज पाए क्योंकि वे एक खास किस्म के चूहों पर रिसर्च कर रहे थे. इन चूहों को दूसरे शोधकर्ताओं के एक दल ने तैयार किया था. इन पर जेनेटिक इंजीनियरिंग की गई जिससे वैज्ञानिक चूहे की बी-कोशिका से पीटीपी1बी प्रोटीन को मिटा पाए और उसके शरीर पर पड़ने वाले असर का अध्ययन कर सके.
रिपोर्टः कार्ला ब्लाइकर/आरआर
संपादनः ईशा भाटिया