ख्मेर रूज के पीड़ित 'संतुष्ट'
७ अगस्त २०१४जज नील नोन ने विशेष अदालत ईसीसीसी में कहा, "चैम्बर नुओन चिआ को हत्या, राजनीतिक उत्पीड़न और अन्य अमानवीय कामों का दोषी पाती है. चैम्बर ने पाया है कि खिऊ साम्फान ने संहार, राजनीतिक उत्पीड़न और अन्य अमानवीय कार्यों की योजना बनाई, उन्हें कार्यान्वित किया, उनमें मदद की और उन्हें बढ़ावा दिया."
नुओन चिआ 88 साल के हैं और उन्हें ख्मेर रूज के अगुवा पॉल पॉट के ब्रदर नंबर टू के नाम से जाना जाता है. वहीं खिऊ साम्फान 83 साल के हैं और राष्ट्रपति रह चुके हैं. क्रूर ख्मेर रूज शासन में भूमिका के लिए उन्हें अधिकतम सजा देने की मांग की गई थी. 1975 से 1979 में ख्मेर रूज के शासन काल में करीब 17 लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया. आदर्श कृषि राज्य स्थापित करने की सरकारी कोशिशों में या तो लोग भूखे मारे गए या फिर ज्यादा काम के कारण मारे गए या उन्हें मार दिया गया.
बीमार और बूढ़े हो चुके दोनों दोषियों ने इन आरोपों का खंडन किया है. वे फैसले के खिलाफ अपील कर सकते हैं. हालांकि जज नील नोन ने कहा कि अपराधों की गंभीरता का मतलब है कि "वह अंतिम फैसला आने तक कैद में रहेंगे."
2006 में कंबोडिया और संयुक्त राष्ट्र का साझा न्यायाधिकरण ख्मेर रूज के शासन के दौरान किए गए अपराधों की सुनवाई के लिए स्थापित किया गया था. अभी तक इस मुकदमे की लागत 20 करोड़ डॉलर आई है. इसके लिए धन जापान और जर्मनी जैसे देशों से आया है. सुनवाई शुरू होने के बाद से सिर्फ एक व्यक्ति को सजा मिली है. वह व्यक्ति एस-21 टॉर्चर सेंटर का प्रमुख कांग केक इआव उर्फ डुच था. उसे भी 15,000 लोगों को मारने का दोषी पाया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. पर्यवेक्षकों और पीड़ितों को आशंका है कि ख्मेर रूज के अगुवा लोगों की मुकदमा खत्म होने के पहले ही प्राकृतिक मृत्यु हो जाएगी. विदेश मंत्री लेंग सैरी की 87 साल में मौत हो गई. उन पर युद्ध अपराध का मुकदमा चल रहा था. डिमेंशिया के कारण उनकी पत्नी को सितंबर 2012 में रिहा कर दिया गया.
माओवादी ख्मेर रूज कंबोडिया में 1975 से 1979 के बीच थी. 76 साल के सोऊ सोदेवी जैसे कई लोग हैं जिन्होंने अपने परिजनों को इस क्रूर शासन के दौरान खोया या मरते देखा. उन्होंने अपने परिवार के 20 सदस्यों को खोया. वह कहते हैं, "मेरे लिए यह पूरा न्याय है. मैं संतुष्ट हूं." हालांकि सोदेवी ने यह भी कहा कि मुकदमे का दूसरा हिस्सा ज्यादा रोचक होगा जिसमें जबरदस्ती शादी नीति पर बहस होगी. क्योंकि वह भी इस आदेश का शिकार हुए थे.
एएम/एजेए (डीपीए, एएफपी)