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खैरलांजी नरसंहारः उम्रकैद में बदली मौत की सजाएं

Priya Esselborn१४ जुलाई २०१०

बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने 2006 के खैरलांजी दलित नरसंहार के मामले में छह दोषियों की मौत की सज़ा को उम्र कैद में तब्दील कर दिया है.

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नरसंहार का हुआ था तीखा विरोधतस्वीर: AP

जस्टिस एपी लवांडे और आरसी चौहान की बेंच ने इस बहुचर्चित मामले में बुधवार को फैसला दिया. 2008 में एक निचली अदालत ने इस मामले में छह लोगों को मौत की सज़ा और दो उम्रकैद का फैसला सुनाया था. हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली सीबीआई की याचिका खारिज कर दी. अब सभी आठ लोगों को उम्रकैद होगी.

जिन लोगों को पहले मौत की सज़ा दी गई, उनमें शत्रुघ्न धांडे, विश्वनाथ धांडे, रामु धांडे, सकरु बींजेवार, जगदीश मांडलेकर और प्रभाकर मांडलेकर के नाम शामिल हैं. ट्रायल कोर्ट ने शिशुपाल धांडे और गोपाल बीजेंवार को उम्रकैद की सज़ा दी थी, जबकि तीन आरोपियों को बरी कर दिया गया था.

29 सितंबर 2006 को महाराष्ट्र के भंडारा जिले में यह नरसंहार हुआ. कुछ ग्रामीणों ने खैरलांजी गांव में एक दलित परिवार पर हमला कर दिया. उन्होंने 44 बर्षीय सुरेखा भैयालाल भोतमांगे, उनके बेटे 23 वर्षीय रोशन, 21 वर्षीय बेटे सुधीर और 18 वर्षीय बेटी प्रियंका को घर से निकाला और नंगा करके गांव में घुमाया. उनके जननांगो में लकड़ियां घुसाई और फिर उनकी हत्या कर दी. महिलाओं से सामूहिक बलात्कार भी किया गया था.

हमले के वक्त सुरेखा का पति भैया लाल खेत पर काम करने गया था. बाद में एक झोपड़ी के पीछे छिपकर उसने भी यह पूरी घटना देखी. वह जैसे तैसे भागकर अपनी जान बचाने में कामयाब रहा. इस नरसंहार पर पूरे राज्य में दलितों ने तीखा विरोध प्रदर्शन किया.

इस घटना से कुछ दिन पहले सुरेखा भोतमांगे ने जमीन के एक विवाद में कुछ गांव वालों के खिलाफ पुलिस में एक शिकायत दर्ज कराई थी. इसी का बदला लेने के लिए सुरेखा के परिवार पर हमला किया गया.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः आभा एम