खुद ही समस्या का हिस्सा हैं मैर्केल
३१ अक्टूबर २०१५क्या ईयू में शरणार्थी संकट के अलावा कोई और मुद्दा नहीं है? पहले तो, इतने सालों तक यूरोपीय संघ की सांस आर्थिक संकट के कारण रुकी रही. वह मुद्दा अब भी बरकरार है. रिपोर्टें दिखाती हैं कि कर्जदाता ग्रीस को ऋण देने में आना कानी कर रहे हैं. ग्रीस की बात करना इसलिए जरूरी है क्योंकि जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल की छवि इससे काफी मजबूत बनी. लेकिन अब कुछ हफ्तों के बीच ही उनकी लोकप्रियता बुरी तरह गिर गयी है.
कर्ज संकट के दौरान यूरोप में मैर्केल की साख काफी बढ़ी. वे नियमों, समन्वय और यूरोप की एकजुटता के लिए खड़ी रहीं. और इन्हें हासिल करने के लिए जहां भी जरूरत पड़ी, वे समझौते करने के लिए भी तैयार थीं. स्थिरता की उनकी राजनीति हर किसी को पसंद नहीं आ रही थी. लेकिन उनके आलोचकों ने भी माना था कि "मां मैर्केल" की दी गयी दवा असर तो दिखा रही है.
लेकिन कहानी में नया मोड़ तब आया जब कुछ महीनों पहले उन्होंने शरणार्थियों को लेकर ये दो बयान दिए, "कोई ऊपरी सीमा नहीं है" और "हम संभाल सकते हैं." वे अब भी अपनी बात पर अडिग हैं. इसे साबित करने के लिए उन्होंने शरणार्थियों के साथ कई सेल्फी भी खिंचवाईं. मैर्केल के अनुसार शरणार्थियों को रोकने के लिए बाड़ लगाना ना केवल व्यर्थ, बल्कि निंदनीय भी है. उन्होंने माना कि देश अपनी सीमाओं को संभाल नहीं पा रहा है लेकिन बस कंधे उचकाकर बात वहीं खत्म कर दी. और जैसा कि इतना काफी नहीं था, वे सभी यूरोपीय नेताओं के सामने जा कर खड़ी हो गयीं और घोषणा कर दी कि उनके निजी विचार ही नैतिक रूप से सही हैं.
किस तरह से मैर्केल की पार्टी उनके काम को निर्धारित करती है, इसका मजाक भी उड़ाया जा रहा है. देखें सरकारी चैनल एआरडी द्वारा बनाया गया यह वीडियो:
दूसरे शब्दों में, यूरोप को वही करना होगा जो मैर्केल चाहती हैं. कोई भी साफ तौर पर यह कहने की हिम्मत नहीं कर रहा कि यूरोप में शरणार्थियों की बढ़ती संख्या के लिए मैर्केल जिम्मेदार हैं. लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं कि मैर्केल के कारण यूरोप की ओर आकर्षण तो बढ़ा ही है. और ऐसा कर के उन्होंने दूसरे देशों को भी जिम्मेदारी लेने पर मजबूर कर दिया है.
ऊपर से उनका जर्मन अक्खड़पन, जिसे वे नेक काम का नाम देती हैं. इसी के चलते मैर्केल को बैठकों के दौरान यूरोपीय नेताओं की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है. फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद जैसे अब उनके कम ही वफादार बचे हैं. हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान तो यहां तक कह चुके हैं कि शरणार्थी संकट "एक जर्मन समस्या" है. पोलैंड ने भी पाला बदल लिया है और स्वीडन भी अपनी सीमाएं बंद करने के दबाव में आने लगा है. इस सब के बीच में यूरोपीय एकजुटता की बात होना मुमकिन ही नहीं है. हर कोई खुद को बचाने की कोशिश कर रहा है, फिर भले ही ऐसा करने में किसी दूसरे को नुकसान ही क्यों ना पहुंचाना पड़े.
शरणार्थी संकट को समझने के लिए देखें यह वीडियो:
जर्मन चांसलर जितनी भी नैतिकता की दुहाई दें, सच्चाई यही है कि शरणार्थियों के मुद्दे पर वे बिलकुल अकेली खड़ी हैं. ना केवल जर्मनी में लोग उनके विचारों के खिलाफ होते जा रहे हैं, बल्कि पूरे यूरोप में. और ऐसी कोई नीति नहीं है जो किसी भी तरह इसका हल निकाल सके. मैर्केल के लिए सबसे दुखद बात यह है कि इस सब में वे अपना वह रुतबा खोती चली जा रही हैं, जो उन्होंने इतने सालों में अपने लिए यूरोप में बनाया.