खाने की बर्बादी रोकने के लिए..
१८ अक्टूबर २०१५भारत में 40 फीसदी अनाज खे्तों से घरों तक पहुंचता ही नहीं है. कभी खेतों से मंडी के रास्ते तो कभी मंडियों में ही वह सड़ जाता है. समस्या यह है कि अनाज और अन्य खाद्य सामग्री को संभाल कर रखने के लिए सही मूलभूत ढांचा नहीं है. खाद्य और खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल इसे बदलना चाहती हैं. इसके लिए वे जर्मन तकनीक की मदद लेने की योजना बना रही हैं.
जर्मनी दौरे पर आईं कौर ने समाचार एजेंसी डीपीए को दिए इंटरव्यू में कहा कि भारत जर्मनी से फूड प्रोसेसिंग और पैकेजिंग मशीनरी खरीदना चाहता है. श्टुटगार्ट में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि भारत अगले दो से तीन साल में 42 फूड प्रोसेसिंग पार्क बनाएगा. उन्होंने कहा, "फूड प्रोसेसिंग अब भी भारत में काफी शुरुआती स्तर पर है."
बादल का कहना है कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर समय के साथ खराब हो जाने वाले खाने का महज दो फीसदी ही प्रोसेस किया जाता है, "आज भारत में ताजा खाना प्रोसेस्ड फूड से काफी ज्यादा सस्ता है. जबकि जर्मनी में दोनों में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है. यहां खाना बर्बाद होने की जगह, प्रोसेस हो जाता है." बादल भारत में भी इसी मॉडल को स्थापित करना चाहती हैं. इसे बढ़ावा देने के लिए वे भारत और जर्मनी की यूनिवर्सिटियों के बीच साझेदारी भी चाहती हैं.
हालांकि ऐसा नहीं है कि जर्मनी जैसे विकसित देशों में खाने की बर्बादी की समस्या नहीं है. यहां खाना सुपरमार्केट में आने के बाद बर्बाद होना शुरू होता है. बादल ने इस बारे में भी बात की. उन्होंने इस फर्क को समझाते हुए कहा कि भारत में खाद्य सामग्री का बाजार तक पहुंचना ही अपने आप में एक बड़ी चुनौती है.
जर्मनी के कृषि मंत्रालय के अनुसार जर्मन खेतों में 3.3 फीसदी गेहूं और 5 फीसदी आलू की बर्बादी होती है. भारत की तुलना में यह कुछ भी नहीं है. भारत में अक्सर बोरियों में खाद्य सामग्री को रखा जाता है, जो मौसम की मार को सह नहीं पातीं. इन बोरियों को स्टोर करने के लिए भी गोदाम जैसी अच्छी सुविधाएं मौजूद नहीं हैं.
बादल ने कहा कि फसलों की कटाई से ले कर, स्टोरेज की तकनीक, खाद्य सामग्री को ट्रांसपोर्ट और प्रोसेस करने के लिए नई मशीनें, इन सभी स्तरों पर जर्मनी भारत के लिए मददगार काफी साबित हो सकता है.
आईबी/एमजे (डीपीए)