गंध का विज्ञान
३१ मई २०१४न्यूरोगेस्ट्रोनॉमी, सुनने में अलग लग सकता है क्योंकि विषय ही नया है. इसे न्यूरोलॉजी और गेस्ट्रोनॉमी को मिलाकर बनाया गया है. न्यूरोगेस्ट्रोनॉमी में हम जानते हैं कि किसी महक को सूंघने पर दिमाग कैसे उससे जुड़ी चीज की छवि बनाता है और इनके पीछे कौन से कारण जुड़े होते हैं.
यह आम धारणा है कि खाने को पहचानने का संबंध सीधे उसके स्वाद से है. खासकर इसलिए क्योंकि खाने को हम मुंह में डालते हैं जहां हमारी स्वाद ग्रंथियां होती हैं. लेकिन खाने की पहचान का संबंध असल में हमारे सभी संवेदी अंगों से है, खासकर नाक से. इटली के शहर बोलोन्या में हुए खुशबुओं के सालाना समारोह में इस साल गंध पर एक वर्कशॉप में न्यूरोगेस्ट्रोनॉमी पर चर्चा हुई.
नाक और मुंह दोनों से पहचान
न्यूरोगेस्ट्रोनॉमी के विशेषज्ञ मार्को वालूसी ने इस संबंध को समझाने के लिए एक प्रयोग किया. उन्होंने इस प्रयोग में खाने वाले की आंखें बंद करवा कर उसकी नाक भी दबा दी और फिर उन्हें अलग अलग पेय पीने के लिए दिए. उन्होंने उनमें से दो की खुशबू के बारे में पूछा कि स्वाद के आधार पर कैसी होनी चाहिए. पेय को सूंघे बिना ऐसा मुमकिन नहीं हो सका. वालूसी के मुताबिक खाने को पहचानने के लिए स्वाद जानने से भी पहले उसकी गंध पता होनी जरूरी है.
वालूसी मानते हैं कि दिमाग तक इसके पहुंचने का अपना एक निश्चित रास्ता है. उनके अनुसार यह धारणा भी सही नहीं है कि हम स्वाद का अनुभव मुंह में और सुगंध का नाक से करते हैं. वह कहते हैं कि सुगंध का संबंध नाक और मुंह दोनों से है. किसी चीज को खाने से पहले हम बाहर तो सूंघते ही हैं, फिर उसे मुंह के अंदर चबाते समय भी सूंघते हैं.
आसान सा प्रयोग
साथ ही उन्होंने एक साधारण सा प्रयोग बताया जिसे घर पर किया जा सकता है. सेब और प्याज को छोटे छोटे एक जैसे टुकड़ों में काट लीजिए. अगर आप आंखें और नाक बंद कर दोनों को अलग अलग बार मंह में डालेंगे तो उनके स्वाद में अंतर नहीं कर पाएंगे. जबकि नाक खोल कर तुरंत पहचान सकते हैं कि मुंह में प्याज है या सेब.
स्वाद में तो हमें पांच मूल तरह के स्वादों की समझ है, मीठा, नमकीन, कड़वा, खट्टा और सीठा. लेकिन सूंघने के मामले में हम लाखों तरह की सुगंध पहचानते हैं.
रिपोर्ट: डैनी मित्समान/ एसएफ
संपादन: आभा मोंढे