खाद्य सुरक्षा पर भारत का अड़ंगा
५ दिसम्बर २०१३मामला अनाज की सब्सिडी से जुड़ा है. भारत का तर्क है कि अपनी गरीब जनता के लिए अनाज को जमा करना और इसे कम कीमत पर बेचना उसकी मजबूरी है और इस मुद्दे पर कोई समझौता नहीं हो सकता है. इंडोनेशिया के बाली द्वीप पर विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ की बैठक चल रही है, जिसमें दुनिया भर के व्यापार मंत्री शामिल हैं.
संगठन ने चेतावनी दी है कि अगर यह समझौता नाकाम होता है, तो यह डब्ल्यूटीओ के लिए बहुत बड़ा झटका होगा. पिछले 12 साल से संगठन इस मुद्दे पर कोई अंतरराष्ट्रीय समझौता करने की कोशिश कर रहा है. हालांकि भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने साफ कर दिया, "यह एक बुनियादी मुद्दा है. हम कभी भी समर्पण नहीं करेंगे."
डब्ल्यूटीओ ने 2001 में कतर में बैठक की थी, जिसका उद्देश्य सभी देशों के बीच साझा नियम तय करना था, जिससे वैश्विक स्तर पर कारोबार का माहौल बन सके. इसे दोहा राउंड की बैठक कहा गया. कहा गया कि इसमें तय नीतियां गरीब और अमीर दोनों देशों के हित में होंगी, लेकिन भारत तभी से इन नियमों का विरोध कर रहा है.
खास तौर पर संरक्षणवादी नीतियों पर विवाद की वजह से औद्योगिक और विकासशील देशों के बीच मतभेद चल रहा है. डब्ल्यूटीओ के नए प्रमुख रोबर्तो आजेवेदो ने बाली में समझौते की भरसक कोशिश की लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली. चार दिनों की बैठक के आखिरी लम्हों में फ्रांसीसी विदेश कारोबार मंत्री निकोल ब्रिक ने कहा, "हम सभी को इस घड़ी की गंभीरता के बारे में पता है."
बैठक की अध्यक्षता कर रहे इंडोनेशिया के व्यापार मंत्री गीता वीरजावान ने बताया कि वह आजेवेदो के साथ मिल कर भारत और अमेरिका के बीच सहमति बनाने की कोशिश कर रहे हैं. अमेरिका और दूसरे देशों का कहना है कि भारत जिस तरह की बात कर रहा है, उससे अनाज की जमाखोरी बढ़ेगी और आखिर में यह अनाज वैश्विक बाजार में पहुंच सकता है, और इस वजह से कीमतें प्रभावित हो सकती हैं.
भारत में अगले साल लोकसभा के चुनाव होने हैं और समझा जाता है कि महंगाई की मार झेल रही जनता को सरकार किसी और तरह नाराज नहीं करना चाहेगी. इसका सीधा असर वोटों पर पड़ सकता है. हालांकि शर्मा का कहना है कि डब्ल्यूटीओ के स्तर पर घरेलू राजनीति से कोई फर्क नहीं पड़ता है. शर्मा इस मुद्दे को औद्योगिक और विकासशील देशों के बीच का विवाद बताते हैं और उनका कहना है कि डब्ल्यूटीओ का झुकाव औद्योगिक देशों की तरफ है, "भारत विकासशील और गरीब देशों में मौजूद बड़ी आबादी के लिए बात कर रहा है. भारत अकेला नहीं है."
हालांकि जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के मार्क केनेडी कहते हैं कि उन्हें नहीं लगता कि विकासशील देश भारत के साथ खड़े हैं, "यह भारत की घरेलू राजनीति का मामला है और विकासशील देशों के असली नेता का मामला नहीं है."
व्यापार मंत्रियों ने बार बार कहा है कि अगर बाली सम्मेलन नाकाम होता है तो इस वैश्विक संस्था की अहमियत पर गहरे सवाल उठने लगेंगे. आजेवेदो पहले ही कह चुके हैं कि अब स्थानीय स्तर पर कारोबार बढ़ाने पर जोर दिया जाने लगा है, जैसा कि 12 देशों वाला अंतर पैसिफिक पार्टनरशिप है. अमेरिका इस संगठन को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. आजेवेदो के मुताबिक अगर ऐसा होता है, तो विकासशील देशों के लाखों गरीबों के लिए बहुत बुरा होगा.
एजेए/एनआर (एएफपी, एपी)