खाड़ी में पहुंचे चीन से भारत चिंतित
६ फ़रवरी २०१३भारतीय रणनीतिकार लंबे समय तक चीनी कंपनियों को अपने पड़ोस में आने से रोकते रहे हैं. नई दिल्ली सैन्य तैयारियों को भी आधुनिक बनाने में जुटी है, लेकिन इसके बावजूद भारत चीन की बराबरी नहीं कर पा रहा है. अब पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह ने नई दिल्ली के लिए नई चिंता खड़ी कर दी है. कराची से 600 किलोमीटर दूर ग्वादर बंदरगाह चीन की सरकारी कंपनी चलाएगी. पाकिस्तान ने पोर्ट चलाने की जिम्मेदारी चीनी कंपनी को दे दी है. 30 जनवरी को यह करार हुआ. करार के तहत चीन पाकिस्तान के कबायली इलाके बलूचिस्तान को तेल और गैस व्यापार का केंद्र की तरह विकसित करेगा.
पाकिस्तान और चीन के बीच ग्वादर सौदे की शुरुआत 2002 में पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल के दौरान हुई. बलूचिस्तान के कबायली नेता पाकिस्तान का लंबे समय से विरोध करते हैं. वहां अलगाववाद चरम पर रह चुका है और सशस्त्र संघर्ष भी होता रहा है. पाकिस्तान यह भी आरोप लगाता रहा है कि बलूचिस्तान को अशांत करने में भारतीय तत्व शामिल हैं. चीन के वहां पहुंचने से इस्लामाबाद को राहत महसूस होगी.
ग्वादर बंदरगाह पाकिस्तान और ईरान की सीमा से सटा है. बंदरगाह होर्मुज की खाड़ी के पास है. होर्मुज की खाड़ी दुनिया में खाड़ी से आने वाले कच्चे तेल का मुख्य मार्ग है. माना जा रहा है कि ग्वादर बदंरगाह के जरिए चीन सीधे खाड़ी से तेल और गैस लेगा और पाकिस्तान के रास्ते पश्चिमी चीन तक पहुंचाएगा. तेजी से आर्थिक विकास करते चीन और भारत की ऊर्जा की बहुत ज्यादा जरूरत है. फिलहाल दोनों देश खाड़ी के देशों से बड़े पैमाने पर कच्चा तेल खरीदते हैं.
बैंगलोर में एयर शो के दौरान जब भारतीय रक्षा मंत्री एके एंटनी से ग्वादर बंदरगाह के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, "एक वाक्य में कहूं तो यह मामला चिंता की बात है." चीन श्रीलंका में भी ऐसी ही बंदरगाह परियोजना को आर्थिक मदद दे रहा है. बांग्लादेश भी चाहता है कि चीन उसके बंदरगाह को संवारे.
सैन्य तैयारियों के साथ ही भारत और चीन अपने संबंध भी सुधारना चाहते हैं. सीमा विवाद की वजह से भारत और चीन 1962 में जंग भी लड़ चुके हैं. बैंगलोर एयरो इंडिया शो में पहली बार एक चीनी प्रतिनिधिमंडल भी पहुंचा है.
हाल के सालों में भारत हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार देश बना है. अगले 10 साल में नई दिल्ली सेना के आधुनिकीकरण में 100 अरब डॉलर से ज्यादा रकम खर्च करने जा रही है. भारत की कोशिश है कि वह चीन से मुकाबले के लिए अपनी सेना को आधुनिक बनाए. फिलहाल भारतीय सेना के ज्यादातर हथियार सोवियत संघ के जमाने के हैं.
अटकलें लगाई जा रही है कि भारत इस बार रक्षा बजट में कटौती करने जा रहा है. बीते तीन-चार सालों में भारत की आर्थिक विकास दर काफी गिरी है. सरकारी घाटा बढ़ता जा रहा है. ऐसे में वित्त मंत्री पी चिदंबरम रक्षा बजट पर कैंची चला सकते हैं. रक्षा मंत्री एंटनी भी इस बात के संकेत दे रहे हैं. हालांकि रक्षा मंत्री ने कहा, "बजट कटौती का असर हमारे प्राथमिक इलाकों में नहीं पड़ेगा. ऑपरेशन की तैयारियों के लिए जरूरी कदमों में किसी तरह का बजट नहीं काटा जाएगा."
भारत ने बीते साल ही फ्रांसीसी कंपनी से 126 रफायल लड़ाकू विमान खरीदने के सौदा किया है. एंटनी ने भरोसा दिलाया है कि रफायल सौदे पर बजट की मार नहीं पड़ेगी. उनके मुताबिक फ्रांसीसी कंपनी दासो और भारतीय अधिकारियों के बीच फिलहाल विमानों के दाम फाइनल करने पर बातचीत हो रही है.
ओएसजे/एमजे (एएफपी, पीटीआई)