खतरे में है अखरोटों की जन्नत
३० दिसम्बर २०१६अर्सतानअली मटकादिरोव को अपने इलाके पर गर्व है. वह हमें बताते हैं कि यह जंगल अद्भुत है. असल में वह किर्गिस्तान में स्थित दुनिया के सबसे बड़े अखरोट के जंगल में रहते हैं. प्राचीन जंगल इस बीच बढ़कर 30,000 हेक्टर के इलाके में फैल गया है. अर्सतानअली प्रकृति के बीचोबीच रहते हैं.
अगले दिन सूरज उगने पर अर्सतानअली और उनके भाई अकरम हमें पहाड़ों पर ले जाते हैं. अखरोट के पेड़ समुद्रतल से 2000 मीटर की ऊंचाई पर उगते हैं. अंत में हम तियान शान पहाड़ की तलहटी में पहुंचते हैं. दोनों भाई चिंतित हैं. पिछले साल अखरोट की फसल अच्छी नहीं रही. इस साल हालात कुछ बेहतर हैं, लेकिन बहुत सारे पेड़ों को नुकसान पहुंचा है. अर्सतानअली कहते हैं, "हवा ने हर कहीं पेड़ों की टहनियां तोड़ दीं. ये पेड़ काफी पुराने हैं. हमें नए पेड़ चाहिए."
युवा पेड़ों की कमी किरगिज अखरोट जंगलों की सबसे बड़े समस्या है. आसपास कम ही युवा पेड़ दिखते हैं. गांव वाले पीढ़ियों से अखरोट की खेती कर रहे हैं. वे सरकार से खेतों को लीज पर लेते हैं. लेकिन वे अपने मवेशियों को भी जंगलों में चरने के लिए छोड़ देते हैं. मवेशी छोटे छोटे पौधों को चर जाते हैं, जो अगली पीढ़ी में अखरोट देते. अखरोट के पेड़ों को बड़ा होने और फल देने में 30 साल लगते हैं. अर्सतानअली बताते हैं कि पहले यहां अखरोट के घने जंगल हुआ करते थे.
लेकिन जंगलों की बड़े पैमाने पर कटाई भी हुई है, हालांकि इस पर रोक है. लेकिन रोक की निगरानी करना बहुत मुश्किल है. अखरोट के फल पेड़ों से नौजवान तोड़ते हैं. वे पेड़ पर चढ़ जाते हैं और टहनियों को तब तक झकझोरते हैं जब तक फल नीचे न गिरें. ये काम जोखिम भरा है लेकिन है बहुत असरदार. फलों के नीचे गिरने के बाद सारा परिवार अखरोट बटोरने में जुट जाता है.
अखरोट की पैदावार बढ़ाने के लिए इस इलाके में नए पेड़ लगाना जरूरी है. किर्गिसतान के पर्यावरणविद अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की मदद से स्थिति को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं. छोटे पौधों को मवेशियों से बचाने के लिए बाड़ लगाई जा रही है. प्रोजेक्ट के तहत किसानों को बाड़ लगाने में मदद दी जा रही है. स्थानीय किसान इसका खर्च खुद नहीं उठा सकते. पारंपरिक रूप से बंजारे किसानों को इसके बारे में कुछ पता भी नहीं है. अब्दुलमलिक खमरायेव कहते हैं कि बाड़ अगली पीढ़ी को उनका तोहफा है.
जाकिरखोचा सारिम्साकोव किर्गिस्तान में जैव विविधता के एक्सपर्ट हैं. वे इस प्रोजेक्ट का समर्थन कर रहे हैं. वे जानते हैं कि यह काम रातों रात नहीं होगा, "हम जंगल का इस्तेमाल करने वाले स्थानीय निवासियों के साथ संवाद करने की कोशिश कर रहे हैं. लोग जंगल की रक्षा करना और भविष्य के बारे में सोचना सीख रहे हैं. इसलिए हम स्कूलों में जाकर पर्यावरण के बारे में बताते हैं. हम मस्जिदों में भी जाते हैं ताकि लोगों का रवैया बदले."
इसके अलावा पर्यावरण कार्यकर्ता गांव के लोगों के लिए सूखे सेव और जंगली जड़ी बूटी जैसे वैकल्पिक कमाई के साधनों को भी बढ़ावा दे रहे हैं. अर्सतानअली ने इस ड्रायर की मदद से पिछले साल अखरोट की खेती में हुए नुकसान की भरपाई की है. जंगल के बिना यहां कोई अपनी जिंदगी की कल्पना नहीं कर सकता. ऐसे में हर किसी को जंगल की हिफाजत करनी ही होगी.
केर्स्टीन पालजर/एमजे