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सालों की दूरी, पलों का मिलन

५ फ़रवरी २०१४

उत्तर और दक्षिण कोरिया इस बात पर राजी हो गए हैं कि 1950-53 के युद्ध में बंटे हुए कुछ परिवारों को आपस में मिलने की इजाजत दी जाएगी. इससे बहुत से परिवारों में उम्मीद जगी है.

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तस्वीर: Reuters

दोनों देशों के बीच मतभेद इतने हैं कि किसी भी तरह का समझौता कम ही हो पाता है. पहले भी उत्तर कोरिया ने ऐन मौके पर इस तरह के मेल मिलाप से इनकार किया है, लेकिन एक बार फिर उम्मीद की किरण जगी है. उत्तर और दक्षिण कोरिया के अधिकारियों की बैठक में तय किया गया है कि 20 फरवरी से 25 फरवरी के बीच माउंट कुमगांग पर कुछ परिवार कुछ पलों के लिए मिल सकेंगे. यह पर्वत दक्षिण कोरिया की उत्तरी सीमा पर है.

इससे पहले हुई मुलाकात में 100 परिवारों को मिलने दिया गया था. अधिकारिक तौर पर उत्तर कोरिया ने ऐसी कोई मांग नहीं रखी है कि वह ये मुलाकात तभी होने देगा जब दक्षिण कोरिया और अमेरिका अपना वार्षिक सैन्य अभ्यास रद्द करेंगे. ये अभ्यास इस महीने में होने वाला है. लेकिन दक्षिण कोरिया ने कहा है कि इरादा साफ है और वह इस चाल में नहीं फंसेगा.

दक्षिण कोरिया के एक अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर रॉयटर्स को बताया, "ये अभ्यास सालाना किया जाता है और यह हमारे लिए इस मुलाकात के मामले में कोई मुद्दा ही नहीं है." हाल के हफ्तों में उत्तर कोरिया के राजनयिकों ने शायद ही कोई मीडिया इंटरव्यू दिया है या संवाददाता सम्मेलन में शामिल हुए हैं लेकिन जितनी बार वे बोले हैं, उन्होंने ड्रिल बंद करने का ही जिक्र किया है.

विश्लेषकों का कहना है कि इस बार उत्तर कोरिया ने सामान्य धमकियों और आक्रामक टोन का सहारा नहीं लिया. लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि प्योंगयांग बदल गया है. बिछड़े परिवारों को मिलाने के उत्तर कोरिया के प्रस्ताव का चीन और अमेरिका सहित कई देशों ने स्वागत किया है. कोरियाई युद्ध में हजारों परिवार बंट गए थे. इतना ही नहीं सीमा पार मुफ्त यात्रा, संपर्क, फोन भी प्रतिबंधित थे. करीब 70 हजार दक्षिण कोरियाई अपने खोए हुए परिजनों को इस तरह की मुलाकातों में ढूंढने की कोशिश करते हैं.

उत्तर कोरिया के परमाणु परीक्षण के बाद संयुक्त राष्ट्र ने उस पर प्रतिबंध लगा दिए जिस पर उत्तर कोरिया ने कड़ी नाराजगी जाहिर की थी. इसके बाद दक्षिण कोरिया और अमेरिका के सैन्य अभ्यास पर उत्तर ने काफी बयानबाजी की थी.

अधिकतर विश्लेषकों का मानना है कि उत्तर कोरिया इस कदम के बावजूद बदला नहीं है. वहीं सियोल में राष्ट्रीय रणनीति संस्थान में शोधकर्ता और 1995 में दक्षिण कोरिया भागे जासूस क्वाक इन सू का कहना है, "इस साल उनका टोन अलग है. वो कह रहे हैं कि ऐसा मत करो. पहले तो सैन्य अभ्यास होने पर वह सैनिक कार्रवाई की धमकी देते थे. वह दिखावा कर रहे हैं लेकिन वह सच में कुछ बदलाव भी चाहते हैं. यह एक मिक्स बैग है."

उत्तर कोरिया के इरादे पढ़ पाना वैसे भी मुश्किल है और देश के नए शासक किम जोंग उन ने स्थिति और जटिल कर दी है. साथ ही दोनों देशों के बीच आपसी समझदारी की भी कमी है. विभाजित परिवारों को सैन्य अभ्यास के बावजूद अपने खोए हुए परिजनों के मिलने की उम्मीद है.

एएम/एमजे (डीपीए, रॉयटर्स)

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