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क्रांतिकारी साबित हो सकता है भारतीय उपकरण

३ मई २०१४

एक ऐसी तकनीक जिसमें न सोनोग्राम की जरूरत हो ना ईसीजी की. दिल की बीमारी होने से पहले ही इसका पता चल जाए तो? भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जो कुछ ऐसा ही करती है.

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तस्वीर: Murali Krishnan

अगर यह तकनीक कारगर साबित होती है तो इलाज के अभाव में जान गंवा देने वाले लाखों लोगों को बचाया जा सकेगा. चेन्नई के हेल्थकेयर टेक्नोलॉजी इनोवेशन सेंटर (एचटीआईसी) ने ऐसा उपकरण तैयार किया है, जो धमनियों की गतिविधि पर नजर रखता है और खतरा आते ही चेतावनी दे देता है.

आर्टसेंस के नाम का उपकरण उन बीमारियों से दिल की रक्षा करता है जो खराब खानपान और तनाव के कारण इन दिनों बढ़ रही हैं. अब तक दिल का हाल जानने के लिए सोनोग्राम की तकनीक का इस्तेमाल होता आया है जिससे धमनी की बनावट और उसमें लचीलेपन का पता चलता है. यह पारंपरिक अल्ट्रासाउंड मशीन महंगी भी होती है. इसके अलावा इसका इस्तेमाल वे लोग ही कर सकते हैं जिन्हें प्रशिक्षण मिला हुआ है.

कैसे काम करता है आर्टसेंस

एचटीआईसी में इस प्रोजेक्ट के प्रमुख डॉक्टर जयराज जोसफ ने डॉयचे वेले को बताया कि हमारी जीवनशैली और खानपान के अलावा बहुत सारी बातें होती हैं जो धमनियों पर असर डालती हैं. धमनियों पर असर पड़ने से हृदय की सामान्य प्रक्रिया पर असर पड़ता है. उन्होंने बताया कि आर्टसेंस के जरिए धमनियों में आने वाली समस्याएं शुरुआती अवस्था में ही पता कर ली जाती हैं. ऐसे में समस्या आगे बढ़ने से पहले ही उसका इलाज किया जा सकता है और लाखों जानें बचाई जा सकती हैं.

उन्होंने कहा, "भविष्य में आने वाली हृदय संबंधी समस्या का इस उपकरण की मदद से शुरू में ही पता लगाया जा सकता है." इलेक्ट्रॉनिक डिजाइन इंजीनियर प्रीजीत कहते हैं कि आर्टसेंस का एक और फायदा है एक बार में सही अल्ट्रासाउंड.

यह टीवी के सेटटॉप बॉक्स जितना बड़ा है. इसे तीन अलग अलग चिकित्सकीय जांचों में आजमाया जा चुका है. तीनों ही टेस्ट में इसकी क्षमता सोनोग्राम के बराबर पाई गई.

समय से जांच के लाभ

आर्टसेंस के निर्माता इस बात पर जोर देते हैं कि एक मानक अल्ट्रासाउंड मशीन के मुकाबले आर्टसेंस का साइज और आकार बहुत सहूलियत भरा है. इसे आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता है. फिलहाल इस मशीन की कीमत करीब एक लाख रुपये है. अल्ट्रासाउंड की मशीन इसके मुकाबले महंगी, करीब डेढ़ लाख तक की आती है.

एचटीआईसी के प्रमुख मोहन शंकर शिवप्रकाशम ने उम्मीद जताई कि बहुत जल्द यह मशीन बाजार में मौजूद होगी. रिसर्च टीम को उम्मीद है कि यह उपकरण भारत में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा के क्षेत्र में फायदा पहुंचाएगा. भारत में हर साल करीब 25 लाख लोग हृदय रोग से जान गंवा देते हैं.

रिपोर्ट: मुरली कृष्णन/ एसएफ

संपादन: ए जमाल