क्यों इनकी जान पर आई
भारत में बाघों और बारहसिंगों के संरक्षण के लिए काम कर रहे तमाम संगठनों के दबाव के चलते उनका शिकार तो कम हो गया, लेकिन आफत दूसरे जानवरों के सिर आ गई...
पैंगोलिन
इसका शिकार इसके मांस और खाल के लिए होता है. इसकी परतदार खाल का इस्तेमाल चीनी दवाइयां बनाने में और पोशाक बनाने में भी किया जा रहा है. 1990 से 2008 के बीच भारत में इनके शिकार का औसत सालाना तीन था. लेकिन ताजा आंकड़ों के अनुसार 2009 से 2013 तक हर साल औसतन 320 साल मारे गए.
स्टार कछुआ
पीठ पर स्टार का निशान लिए ये कछुए पसंदीदा पालतू जीवों में शुमार हैं. कस्टम अधिकारियों के मुताबिक हवाई अड्डो और तटीय सीमाओं पर 2002 से 2013 के बीच हर साल औसतन 3000 स्टार कछुए बरामद किए गए.
छिपकली
मॉनीटर छिपकली का मांस, हड्डियां और खाल तक मांग में है. महंगे बैग और बेल्ट बनाने में इसका इस्तेमाल होता है. जबकि छिपकली के जिगर और जीभ के बारे में धारणा है कि इससे कामोत्तेजना बढ़ती है.
बाघों का संरक्षण
सरकार का ध्यान बाघों को बचाने पर क्या गया कि शिकारियों ने अपना शिकार ही बदल डाला. कई जंगलों को राष्ट्रीय उद्यानों में बदल दिए जाने से बाघों के शिकार में कमी आई है.
विलुप्ति पर
प्रकृति के संरक्षण के अंतरराष्ट्रीय संघ की ताजा रेड लिस्ट के मुताबिक भारत में 274 प्रजातियां खतरे में हैं और ध्यान नहीं दिया गया तो बहुत जल्द विलुप्त हो सकती हैं.
तस्करी के गढ़
इन जानवरों की ज्यादातर तस्करी भारत की सीमा से लगे देशों म्यांमार, चीन, नेपाल और बांग्लादेश में होती है.