क्या है बच्चे पालने का सही तरीका
दुनिया भर के माता-पिता इस विषय पर एक दूसरे से बेहद अलग राय रखते हैं. एक को सामान्य लगने वाला तरीका दूसरे को बेहद अजीब लग सकता है. देखिए जर्मनी में छोटे बच्चों की परवरिश को लेकर सबसे ज्यादा विवाद किन बातों को लेकर है.
नाम कैसा हो
जर्मनी में बच्चों के नामों की एक डायरेक्ट्री है. माता-पिता को इस सूची में से नाम चुनना होता है. अगर वे अपने बच्चे का कोई अलग सा नाम रखना चाहें, तो बाकायदा लिखित में अनुमति लेनी पड़ती है. इस झंझट के चलते पारंपरिक नामों की ही भरमार है. जैसे बेन और मिया. या फिर 2016 में सबसे ज्यादा रखे गये नाम- मारी और एलियास.
खुलेआम दूध पिलाना
बच्चों को स्तनपान कराना जर्मनी में भी काफी आम है. एक ओर नग्नता को लेकर बेहद सहज माने जाने वाले जर्मन समाज में भी कई जगहों पर या दुकानों में स्तनपान करवाने की मनाही हो सकती है. देश में दूध पिलाने वाली मांओं को सुरक्षा देना वाला कोई कानून नहीं है.
देखभाल की एजेंसी
कामकाजी माता पिताओं के लिए दिन में अपने बच्चों को किसी देखभाल करने वाली संस्था में छोड़ने का फैसला अक्सर एक बहुत बड़ा फैसला होता है. प्रीस्कूल के लिए कई विकल्प हैं, जैसे जंगल के खुले माहौल में बच्चों को सीखने देना. इन्हें वालडॉर्फ प्रीस्कूल कहते हैं. वहीं कई पारंपरिक विकल्प भी हैं.
टीके लगवायें या नहीं
जर्मनी में बीमारियों की वैक्सीन लेना अनिवार्य नहीं है. लेकिन ओईसीडी के आंकड़े दिखाते हैं कि फिर भी 96 फीसदी बच्चों को टीके लगते हैं. वहीं कई जर्मन माता पिता टीकों के खिलाफ होते हैं. इसी कारण कभी कभी लगभग मिटायी जा चुकी महामारियां वापस लौट आती हैं. जैसे 2014-15 में बर्लिन में खसरे के एक हजार से ज्यादा मामले सामने आये.
बच्चे को रोने दो
जर्मनी में खूब बिकने वाली किताब से लोग बच्चों को सुलाने की फर्बर पद्धति सीखते हैं. इसकी सीख यह है कि बच्चे तो रोते ही हैं, उन्हें रोने के लिए अकेला छोड़ देना चाहिए और अंत में वे खुद ही रोते रोते थक कर सो जाएंगे. कुछ लोगों को यह तरीका जंचता है तो कुछ इसे प्रताड़ना मानते हैं.
अटैचमेंट पेरेंटिंग
बच्चों को अपने साथ अपने कमरे में सुलाने को 'अटैचमेंट पेरेंटिंग' पद्धति कहते हैं. इस तरीके के बारे में लिखने वाले अमेरिकी विशेषज्ञ विलियम सीयर्स ने बच्चे को साथ या एक ही कमरे में सुलाने की सिफारिश की थी. जर्मनी में इसे लेकर भी एकमत नहीं है और कई पेरेंट्स शुरू से ही बच्चे को अलग कमरे में सुलाते हैं.
बाजारू डायपर, कपड़ा या डायपर-फ्री
बाजार में उपलब्ध तरह तरह के डिस्पोजेबल डायपर कई माता पिता की जिंदगी आसान बनाते हैं. लेकिन जर्मनी में भी कई लोग कपड़े की लंगोटी पहनाते हैं. इसके अलावा "डायपर-फ्री" तरीका भी थोड़ा बहुत प्रचलित है. चूंकि इस तरीके में पेरेंट्स को बहुत ध्यान देना पड़ता है, इसलिए ऐसे माता पिता को "सबसे समर्पित" होने का खिताब दे देना चाहिए.
बेबीफूड - घर का या बाहर का
कई माता पिताओं को अपने बच्चे के लिए खुद ही घर पर बेबीफूड बनाना बहुत अहम फैसला लगता है. वहीं कुछ के लिए महंगी ऑर्गेनिक दुकानों से बच्चों के लिए पौष्टिक माने जाने वाली चीजें लाना सबसे अच्छा विकल्प होता है. वैसे यात्रा में तो लगभग सभी पेरेंट्स पैकेज्ड फूड ले ही जाते हैं.
टीवी, टैबलेट से दूर
जहां अमेरिकी लोग बच्चों के विकास में मदद देने वाले ऐप्स और टीवी शो की तारीफ करते नहीं थकेंगे, वहीं जर्मन माता पिताओं में इसे लेकर एकमत नहीं है. बल्कि ज्यादातर अपने छोटे बच्चों को जब तक और जितना हो सके, इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की स्क्रीनों से दूर ही रखते हैं.
चीनी नहीं देना
कितने साल का होने तक बच्चे को खाने में चीनी नहीं दी गयी, इससे भी कुछ लोग अच्छी परवरिश का अंदाजा लगाते हैं. देखा गया है कि जर्मनी में ज्यादातर पेरेंट्स इस तरह के नियमों का अपने पहले बच्चे के लिए कुछ ज्यादा ही सख्ती से पालन करते हैं. (एलिजाबेथ ग्रेनियर/आरपी)