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क्या बीजेपी को मिलेगा स्पष्ट बहुमत

कुलदीप कुमार१५ अक्टूबर २०१४

हरियाणा और महाराष्ट्र में हो रहे विधानसभा चुनाव के नतीजे इन राज्यों के साथ ही देश की भावी राजनीति के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध होंगे. पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने विधानसभा चुनाव में इस तरह का धुआंधार प्रचार किया है.

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Indien Wahlen Feier BJP Sieg 16.05.2014
तस्वीर: UNI

इन दो राज्यों के चुनाव नतीजे इस बात का फैसला भी करेंगे कि मोदी का करिश्मा अभी तक बरकरार है या नहीं. यदि इन दोनों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन गई, तो बीजेपी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और केंद्र सरकार में मोदी का वर्चस्व निर्णायक तौर पर स्थापित हो जाएगा. इसके साथ ही बीजेपी देश की राजनीति की धुरी के रूप में भी उभर आएगी और उसका राजनीतिक वर्चस्व निर्विवाद रूप से सिद्ध हो जाएगा.

विश्लेषकों का अनुमान है कि बीजेपी महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगी. यह कहना कठिन है कि वह अपने बलबूते पर पूर्ण बहुमत प्राप्त कर पाएगी या नहीं. यदि वह ऐसा न कर पाई, तो उसे विवश होकर शिव सेना का समर्थन लेना होगा और उस गाली-गलौज को भूलना होगा जो इस चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी और शिव सेना ने एक-दूसरे पर आरोप लगाते हुए की थी. शायद इसी संभावना को ध्यान में रखकर शिव सेना ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से अपने मंत्री को अब तक नहीं हटाया है जबकि महाराष्ट्र में उसका बीजेपी के साथ गठबंधन कभी का खत्म हो चुका है.

शिव सेना अभी तक नई राजनीतिक परिस्थिति को स्वीकार करने से कतरा रही है, लेकिन बहुत समय तक वह हकीकत को नजरंदाज नहीं कर सकती. हकीकत यह है कि संगठन के बंट जाने और राज ठाकरे द्वारा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाए जाने के बाद शिव सेना कमजोर हुई है और उद्धव ठाकरे अपने पिता बाल ठाकरे जैसा करिश्माई व्यक्तित्व विकसित करने में सफल नहीं हो सके हैं. इसके बावजूद यह भी सच है कि शिव सेना की जड़ें मराठी समाज में बहुत गहरी हैं और उसका प्रभाव आज भी काफी कुछ बना हुआ है. लेकिन क्या यह प्रभाव इतना है कि वह अकेले ही विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर सके?

यदि शिव सेना ने बाल ठाकरे को खोया तो बीजेपी ने भी गोपीनाथ मुंडे जैसे जनाधार वाले नेता की अकस्मात मृत्यु को झेला है. मोदी ने मुंडे की कमी को भरने के लिए ही महाराष्ट्र में चुनाव की कमान अपने हाथों में ली. लोकसभा चुनाव में विकास का मुद्दा प्रमुखता के साथ उठाया गया, लेकिन महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव में मोदी का व्यक्तित्व ही प्रधान मुद्दा रहा. कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की सरकार का दस वर्षों का शासन ऐसा नहीं रहा जो जनता में किसी तरह की उम्मीद जगा सके. स्वयं पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण स्वीकार कर चुके हैं कि वे भ्रष्ट पूर्व मुख्यमंत्रियों और अपनी सरकार के उपमुख्यमंत्री अजित पवार के खिलाफ कदम नहीं उठा सके. ऐसे में यह लगभग तय है कि इस गठबंधन की सरकार लौट कर आने वाली नहीं है. सवाल सिर्फ यह है कि क्या बीजेपी को स्पष्ट बहुमत मिल सकेगा?

इसके आसार काफी कम लग रहे हैं. चतुष्कोणीय मुकाबले में किसी एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलना बहुत कठिन है. इसलिए अधिक संभावना त्रिशंकु विधानसभा की है जिसमें बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभर सकती है. यदि ऐसा हुआ तो शिव सेना को एक बार फिर उसके साथ हाथ मिलाना पड़ेगा और गठबंधन में वरिष्ठ के बजाय कनिष्ठ सहयोगी दल का दर्जा स्वीकार करना होगा.

हरियाणा में भी बीजेपी की स्थिति काफी अच्छी है. लेकिन यहां कांग्रेस की हालत उतनी पतली नहीं जितनी महाराष्ट्र में है. ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोक दल ने भी अपनी स्थिति मजबूत की है और भजनलाल के पुत्रों की पार्टी हरियाणा जन कांग्रेस की स्थिति भी खराब नहीं. यहां यह कहना मुश्किल है कि कांग्रेस की सरकार नहीं बनेगी. इतना जरूर कहा जा सकता है कि कांग्रेस का सत्ता में लौटना आसान नहीं है.