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क्या बला है फील गुड फैक्टर

६ नवम्बर २०१०

फील गुड ने अटल बिहारी वाजपेयी की कुर्सी ले ली थी. 2005 में बीजेपी का चुनाव अभियान फील गुट फैक्टर पर आधारित था, लेकिन गांवों की आम जनता फील गुड नहीं कर रही थी. आखिर है क्या फील गुट फैक्टर?

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तस्वीर: AP

आंद्रे कहता है, "मैं बहुत खेलकूद और कसरत करता हूं, कुछ लोगों के साथ मस्ती करना मुझे खुशी देता है," तो जोजो की राय है, "मैं ढेर सारा म्यूजिक बजाती हूं, गाती हूं और बहुत सारा समय अपनी बिटिया के साथ गुजारती हूं, हम साथ साथ म्यूजिक सुनते और बजाते हैं, और बाहर वादियों में घूमने जाते हैं."महमूद बताता है, "हर सुबह उठने के बाद मैं 10 मिनट बिस्तर में लेटा रहता हूं, फिर एक कप कॉफी लेता हूं." नदीन को खुश करने के लिए चॉकलेट काफी है तो फाबियाने को यात्रा करना खुशी देता है. और जाँ के लिए यह अनुभूति सुखदायी है कि कोई उसे प्यार करता है.

जर्मनी के वैज्ञानिकों ने लंबे अध्ययन से पता लगाया है कि मस्त महसूस करना विकल्पों पर निर्भऱ करता है इंसान के जीनों पर नहीं. मनोवैज्ञानिक दशकों से इस पर माथापच्ची कर रहे थे कि खुशियों की वजह क्या होती है. कौन सी चीजें हैं जो हमें खुश रखती हैं और कौन सी चीजें हैं जो हमें परेशान करती हैं.

1970 के दशक में वैज्ञानिकों की सोच थी कि हर व्यक्ति में खुशियों का एक स्तर होता है, जहां वह जिंदगी के उतार चढ़ाव के बावजूद बार बार लौटकर आता है. इसे सेट प्वाइंट थ्योरी कहा जाता है. इस सिद्धांत के अनुसार खुशियों का यह स्तर जेनेटिक गुणों और बचपन के अनुभवों से तय होता है. लेकिन एक नए अध्ययन के लेखक अर्थशास्त्री गैर्ट वागनर का कहना है कि यह सिद्धांत आबादी के आधे हिस्से के लिए सही है लेकिन बाकी आधे के लिए नहीं.

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अपनों के साथ में खुशीतस्वीर: picture-alliance/dpa

इंसान की संतुष्टि का स्तर समय के साथ बदला है. अच्छा भरा पूरा परिवार हो, आपके पास परिवार को देने के लिए समय हो, अच्छा काम हो, पर्याप्त कमाई हो, सामाजिक गतिविधियां हों, थोड़ा व्यायाम और थोड़ा धर्म, यह सब जीवन में खुशियों के लिए जरूरी हैं. शोधकर्ताओं के अंतरराष्ट्रीय दल ने जर्मनी में 60 हजार लोगों के बारे में 25 सालों से इकट्ठा सूचनाओं का विश्लेषण किया है और इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि पैसे से ज्यादा जरूरी परोपकारी लक्ष्य हैं. इस अध्ययन के बारे में जानकारी नैशनल एकैडमी ऑफ साइंसेस की पत्रिका में छपी है. गैर्ट वागनर का कहना है,"जीवन में एक तिहाई परिवर्तन नकारात्मक होते हैं जैसे बीमारी या जीवन साथी का मरना, लेकिन दो तिहाई परिवर्तन सकारात्मक लेकिन छोटे छोटे होते हैं."

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खेल में खुशीतस्वीर: AP

छोटी छोटी खुशियां हर दिन मिल सकती है. वागनर का कहना है कि अध्ययन के नतीजे दिखाते हैं कि जीवन की खौफनाक घटनाओं के कारण लोगों के लिए नाखुश होना आसान होता है लेकिन जीवन से संतुष्टि का स्तर बढ़ाना बहुत ही मुश्किल होता है, उसके लिए सही फैसले करने होते हैं. विकल्पों और फैसला लेने की प्रवृत्ति के बारे में मिली जानकारियों ने शोधकर्ताओं को रोमांचित कर रखा है. गैर्ट वागनर कहते हैं कि हमारे अध्ययन में नया यह है कि हमने आपके पास उपलब्ध विकल्पों का अध्ययन किया है. और हमने दिखाया है कि विकल्प अंतर लाते हैं.

इंसान के सामने विकल्प अक्सर होता है. सही विकल्प चुनना होता है. जिंदगी में प्राथमिकताएं तय करनी पड़ती है और यही खुशियों की कुंजी होती है. गैर्ट वागनर का कहना है," अध्ययन के नतीजे बहुत से लोगों के लिए कोई आश्चर्य नहीं होंगे. सामाजिक लक्ष्य भौतिक लक्ष्यों से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. स्वास्थ्य बहुत जरूरी है और स्वस्थ रहने के लिए थोड़ी बहुत कसरत जरूरी है."

सब कुछ बहुत ही तार्किक लगता है, लेकिन क्या खुशियां पाना या खुश रहना इतना आसान है. शायद हां. हर दिन हम सब लोग कुछ न कुछ ऐसा करते रहते हैं जो हमें खुश रखे. इसलिए भी कि हम खुश रहना चाहते हैं.

रिश्ते बहुत जरूरी होते हैं. लेकिन प्रो. वागनर और उनके सहयोगियों का कहना है कि अगर सही साथी न चुना तो वह परेशानी का सबब बन सकता है. लेकिन सही रिस्ता चुनना भी हमेशा आसान नहीं होता, ये कहना है हुम्बोल्ट विश्वविद्यालय में व्यक्तित्व विकास विभाग के प्रो. जाप डेनिसेन का. अगर आप खराब रिश्तों के आदी हैं तो आप ऐसे ही अनुभवों के जारी रहने की उम्मीद करते हैं और यह भी जरूरी होता है कि आप अच्छा साथी पाने के बारे में अपने से क्या उम्मीद करते हैं. माना जाता है कि कम आत्म सम्मान वाले लोग अपने को साथियों के बाजार का उपयुक्त चुनाव नहीं मानते. इसलिए वे यह मानकर कि उन्हें कोई बेहतर नहीं मिलेगा, ऐसे साथियों पर समझौता कर लेते हैं जो गाली गलौज करने वाला होता है.

व्यक्तिगत खुशियों के लिए सही फैसला करना आसान नहीं क्योंकि इंसान का हर फैसला उसके आसपास उपस्थित जटिल कारकों के आधार पर लिया जाता है. लेकिन प्रो. डेनिसेन का मानना है कि हर आदमी हमेशा खुशियों की तलाश में रहता है. उसे कितनी सफलता मिलती है यह इस पर निर्भर करता है कि माहौल इसमें उसकी कितनी मदद कर रहा है. डेनिसेन कहते हैं कि प्रकृति और लालन पालन को एक दूसरे के खिलाफ नहीं खड़ा किया जा सकता.माहौल का असर व्यक्ति के जीन पर प्रासंगिक हो सकता है. और दूसरी ओर व्यक्ति के जीन का प्रभाव भी माहौल पर निर्भर हो सकता है.

खुशियों का मिलना एक जटिल प्रक्रिया है जो बहुत सारे व्यक्तिगत और आसपास के माहौल के कारकों से प्रभावित होता है. सच कहें तो आप कैसा महसूस कर रहे हैं यह आप पर ही निर्भर करता है.

रिपोर्टः एजेंसियां/ महेश झा

संपादनः एन रंजन

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