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क्या फेल हो गया मल्टी कल्टी

२६ सितम्बर २०१३

नीदरलैंड्स के लेखक लियोन डे विंटर के लिए कई साल से विविधताओं से भरा, बहुसांस्कृतिक समाज एक अहम मुद्दा है. अपनी किताबों में वह इस विषय पर साफ विचार देते हैं, क्योंकि वह खुद भी इससे प्रभावित हैं.

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तस्वीर: DW/Jochen Kürten

जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल ने एक बार समेकन के मद्देनजर कहा था कि बहुसंस्कृतिवाद का रास्ता विफल हो गया है. बर्लिन जिले के मेयर हाइंत्स बुखकोविस्की और थिलो साराजिन जैसे नेता इंटीग्रेशन पर हमेशा से ही विवादास्पद किताबें लिखते रहे हैं और बेस्टसेलर लेखक बनते रहे हैं. बहुसंस्कृतिवादी लेखक राल्फ गियोर्दानो जैसे लेखक भी कई बार इस मुद्दे पर निराशाजनक विचार रखते हैं. यह एक जटिल बहस है, जिसके केंद्र में एक ही सवाल है कि क्या एक ऐसे समाज का मॉडल सफल हो सकता है, जहां अलग अलग देशों, भाषाओं और जातियों के लोग एक साथ रहते हैं. वैसे तो हाल के दिनों में यह बहस राजनीति के मंच से तो खत्म हो गई है लेकिन यह लगातार समाज में फैलती जा रही है और संस्कृति में भी. नीदरलैंड्स के लेखक लियोन डे विंटर ने इस मुद्दे पर लिखा है.

यूरोप के बारे में
विंटर का नया उपन्यास "आइन गुटेस हेर्त्स" (ए गुड हार्ट) तथ्यों और कहानी का रोमांचक मिश्रण हैं. यह मल्टी कल्टी समाज पर लिखा गया एक थ्रिलर है. डॉयचे वेले के साथ बातचीत में लेखक ने कहा, "जो मैंने अपनी किताब में लिखा है, वह जर्मनी में भी हो सकता है." उन्होंने बताया कि उपन्यास पिछले दशक की राजनीति और समाज का चित्रण करता है. उस दौर में नीदरलैंड्स में "मल्टीकल्चरल समाज" से जुड़ी कई घटनाएं हुईं.

समेकन पर सवाल

फिल्म निर्माता थियो फान गॉग की दस साल पहले एक कट्टरपंथी इस्लामिस्ट ने हत्या कर दी थी क्योंकि उन्होंने इस्लाम के फैलने की आलोचना की थी. तब से नीदरलैंड्स में एक बहस चल रही है जिसकी बयार कभी कभी जर्मनी तक भी आ जाती है. वहां इस मुद्दे पर बहस चल रही है कि विदेशी मूल के लोग पश्चिमी देशों में कितने घुल मिल रहे हैं. नीदरलैंड्स में उत्तरी अफ्रीकी देशों और नीदरलैंड्स के पुराने उपनिवेश देशों के कई लोग रहते हैं.

Buchcover Ein gutes Herz von Leon de Winter
लियोन डे विंटर की किताब

विंटर कहते हैं कि जब प्रवासियों की बात होती है तो कुल तीन बड़े ग्रुप सामने आते हैं. वे बताते हैं, "एक तिहाई लोग बहुत अच्छे से घुल मिल जाते हैं, दूसरे तिहाई इसके लिए मेहनत करते हैं," इन्हें मदद की जरूरत पड़ती है. लेकिन आखिरी एक तिहाई, "ये लोग समाज में एकीकृत नहीं होना चाहते." विंटर कहते हैं कि इन लोगों में पश्चिमी लोकतंत्र के प्रति गहरी नापसंदगी है. वे अलग थलग हो जाते हैं और अपने परिवेश से नफरत करने लगते हैं. विंटर के मुताबिक, "समाज ने उन्हें वो नहीं दिया जिसकी वह उम्मीद कर रहे थे." और जर्मनी में भी यह स्थिति कुछ अलग नहीं है.

यहूदी विरोधी हमले
इसके बाद विंटर अपनी खुद की कहानी कहते हैं, जिसके कारण उन्होंने यह किताब लिखी. विवादास्पद फिल्मकार थियो फान गॉग ने सिर्फ इस्लाम की ही आलोचना नहीं की थी, उन्होंने शाब्दिक हमले अक्सर विंटर पर भी किए. फान गॉग का आरोप था कि लेखक अपने यहूदी होने का फायदा उठा रहे हैं और इसे अपने उपन्यासों में इस्तेमाल कर रहे हैं. लियोन डे विंटर यहूदी हैं, हालांकि वह खुद को पक्का यहूदी अनुयायी नहीं मानते. वे कहते हैं, "अधिकतर तो मैं नास्तिक रहता हूं, कुछ घंटों के दौरान मैं संशयवादी होता हूं और हवाई जहाज में भारी हलचल के दौरान मैं बहुत ही धार्मिक हो जाता हूं."

विंटर कहते हैं कि यूरोप में जहां जहां गैर पश्चिमी संस्कृति वाले लोग बहुत ज्यादा संख्या में आए हैं, वहां सब जगह एक जैसी प्रक्रिया है: समेकन में समस्या, युवा जो पढ़ाई पूरी नहीं करते, जिनके पास कोई ट्रेनिंग नहीं, अपराध, लड़कियां जिन्हें दबाया जाता है, वे इससे छूटने की कोशिश करती हैं." युवा इस तरह के कट्टरपंथी एक्शन में रोमांच ढूंढते हैं.

आखिर क्यों बहुसांस्कृतिक समाज की अवधारणा विफल मानी जा रही है. लियोन डे विंटर के मुताबिक अरब देशों में पढ़ाई के कम मौके हैं और कल्चरल एक्सचेंज प्रोग्राम भी नहीं हैं. विंटर अपनी किताब में लिखते हैं, "हम पश्चिमी देशों में इनमें से किसी सवाल का जवाब नहीं दे सकते, जवाब अरब देशों को खुद ही ढूंढना होगा."

रिपोर्टः योखन कुर्टन/ एएम

संपादनः ईशा भाटिया