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क्या कहते हैं पाठक

६ जून २०१३

"नक्सलवाद का मुकाबला करते हुए हमें उन बुनियादी समस्याओं का भी समाधान करना चाहिए जिन्होंने नक्सलवाद को जन्म दिया है."... पढ़िए पाठकों के और भी विचार जो उन्होंने मेल किए हैं डॉयचे वेले को.

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तस्वीर: AP

'आओ पर्यावरण-पर्यावरण खेलें'

'आओ पर्यावरण-पर्यावरण खेलें' शीर्षक ने देखते ही पढ़ने के लिए दिलचस्पी जगा दी. पढ़कर दुख हुआ कि भारत सरकार ने पश्चिमी घाट के पारिस्थितिकीय सौंदर्य को बचाने के लिए कुछ खास नहीं किया. जबकि यहां विश्व की बेशुमार जैव विविधता संरक्षित रह सकती थी. सचमुच सरकारों ने इस खास खूबसूरत प्राकृतिक गलियारे के साथ खिलवाड़ भरा खेल ही खेला है. लेख पढ़कर सकारात्मक बात यह मन में उपजी कि इस पर्यावरण दिवस से स्कूलों और कार्यालयों में सचमुच 'आओ पर्यावरण-पर्यावरण खेलें' खेल गतिविधि का आयोजन किया जाए, नए बिरवे रोपे जाएं ताकि पर्यावरण सुरक्षा के लिए बहुत से हाथ ऊपर उठें. नन्हें मुन्ने भी पर्यावरण संरक्षण के प्रति बचपन से सचेत हों.

प्रेषक : माधव शर्मा

एसएनके स्कूल (हिन्दी विभाग), यूनिवर्सिटी रोड, राजकोट, गुजरात

सात साल का आईटी एक्सपर्ट

बांग्लादेश के कम्प्यूटर के खिलाड़ी मास्टर वासिक फरहान रूपकोथा के कारनामों को पढ़कर तो आश्चर्य का ठिकाना न रहा. सचमुच 'होनहार बिरवान के होत चीकने पात' की कहावत को मास्टर वासिक ने चरितार्थ कर दिया. छोटी सी उम्र में जब बच्चे लिखना पढ़ना सीख रहे होते हैं, उम्र की उस दहलीज पर कंप्यूटर की लैंग्वैज-सी पर काम करना किसी अचंभे से कम नहीं. कंप्यूटर के इस होनहार चितेरे से हमें उम्मीद करनी चाहिए की अपनी रचनात्मक सोच के माध्यम से कंप्यूटर की दुनिया में कुछ खास नया मिलेगा जो लोगों को और अधिक सहायता प्रदान करेगा. बांग्लादेश की सरकार को इस नन्हें आई टी मास्टर को प्रतिभा को निखारने के लिए आगे की शिक्षा में सहायता करनी चाहिए.

प्रेषक : रवि श्रीवास्तव,

इण्टरनेशनल फ्रेण्डस क्लब, इलाहाबाद.

नक्सलवाद की जड़ें

दुख की बात है कि नक्सलवाद का क्रूर चेहरा तो मीडिया की आंखों से सब को नजर आता है, लेकिन दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और निर्धन वर्ग को साथ सालों से लगातार जारी शोषण और भेदभाव ना तो मीडिया की प्राथमिकता सूची में है ना ही आम लोगों के लिए ऐसे टॉपिक रोचक हैं. सनसनी पैदा करने वाली बातें और घटनाएं सबको चौंकाती हैं इसलिए ऐसा लगता है कि नक्सली हमेशा सनसनी पैदा कर अपनी समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए बड़ी घटनाओं को जन्म देते हैं. नक्सलवाद का मुकाबला करते हुए हमें उन बुनियादी समस्याओं का भी समाधान करना चाहिए जिन्होंने नक्सलवाद को जन्म दिया है.

प्रेषक : डॉक्टर हेमंत कुमार

अध्यक्ष, प्रियदर्शिनी रेडियो - श्रोता क्लब, भागलपुर, बिहार

संकलन: समरा फातिमा

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