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कॉल सेंटर की दुनिया

१७ जुलाई २०१०

मैनचेस्टर में किसी व्यक्ति को इंटरनेट में परेशानी आ रही है या मेलबर्न में कोई अपना मोबाइल कॉन्ट्रैक्ट बीच में ही खत्म करना चाहता है और वह इसके लिए एक फोन मिलाता है. तो शायद उसकी कॉल मुंबई के किसी कॉल सेंटर में पहुंचे.

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बढ़िया कमाई, पर मुश्किलें भी कम नहींतस्वीर: presse

21 साल के रोनल्ड श्यामर्स उन लगभग 1,200 लोगों में से एक हैं जो मुंबई की यूरोपियन टेलीकम्युनिकेशन कंपनी में काम करते हैं. उनके ग्राहक अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में हैं. भारत और इन देशों के समय में अंतर होने की वजह से रोनल्ड आधी रात को दफ्तर पहुंचते हैं. लेकिन वह कहते हैं कि सबसे मुश्किल बात अपने ग्राहक को यह अहसास दिलाना है कि भारतीय अंदाज में बोली गई अंग्रेजी उन्हें समझ आ जाएगी.

मैंने कहा फोन मिला दिया !

रोनल्ड के मुताबिक, "वे कई बार कहते हैं कि आपकी बात मेरी समझ में नहीं आ रही है. यह मैंने कहां फोन मिला दिया. हम कहते हैं कि भारत में. कइयों को नहीं पता होता कि भारत कहां है. कोई कहता है कि क्यों ऑस्ट्रेलिया वाले इस तरह बाहर से काम करा रहे हैं. आप लोग हमारी नौकरियां छीन रहे हो. ऐसी बातें हमारे सामने आती हैं. यह स्वाभाविक है. अगर हमारे साथ ऐसा होता है तो हम भी यही कहेंगे."

Deutschland Call Center von Quelle in Berlin Headset
सात समंदर पार संपर्कतस्वीर: AP

कई लोग इन बातों को हल्के अंदाज में कहते हैं कि तो कई बहुत उग्र हो जाते हैं. कई लोग तो फोन पर गालियां तक देने लग जाते हैं. कॉल सेंटर में काम कर चुके प्रशांत कहते हैं, "कई लोगों के बुरे अनुभव भी रहे हैं. उन्हें यही पसंद नहीं आता कि उनकी कॉल भारत में पहुंच गई है. जहां तक काबलियत की बात है तो हम किसी से कम नहीं. यहां बहुत से लोग कॉल सेंटर में काम करना चाहते हैं. ऐसा नहीं है कि अगर किसी को कुछ नहीं मिलता है तो वह यहां काम करता है. भारत अब किसी देश से पीछे नहीं है."

खास ट्रेनिंग, खास हिदायतें

कॉल सेंटर में काम करने वालों को पहले खास तरह की ट्रेनिंग दी जाती है. खासकर फोन पर जिस देश के लोगों की समस्याएं उन्हें सुननी हैं, उसके बारे में उन्हें बताया जाता है. भले ये लोग उन देशों में कभी नहीं गए हो, ट्रेनिंग में उस जगह के तौर तरीकों की जानकारी उन्हें दी जाती है. लेकिन फिर भी कई तरह की परेशानियां आती हैं. एक कॉल सेंटर में काम करने वाली शेरॉन कहती हैं, "मुझे लगता है कि यह ग्राहक से बात करने वाले व्यक्ति पर निर्भर करता है. कई बार हमारा कंप्यूटर सिस्टम बहुत धीरे चलता है, जिससे आवाज देर से आती है. कई बार जो ग्राहक ने पूछा है, उसके बारे में आप कहीं से पता करते हैं. इस बीच, आप उस व्यक्ति को जान लेते हैं. मेरे ख्याल से ज्यादा निजी बातें नहीं पूछनी चाहिए क्योंकि कइयों को यह पसंद नहीं होता है. लेकिन लोगों को जानना जरूरी होता है क्योंकि तभी आप बेहतर तरीके से उनकी परेशानियों को दूर करने में मदद कर सकते हैं."

07.11.2006 MIG CALL CENTER
नौकरी की मारामारीतस्वीर: DW-TV

शेरॉन ने एक साल तक ब्रिटेन में पढ़ाई की है और वह कहती हैं कि इससे उन्हें अपने काम में मदद मिलती है. लेकिन उनकी कंपनी की तरफ से खास हिदायत है कि किसी ग्राहक से कभी बनावटी ब्रिटिश अंदाज में बात न की जाए. साथ ही यह दिखावा करने की जरूरत भी नहीं है कि आप ब्रिटेन के किसी कॉल सेंटर से बोल रहे हैं. शेरॉन बताती हैं, "हम नहीं चाहते कि कोई ऐसा करे क्योंकि यह बहुत बनावटी लगता है. इसकी बजाय अगर आप साधारण तरीके से बोलें तो ग्राहक को ज्यादा समझ आएगा. इसीलिए साधारण तरीके से ही बात हो, तो अच्छा है."

हम किसी से कम नहीं

भारत से बाहर बहुत से लोग सोचते हैं कि कॉल सेंटर में काम करने वाले लोग गरीब हैं. उनके पास मोबाइल फोन या दूसरी इस तरह की चीजें नहीं है. साथ ही उनके ऊपर बहुत से लोगों की जिम्मेदारी है. पश्चिमी देशों में फिल्म और टीवी पर दिखाई जाने वाली डॉक्यूमेंट्री फिल्मों से भी भारत के बारे में इस तरह की छवि बनती है. शेरोन और रोनाल्ड इस तरह की बातों पर हंसते हैं.

शेरॉन का कहना है, "दरअसल जब भी हम ग्राहकों से बात करते हैं तो वे भी पूछते हैं कि आप क्या गरीब हैं, जो कॉल सेंटर में काम करते हैं. लेकिन ऐसी बात नहीं है. दरअसल यहां सब लोगों के पास मोबाइल है. एक नहीं, दो दो मोबाइल हैं. उन्हें अच्छी खासी सैलरी मिलती है, तो वे जो चाहे कर सकते हैं." इस बारे में रोनल्ड का कहना है, "भारत में भी बहुत से लोगों को नहीं पता कि कॉल सेंटर में क्या होता है. कैसा ऑफिस होता है. हमारा काम क्या है. तो जो भी यह सोचता है, एक बार यहां आकर देखे. हमारे पास भी अच्छी टेक्नॉलजी है. मोबाइल फोन हैं. कार है."

विदेश में रहने वालों के लिए तो शायद मुमकिन नहीं कि सिर्फ कॉल सेंटर के लोगों से मिलने वे भारत जाएं, लेकिन यह बात साफ है कि भारत के कॉल सेंटरों में काम करने वाले ज्यादातर लोग उतने ही काबिल और प्रफेशनल हैं जितने यूरोप या अमेरिका में.

रिपोर्टः डीडब्ल्यू/ए कुमार

संपादनः ए जमाल